दीपक जैन “टीनू”
नासमझी की कीमत कोई देश कितनी ज्यादा चुका सकता है, मालदीव मौजूदा दौर का इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। यही कारण है कि भारत और मालदीव के बीच संबंधों में तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है। पीएम मोदी के खिलाफ बयान देने पर भारत किसी भी तरह से नरमी बरतने की मानसिकता में भी नहीं दिखाई दे रहा है। दरअसल, प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने लक्षद्वीप दौरे के साथ ही वहां के पर्यटन को प्रमोट किया। इसके बाद गूगल पर अचानक लक्षद्वीप को सर्च करने वालों की संख्या बढ़ गई। इसी के साथ सोशल मीडिया पर लक्षद्वीप की खूबसूरत तस्वीरें पोस्ट की जाने लगीं।
यह कहना भी कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि प्रधानमंत्री जी के दौरे के बाद यह पहला अवसर था जब लक्षद्वीप को इंटरनेट पर इतना ज्यादा देखा गया। तभी से यह बहस चल पड़ी कि जब देश में इतनी खूबसूरत जगह है तो देश के पर्यटन प्रेमी और घरेलू पर्यटक कहीं बाहर की ओर यात्रा क्यों करें? इस बात के समर्थन में कई लोगों ने यह तर्क भी दिया कि अब मालदीव की बजाय लक्षद्वीप जाना चाहिए। इससे नाराज होकर मालदीव के मंत्री ने जब टिप्पणी की, तो भारत ने भी करारा जवाब दिया। भारत के तर्क और दावों में दम था, तभी मालदीव सरकार ने अपने तीन मंत्रियों को हटा दिया है।
बात यहीं खत्म नहीं हुई। मोदीजी के समर्थन में जुटे भारतीयों ने मालदीव का सामूहिक और सार्वजनिक बहिष्कार शुरू कर दिया। विवाद के बाद तत्काल बाद शुरू के तीन दिन में ही पर्यटकों की संख्या में करीब 30 प्रतिशत तक गिरावट आ गई। देशभर से रोजाना 7 से 8 उड़ानें सीधे मालदीव जाती हैं, जिनमें अकेले मुंबई से 3 उड़ानें हैं। फिर चौंकाने वाली जानकारी यह है कि ब्लू स्टार एयर ट्रैवल सर्विसेज ने आधिकारिक तौर पर यह जानकारी दी कि मालदीव के लिए सीधी उड़ानों में 20 से 30 प्रतिशत कैंसिलेशन की कगार पर आईं। जिस तरह से #बायकॉट_मालदीव अभियान चल रहा, उसे देखते हुए भारत में टूर ऑपरेटर्स मालदीव के टूर पैकेज कैंसिल होने के बाद पड़ने वाले प्रभाव की तैयारी कर रहे है।
टूर ऑपरेटर्स के पास मालदीव की कोई नई पूछताछ की कॉल नहीं आ रही है। वहीं, ‘इंडियन एसोसिएशन ऑफ टूर ऑपरेटर्स’ ने अनुमान लगाया कि इस घटनाक्रम को देखते हुए बायकॉट का प्रभाव अगले 20 से 25 दिनों में देखने को मिलेगा। समझा जा सकता है कि मोदीजी या भारत का विरोध अब कितना महंगा पड़ सकता है। यदि दोनों देशों के संबंधों की पृष्ठभूमि को तलाशें तो भारत और मालदीव के बीच के संबंध लंबे समय तक ऐतिहासिक रूप से मजबूत और घनिष्ठ रहे हैं। दोनों देशों के बीच साझा सांस्कृतिक, भाषा और ऐतिहासिक बंधन भी हैं, जो उन्हें एक दूसरे से जोड़ते हैं। सच तो यह भी है कि कूटनीतिक दृष्टिकोण से भी भारत और मालदीव के संबंध सशक्त और सुरक्षित बनाए रखना, भारत से ज्यादा मालदीव की जरूरत है।
यह कहना भी उचित ही होगा कि भारत में इस संबंध में भी हमेशा अपना सकारात्मक पक्ष मजबूती से रखा है। यदि मालदीव के इतिहास को खंगालें तो पता चलता है कि यह द्वीप समूह के नाम से भी जाना जाता है, जबकि इसका आधिकारिक नाम मालदीव गणराज्य है। द्वीप देश की भौगोलिकता देखें तो यह मिनिकॉय आईलैण्ड और चागोस द्वीप समूह के बीच 26 प्रवाल द्वीपों की एक दोहरी चेन है। मालदीव का फैलाव भारत के लक्षद्वीप टापू की उत्तर-दक्षिण दिशा में है। भारत के पश्चिम तट से मालदीव की दूरी 300 नॉटिकल मील है। मालदीव जनसंख्या और क्षेत्र दोनों ही प्रकार से एशिया का सबसे छोटा देश है। इसकी आबादी महज 5,15,122 है।
भारत और मालदीव के बीच के संबंधों में विशेष ध्यान देने वाला एक महत्वपूर्ण पहलू है व्यापार और आर्थिक सहयोग का। भारत ने लंबे समय से मालदीव को आर्थिक सहायता और विकास के क्षेत्र में समर्थन प्रदान किया है, जिससे मालदीव की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है। इसके अलावा, भारत और मालदीव के बीच सुरक्षा संबंध भी मजबूत ही रहे हैं। दोनों देश सामाजिक स्थिति, सांस्कृतिक आदर्श और सुरक्षा के क्षेत्र में सहयोग करते हैं। भारत ने मालदीव को रक्षा उपकरणों और प्रशिक्षण के क्षेत्र में सहायता प्रदान की है, जो दोनों देशों को क्षेत्र में स्थिरता और सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद करता है।
जहां तक राजनीतिक मसलों का सवाल है मालदीव में में एक चीनी समर्थक राष्ट्रपति का आना विवाद की बड़ी वजह बन रहा है। ऐतिहासिक रूप से मालदीव में वर्ष 1968 से एक कार्यकारी राष्ट्रपति प्रणाली थी, जो वर्ष 2008 में बहुदलीय लोकतंत्र में परिवर्तित हो गई। तब से कोई भी राष्ट्रपति, जो वर्तमान में पद पर है, दोबारा निर्वाचित नहीं हो पाया। इस बार मालदीव के नेतृत्व का चीनी प्रेम भारत की असहमति की वजह है। लेकिन मालदीव यह कैसे भूल सकता है कि भारत से करीब दो लाख से ज्यादा पर्यटक हर साल मालदीव जाते हैं। आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2022 में 2 लाख 41 हजार और 2023 में करीब 2 लाख लोगों मालदीव की यात्रा की है।
ऐसे में यदि लक्षद्वीप जैसे भारत के द्वीपों को प्रमोट किया जाता है तो जाहिर है कि भारत से मालदीव जाने वाले लोगों की संख्या में कमी आएगी, जिसका विपरीत असर वहां के पर्यटन पर भी पड़ेगा। दूसरी तरफ मालदीव का चीन के प्रति झुकाव एक ऐसा कारण है जो स्वाभाविक रूप से भारत विरोधी कदम के रूप में देखा और माना जा रहा है। मालदीव हिंद महासागर क्षेत्र के कई अन्य देशों की तरह बुनियादी ढांचे हेतु चीनी निवेश प्राप्तकर्ता रहा है। मालदीव में बड़े पैमाने पर चीन ने निवेश किया है और वह चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) में भागीदार बन गया है।
चीन ने “स्ट्रिंग ऑफ द पर्ल्स” पहल के हिस्से के रूप में मालदीव में बंदरगाहों, हवाई अड्डों, पुलों और अन्य महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढांचे के विकास सहित विभिन्न परियोजनाओं के वित्तपोषण एवं निर्माण में भूमिका निभाई है। यही सबसे बड़ा कारण है कि मालदीव न चाहते हुए भी चीन के समर्थन में झुक रहा है। मालदीव के नए राष्ट्रपति ने तो अपने चुनाव प्रचार में ही ‘इंडिया आउट’ का नारा दिया था। लेकिन, प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की स्पष्ट कूटनीति और विदेश नीति के चलते मालदीव अब दुनिया के सामने बेनकाब हो गया है। भारत के समर्थन के बगैर अब उसकी सबसे बड़ी चिंता यह भी है कि नेपाल, श्रीलंका और पाकिस्तान की तरह यदि वह भी चीन के कर्ज-जाल में फंस गया, तो उसकी आर्थिक स्थिति गर्त में चली जाएगी।
यह सत्य बार-बार दोहराने की आवश्यकता नहीं है कि मालदीव का अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से पर्यटन पर निर्भर रहता है और इसमें सबसे बड़ा योगदान भारतीयों का होता है। आंकड़े प्रमाण हैं कि भारत दिसंबर 2020 और जून 2023 के बीच मालदीव के लिए दुनिया का सबसे बड़ा पर्यटक बाजार रहा है। अकेले नवंबर 2023 में देश में 18,905 भारतीय पर्यटकों के आगमन के साथ भारत दूसरे स्थान पर रहा। मालदीव की जीडीपी का लगभग 25% सीधे पर्यटन से प्राप्त होता है। मालदीव जब कोविड के चपेट में था, उस समय भी भारतीयों ने मालदीव जाकर बहुत बड़ा सपोर्ट सिस्टम खड़ा किया था।
कोरोनाकाल में भी करीब 63000 भारतीयों ने मालदीव की यात्रा की थी। भारत ने मालदीव और अन्य हिंद महासागर देशों के साथ अपने राजनयिक व रणनीतिक संबंधों को मज़बूत करने का हमेशा समर्थन किया है। इसने संबद्ध क्षेत्र में अपने व्यापक प्रभाव के लिए आर्थिक सहायता देना भी शामिल है। भारत की “नेबरहुड फर्स्ट” नीति का उद्देश्य पड़ोसी देशों में चीन की बढ़ती उपस्थिति को संतुलित करना भी है। दुर्भाग्य से मालदीव भारत की इस भूमिका और भागीदारी को समझ नहीं पा रहा है। मालदीव को यह याद रखना चाहिए कि भारत उसके पर्यटन उद्योग को समर्थन देने के लिए कई तरह के वाटर सेनिटाइजेशन प्रोग्राम चला रहा है। इंडियन एयरपोर्ट अथॉरिटी ने हनीमाधू और गण अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डा पुनर्विकास परियोजनाओं के लिए डीपीआर भी तैयार कर लिया है।
ऐसी कई दूसरी योजनाओं के लिए भी भारत ने पर्याप्त बजट तय कर रखा है। उल्लेखनीय तो यह भी है कि फरवरी 1974 से, भारतीय स्टेट बैंक ने द्वीप राष्ट्र को द्वीप रिसॉर्ट्स के विकास और समुद्री उत्पादों के निर्यात में महत्वपूर्ण सहायता की है। भारत द्वारा उपलब्ध कराई जा रही ऐसी ऋण व्यवस्था भी मालदीव के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। मालदीव यह कैसे भूल सकता है कि 2014 के जल संकट में भारत ने ही सबसे पहले मदद पहुंचाई थी। 2018 में ही भारत ने मालदीव को 140 करोड़ डॉलर का आर्थिक सहयोग प्रदान किया था। 2018 से 2022 में मालदीव से 87 हजार लोग भारत में इलाज कराने आए जो 5.15 लाख आबादी वाले देश का एक बड़ा हिस्सा है।
2020 में भारत ने मालदीव को चेचक के 30 हजार टीके उपलब्ध करवाए। इसके बाद कोरोना काल में वैक्सीन से लेकर आवश्यक स्वास्थ सुविधाएं भी दीं। 2023 में खेलों को बढ़ावा देने के लिए भारत ने मालदीव को चार करोड़ डॉलर मुहैया करवाए। यह भारत की उसे बड़े भाई वाली भूमिका है, जिसे निभाने का उसने हमेशा से ईमानदारी से प्रयास किया है। अब समय और समझने का अवसर मालदीव के पास है। उसे चीन जैसे धोखेबाज देश का कर्ज-जाल चाहिए या फिर वैश्विक रूप से दुनिया का नेतृत्व करने वाले प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी जैसा विश्वासपात्र साथी।