बुधवार के दिन इन 3 आरतियों से करें गणपति बप्पा को खुश, हर मनोकामनाएं होगी पूर्ण

Ayushi
Published on:

गणेश के लिए शास्त्रों में बुधवार का दिन माना गया है। ऐसे में बुधवार के दिन भगवन गणेश को खुश करने के लिए उनकी आराधना और पूजा की जाती है। कहा जाता है कि उनकी पूजा अर्चना करने से ही भक्तों की सारी परेशानियां दूर हो जाती है। गणेश जी सभी डिवॉन में सबसे पहले पूजे जाते हैं।

कोई भी शुभ कार्य करने से पहले गणपत्ति बप्पा की पूजा होती है। हर एक पूजा से पहले उनकी पूजा होती है तभी वह पूजा मान्य होती है। बता दे, गणेश जी कि पूजा के बिना कोई भी कार्य शुभ नहीं माना जाता है। इसलिए उनकी सबसे पहले पूजा की जाती है। इसके अलावा प्रत्येक बुधवार को भगवान गणेश की पूजा करते समय इन तीन विशेष आरतियों को जरूर पढ़ना चाहिए क्योंकि इन आरतियों से भी लोगों की सभी परेशानियां और संकट दूर हो जाते हैं।

ये हैं गणेश जी की 3 विशेष आरतियां –

जय गणेश जय गणेश
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा ॥ जय…
एक दंत दयावंत चार भुजा धारी।
माथे सिंदूर सोहे मूसे की सवारी ॥ जय…
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया।
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ॥ जय…
हार चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा।
लड्डुअन का भोग लगे संत करें सेवा ॥ जय…
दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी।
कामना को पूर्ण करो जाऊं बलिहारी॥ जय…

श्रीगणेश की आरती : सुखकर्ता दुखहर्ता

सुखकर्ता दुखहर्ता वार्ता विघ्नाची।
नुरवी पुरवी प्रेम कृपा जयाची।
सर्वांगी सुंदर उटी शेंदुराची।
कंठी झळके माळ मुक्ताफळांची॥
जय देव जय देव जय मंगलमूर्ति।
दर्शनमात्रे मन कामनापूर्ति॥ जय देव…

रत्नखचित फरा तूज गौरीकुमरा।
चंदनाची उटी कुंकुमकेशरा।
हिरेजड़ित मुकुट शोभतो बरा।
रुणझुणती नूपुरे चरणी घागरिया॥ जय देव…

लंबोदर पीतांबर फणीवर बंधना।
सरळ सोंड वक्रतुंड त्रिनयना।
दास रामाचा वाट पाहे सदना।
संकष्टी पावावें, निर्वाणी रक्षावे,
सुरवरवंदना॥
जय देव जय देव जय मंगलमूर्ति।
दर्शनमात्रे मन कामनापूर्ति॥ जय देव…

श्रीगणेश की आरती- शेंदुर लाल चढ़ायो

शेंदुर लाल चढ़ायो अच्छा गजमुखको।
दोंदिल लाल बिराजे सुत गौरिहरको।

हाथ लिए गुडलद्दु सांई सुरवरको।
महिमा कहे न जाय लागत हूं पादको ॥1॥

जय जय श्री गणराज विद्या सुखदाता।
धन्य तुम्हारा दर्शन मेरा मन रमता ॥धृ॥

अष्टौ सिद्धि दासी संकटको बैरि।
विघ्नविनाशन मंगल मूरत अधिकारी।

कोटीसूरजप्रकाश ऐबी छबि तेरी।
गंडस्थलमदमस्तक झूले शशिबिहारि ॥2॥

जय जय श्री गणराज विद्या सुखदाता।
धन्य तुम्हारा दर्शन मेरा मन रमता ॥

भावभगत से कोई शरणागत आवे।
संतत संपत सबही भरपूर पावे।

ऐसे तुम महाराज मोको अति भावे।
गोसावीनंदन निशिदिन गुन गावे ॥3॥

जय जय श्री गणराज विद्या सुखदाता।
धन्य तुम्हारा दर्शन मेरा मन रमता ॥