मैन ऑफ हैप्पीनेस और ग्लोबल हैपीनेस लीडर डॉ.गुरमीत नारंग ने चेतना संस्थान में पुअर मी, लक्की देम” विषय पर एक लाइव सेशन में दी जानकारी

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इंदौर. अपने जीवन में हम अपनी शिकायतों को खुद से सही ठहराने में लंबे और अप्रिय घंटे बिताते हैं, लगभग सारा जीवन हमे ये लगता है कि दूसरे हम से बेहतर कर रहे है। दूसरे हम से ज़्यादा खुश है। जब भी हम अपने से बेहतर स्थिति में किसी और को देखते है तो हम स्वयं को कोसते है या इन्फीरियर महसूस करते है। स्वयं को बेचारा महसूस करते है।हमारा दिल कह उठता है “पुअर मी, लक्की देम” ,मेरी तो क़िस्मत ही ख़राब है, मेरी तो क़िस्मत ही ऐसी है, मैं जीवन में मैं पिछड़ा हुआ हूँ, मेरे साथ अच्छा होता ही नहीं, मैं किसी काम का नहीं, दूसरे कितने खुश है ,आदि आदि।

उन्होंने कहा कि हमारे साथ ये सिलसिला बचपन से शुरू हो जाता है जब हमे दुनिया की दौड़ में धकेला जाता है । हम स्वयं को दूसरो के साथ तुलना करना और तौलना शुरू करते है।इससे होता ये है कि हमारे भीतर ईर्ष्या का भाव पैदा हो जाता है जो सारा जीवन हमारे भीतर चलता रहता है और हम स्वयं को हमेशा कमतर आँकते है। हमे हमेशा दूसरे ज़्यादा ख़ुश और बेहतर दिखते है। आप नौकरी पर है तो आपको अपने सीनियर्स ज़्यादा खुश और सफल दिखते है। आप सोचते रहते है कि मेरा बॉस ज़्यादा सुखी है सिर्फ़ ऑर्डर देता है करना हमे पड़ता है। आपको यही लगता है कि -पुअर मी,लक्की देम।आपको दूसरे की पत्नी ज़्यादा बेहतर और गुणवान लगती है, दूसरो के बच्चे ज़्यादा बुद्धिमान लगते है, अगर आपके पास घर या कार छोटे है और आपके मित्र के पास बडे है या आप के पास पैसा कम है तो आप स्वयं के बारे में इन्फीरियर महसूस करते है। पार्टी में लोगो को देखकर आप समझते है कि मैं सबसे पिछड़ा हुआ हूँ…! हमेशा इसी सोच में, आप जीते है कि मैं जीवन में अच्छा नहीं कर पाया, दूसरे मुझसे ज़्यादा खुश है। आप स्वयं को बेचारेपन में बनाए रखते है। और दुखी रहते है। इसके कई कारण है, जैसे- स्वयं के साथ संतोष में ना रहना, जो उपलब्ध है वहाँ ध्यान ना जाना, वर्तमान में ना जीना, नदी का दूसरा किनारा बेहतर समझना, जीवन की धारा के उलट चलना, दुविधा और भ्रम में जीना और वास्तविकता से दूर रह कल्पना में बने रहना। कभी अतीत का जीवन अच्छा लगना या कभी भविष्य की कल्पनायें।

अपने जीवन को “पुअर मी, लक्की देम” से “लक्की मी” में बदलने के रास्ते के बारे में बताया कि अपने जीवन को एक अर्थ दीजिए, उद्देश्य दीजिए, आप भले दूसरो को बेहतर समझते है पर आपको ये नहीं पता रहता कि हर व्यक्ति की, उसके पद की अपनी समस्याएँ है, हर व्यक्ति किसी ना किसी सफरिंग में है, आप भी ईश्वर की एक खूबसूरत रचना है, स्वयं को कमतर समझने से बेहतर है स्वयं को ईश्वर द्वारा दिये गये गुण को निखारिये, हर दिन एक नया मौक़ा होता है कुछ नया करने का। कुछ अच्छा पाने का।इस मौक़े को दूसरो के बारे में सोचने की बजाय स्वयं की तरक़्क़ी पर ध्यान लगाइए, जीवन एक ‘सेलिब्रेशन’ है, ‘कैलिब्रेशन’ नहीं। इसलिए अपने जीवन में तौलना और दूसरो से तुलना करना बंद करे, दुनिया के शोर को ज़्यादा ना सुने।जिस पद पर है उस पद को इंजॉय करिए, ये याद रखो कि- जीवन है तो सब कुछ है, जीवन से बेहतर कुछ नहीं इस संसार में। ना सांसारिक पद और ना ही सांसारिक वस्तुएँ, स्वयं के साथ शांति को स्थापित करिए, – जो है सो है, सब अच्छा है, सब सुख है।