70 और 80 के दशक तक उज्जैन के लगभग सभी कपड़ा मिलों पर ताला डाल चुके थे, जिसका असर उज्जैन की अर्थव्यवस्था पर बहुत ही बुरा पड़ा और और यह शहर बाबा महाकाल की नगरी होने के बावजूद भी आर्थिक तंगी और पिछड़ेपन का शिकार होता चला गया, उद्योग धंधे नाम मात्र के थे और वह भी निजी जिसमें धन्ना सेठों के जिससे शोषण का शिकार यहां के युवा होते रहे, रोजगार के लिए उज्जैन शहर इंदौर पर निर्भर होता चला गया।
आज भी उज्जैन से कई बसें और ट्रेन बेरोजगारों से भरी प्रतिदिन इंदौर आती है उज्जैन के हर युवा की जुबान पर 2010 के बाद तक यहींरहता था कि उज्जैन में कुछ नहीं है परिवार पालना है तो इंदौर चले जाओ अप-डाउन करो। उज्जैन आज भी इतना सस्ता शहर है कि बाहर से उज्जैन आने वालों को यह शहर काफी किफायती लगता है। यहां आज भी निजी क्षेत्र में अधिकतम 10 से ₹15000 आसानी से नहीं मिलता।
लेकिन पिछले 2 सालों में उज्जैन शहर जिस तरह से पर्यटन मानचित्र पर उमभरा है वह पिछले 50 सालों में नहीं उभरा, पर्यटन उद्योग अब उज्जैन की किस्मत लिख रहा है यहां के युवाओं में पर्यटन से जुड़े उद्योग के प्रति धीरे-धीरे आत्मविश्वास जलने लगा है। वही महाकाल मंदिर के आसपस 3 किलोमीटर तक की गलियों में बने मकान अब होटल बनते दिखाई दे रहे हैं। महाकाल वन कॉरिडोर उज्जैन की आर्थिक समृद्धि में बहुत बड़ा योगदान देगा।इस कॉरिडोर से आकर्षित होकर देश-विदेशी भक्त भी उज्जैन आएंगे। वहीं दूसरी और उज्जैन अब मैरिज डेस्टिनेशन भी बन रहा है कम खर्च में शादी और उससे बड़ी आस्था धार्मिक नगरी में विवाह बंधन में बनने की है जो युवाओं को आकर्षित कर रही।
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उज्जैन के प्रत्येक धर्म स्थल पर महाकाल वन जैसी योजना लाकर अगर इसका जीर्णोद्धार किया जाए तो उज्जैन शहर को रोजगार के लिए इंदौर पर निर्भर नहीं रहेगा पड़ेगा। इस बात को बखूबी कलेक्टर आशीष सिंह ने समझा और जाना इसीलिए उन्होंने दिन-रात इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए दिए महाकाल वन को विकसित कर युवाओं के सपनों में नवीन उत्साह की उर्जा भर दी है।