अपने मछुआरे पिता की मदद के लिए डोंगी चलाती थी मानसी, अब जीता स्वर्ण पदक

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इंदौर। खेलो इंडिया यूथ गेम्स में पहली बार शामिल किए गए कैनोए स्लालोम इवेंट में लड़कियों के वर्ग का स्वर्ण जीतकर अपना नाम इतिहास में दर्ज कराने वाली मानसी बाथम को सी2 स्पर्धा का पदक बिना किसी कड़ी प्रतिस्पर्धा के मिल गया। लेकिन भोपाल के छोटे तालाब से, जहां बचपन में वह अपने मछुआरे पिता (जो अब नहीं रहे) की मदद के लिए डोंगी चलाती थी। सहस्रधारा में नर्मदा नदी की गोद में सोना जीतने तक का सफर तमाम दुश्वारियों से भरा रहा है।

लड़कियों के कैनोए स्लालोम सी1 इवेंट में मध्यप्रदेश की मानसी ने 250 मीटर कोर्स पर 128.596 सेकेंड समय के साथ सोना जीता। मानसी का ऐसा प्रभुत्व था कि प्रीति पाल (हरियाणा) उनसे काफी पीछे 491.172 सेकेंड के साथ दूसरे ओर धृति मारिया (कर्नाटक) 559.120 सेकेंड के साथ तीसरे स्थान पर रहीं। ये आंकड़े साबित करते हैं कि मानसी का अपने खेल पर नियंत्रण है और वह अधिक से अधिक मेहनत करते हुए देश के लिए ओलंपिक में पदक जीतना चाहती है।

मानसी ने कहा,- मैं देश के लिए ओलंपिक में पदक जीतना चाहती हूं। मुझे पता है कि यह सफर बहुत कठिन होगा लेकिन मैं इसके लिए जी-जान से मेहनत करना चाहती हूं। मैं तमाम दुश्वारियां झेलकर अगर यहां तक आई हूं तो अब रुकना नहीं चाहती। अब मेरे भाई की नौकरी भी लग गई है और मुझे पता है कि वह मुझे हर लिहाज से सपोर्ट करेगा, जैसा कि अब तक करता आया है। मैं बस अपना काम करना चाहती हूं।

मानसी ने बताया कि दिल का दौरा पड़ने के कारण कुछ साल पहले उनके पिता का देहांत हो गया था। मूल रूप से वह परिवार को पालने के लिए मछली मारते थे। बकौल मानसी,- मेरे पिता छोटे तालाब में मछली मारते थे। मैं उनका हेल्प करने के लिए किश्ती चलाती थी। पिता के देहांत के बाद मेरा भाई वह काम करने लगा। थोड़ा सपोर्ट दादी ने भी किया। अभी दो-तीन महीने पहले मेरे भाई को बैंक में नौकरी लगी है। अब वह हम चार भाई बहनों और मां की अच्छी तरह देखरेख कर सकता है।

इस खेल में कैसे आई?

इस पर मानसी ने कहा,- पहले स्कूल जाने के अलावा मेरा काम पापा के साथ कश्ती चलाना था। इसके बाद जब हमारे मोहल्ले में एडवेंचर वाटर स्पोर्ट्स स्कूल खुला। भैया ने मुझे वहां एडमिशन दिला दिया। शुरुआत में मैंने तैराकी सीखी और फिर वोटिंग शुरू की। मेरा भाई भी इस खेल में था। मैंने उसी के साथ पहला नेशनल्स खेला था, जो होशंगाबाद में हुआ था।

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मानसी ने बताया कि व्हाइट वाटर गेम में होने के कारण उन्हें प्रैक्टिस करने को लेकर कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता था। मानती कहती हैं- मेरे खेल के लिए जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर हर जगह नहीं है। इसके लिए हमने एक रास्ता निकाला। पहले तो हम छोटे तालाब में ही प्रैक्टिस किया करते थे और फिर किसी इवेंट से दो-तीन दिन पहले सहस्रधारा आ जाया करते थे। वहां हमारे कोच इवेंट के हिसाब से प्रैक्टिस करते थे।

महेश्वर में हो गया है कायाकल्प

खेलो इंडिया के लिए महेश्वर में की गई व्यवस्था को लेकर मानसी ने कहा कि इस वेन्यू का कायाकल्प हो चुका है और वह इसके लिए आयोजकों को धन्यवाद कहना चाहूंगी। मानती ने कहा,- यहां सब कुछ बदल गया है। सब कुछ काफी अच्छा हो गया है। मैं यहां आती रहती हूं लेकिन खेलो इंडिया का वेन्यू बनने के बाद से इस स्थान की बात ही कुछ और हो गई है। जिन लोगों ने इसका कायाकल्प किया है, मैं उनको धन्यवाद कहना चाहूंगी।

पहली बार वाटर स्पोर्ट शामिल हुआ है खेलों इंडिया में

उल्लेखनीय है कि वाटर स्पोर्ट्स को पहली बार खेलो इंडिया यूथ गेम्स में शामिल किया गया है। मध्यप्रदेश की राजधानी के बड़े तालाब में कयाकिंग और कैनोइंग के इवेंट्स कराए गए और कैनोए स्लालोम, जो कि एक ओलंपिक इवेंट है, का आयोजन महेश्वर स्थित सहस्रधारा में पवित्र नमृदा नदी में कराया गया। कयाकिंग, कैनोइंग और कैनोए स्लालोम में मप्र के एथलीटों की धूम रही।