16 दिसंबर को हुई थी दिल्ली में दहला देने वाली वारदात, 12 साल में बदले कई कानून…लेकिन नहीं थमे महिलाओं के खिलाफ अपराध

srashti
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16 दिसंबर 2012 की रात दिल्ली में एक दिल दहला देने वाली घटना घटी, जिसने ना सिर्फ पूरे देश को झकझोर दिया, बल्कि समाज और सरकार को भी स्तब्ध कर दिया। एक बस में छह दरिंदों ने एक युवती के साथ ऐसी बर्बरता की, जिसकी कल्पना करना भी मुश्किल है। इस दर्दनाक घटना में वह लड़की अपनी जान गंवा बैठी और उसे ‘निर्भया’ के नाम से जाना गया। निर्भया के नाम से यह मामला पूरी दुनिया में पहचाना गया और इसके बाद भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराधों को लेकर कई कानूनों में बदलाव हुए।

12 साल में बदले कई कानून

निर्भया कांड के बाद सरकार ने महिलाओं के खिलाफ अपराधों को लेकर सख्त कानून बनाए। इसमें रेप की परिभाषा में बदलाव, नाबालिगों के खिलाफ कड़ी सजा, और रेप के मामलों में मौत की सजा का प्रावधान जैसी नई धाराएं जोड़ी गईं। हालांकि, इन बदलावों के बावजूद महिलाओं के खिलाफ अपराधों की दर में कोई बड़ी कमी नहीं आई है।

नहीं थम रहें महिलाओं के खिलाफ अपराध

भारत में हर साल महिलाओं के खिलाफ अपराधों के मामलों में निरंतर वृद्धि देखी जा रही है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के मुताबिक, हर साल 4 लाख से ज्यादा महिलाओं के खिलाफ अपराध दर्ज होते हैं। इनमें रेप, छेड़छाड़, दहेज हत्या, किडनैपिंग, ट्रैफिकिंग और एसिड अटैक जैसी घटनाएं शामिल हैं। निर्भया कांड के बाद 2013 में रेप के मामलों की संख्या 30 हजार से अधिक हो गई थी, जो 2016 में बढ़कर 39 हजार तक पहुंच गई। 2022 में यह आंकड़ा फिर से 31,516 तक पहुंचा, यानी औसतन हर दिन 86 रेप के मामले सामने आए।

रेप के मामलों में सजा की दर

हालांकि सरकार ने महिलाओं के खिलाफ अपराधों के लिए सख्त कानून बनाए हैं, लेकिन हकीकत ये है कि रेप के मामलों में सजा मिलने की दर बहुत कम है। NCRB के आंकड़ों के अनुसार, रेप के मामलों में सजा मिलने की दर केवल 27 से 28 प्रतिशत के आसपास है। इसका मतलब है कि 100 में से केवल 27 मामलों में ही आरोपी को दोषी ठहराया जा सकता है। इसके अलावा, 2022 तक करीब 2 लाख रेप के मामले लंबित थे, जिनमें से कई मामलों में आरोपी बरी हो गए, और कुछ मामलों में दोषी को सजा मिल भी गई।

सख्त कानूनों के बावजूद स्थिति में सुधार क्यों नहीं?

कानून में बदलाव और सजा की सख्ती के बावजूद महिलाओं के खिलाफ अपराधों में कमी नहीं आई है। इसके कई कारण हैं, जिनमें सबसे बड़ा कारण अदालतों में लंबित मामलों की बढ़ती संख्या है। इसके साथ ही, महिलाओं के खिलाफ अपराधों के लिए लागू किए गए भारतीय न्याय संहिता (BNS) और पॉक्सो एक्ट में किए गए संशोधन, जिसमें मौत की सजा का प्रावधान किया गया है, इसके बावजूद अपराधों में कमी नहीं आई है।

समाज में सुरक्षा का बड़ा सवाल

निर्भया के बाद कई कड़े कानून बनाए गए, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि समाज में महिलाओं की सुरक्षा अभी भी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। यह दर्शाता है कि सिर्फ कानूनों से नहीं, बल्कि समाज में मानसिकता में बदलाव, सख्त कानूनों की प्रभावी व्यवस्था और बेहतर न्याय प्रक्रिया से ही महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है।