मध्यप्रदेश खबर : MP में बड़े घोटालें का हुआ खुलासा, अफसरों ने करीब 238 करोड़ रुपए का किया भुगतान

rohit_kanude
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बिहार के चारा घोटाले की तरह मध्यप्रदेश में आंगनबाडियों के पोषण और गर्भवती महिलाओं के आहार में करोड़ो रूपए की गड़बडी का मामला सामने आया हैं। 1100 टन का परिवहन ट्रकों से होना था लेकिन असलियत में इसका परिवहन मोटर साइकिल से लेकर स्कूटर जैसे छोटे-छोटे वाहनों से किया गया हैं। फर्जी परिवहन की जानकारियां संबंधित अधिकारी जुटाने में लगे हैं।

प्रदेश में महिला एवं बाल विकास विभाग के तहत काम करने वाली आंगनबाड़ियों में कुपोषित बच्चों और गर्भवती महिलाओं को पोषण आहार वितरित किया जाता है। पोषण आहार पहुंचाने की जिम्मेदारी निजी कंपनियों को दी गई है। लेकिन एक रिपोर्ट में बताया गया है कि, 110.83 करोड़ रूपए का पोषण आहार सिर्फ कागजों में ही बांटा गाया हैं।

क्या पूरा मामला

प्रदेश में सरकार के द्वारा आंगनबाड़ियों में कुपोषित बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए पोषण आहार का वितरित करती हैं। ये काम किसी मोटर साइकल जैसे छोटे वाहनों से नही किया जाता है। लेकिन फिर भी जिम्मेदार कंपनियों और अधिकारियों ने इसके परिवहन के लिए छोटे वहनों के द्वरा कराया गया और उनके नंबर की जगह ट्रक के नंबर बताकार इंट्री की गई। जब संबंधित अधिकारियों ने इसकी पड़ताल की तो पाया गया है कि, पोषण आहार का परिवहन बड़े वाहन को छोड़कर छोटे वाहनों से किया गय़ा हैं। यहा तक की अधिकारियों ने इसका भुकतान भी कर दिया हैं।

फर्जीवाड़े का मामला कैसे आया सामने

कुछ दिन पहले अकाउंटेंट जनरल की टीम ने ऑडिट की थी। इसके बाद जब फाइनल ऑडिट रिपोर्ट सामने आई तो उसमे पता चला कि, 110.83 करोड़ रुपए का पोषण आहार तो सिर्फ कागजों में ही बंट गया है। जिन ट्रकों से 1100 टन के पोषण आहार का परिवहन बताया गया है, वे असलियत में मोटर साइकिल और स्कूटर निकले हैं। यानी कंपनियों ने मोटरसाइकिल से ट्रक की क्षमता वाला पोषण आहार ढोने का अविश्वनीय काम किया है. यही नहीं, फर्जी परिवहन के लिए कंपनियों को 7 करोड़ रुपए भी अफसरों ने दे दिए हैं।

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ऑडिटर जनरल की रिपोर्ट के मुताबिक, कंपनियों ने परिवहन के लिए जिन ट्रकों के नंबर दिए थे, उनके रजिस्ट्रेशन नंबर की जांच मध्य प्रदेश समेत उन तमाम राज्यों की परिवहन विभाग की वेबसाइट से की गई, जहां के वे बताए गए थे। इन वेबसाइट पर ट्रक के नंबर स्कूटर, मोटरसाइकिल, कार और ऑटो के पाए गए. यानी कंपनियों ने पोषण आहार का वितरण करने की बजाय सिर्फ कागजों में एंट्री दिखा दी।

प्रदेश के ये जिलें है शामिल

जांच रिपोर्ट में भोपाल, छिंदवाड़ा, धार, झाबुआ, रीवा, सागर, सतना और शिवपुरी जिलों में करीब 97 हजार मैट्रिक टन पोषण आहार स्टॉक में होना बताया था। जबकि करीब 87 हजार मैट्रिक टन पोषण आहार बांटना बताया. यानी करीब 10 हजार टन आहार गायब था. इसकी कीमत करीब 62 करोड़ रुपए है। इसी तरह शिवपुरी जिले के दो विकासखंडों खनियाधाना और कोलारस में सिर्फ आठ महीने के अंदर पांच करोड़ रुपए के पोषण आहार का भुगतान स्वीकृत कर दिया। इनके पास स्टॉक रजिस्टर तक नहीं मिला. इसके चलते पोषण आहार के आने-जाने की कोई एंट्री या पंचनामा नहीं मिला। यही नहीं, बिना किसी प्रक्रिया के अधिकारियों ने फर्मों को पूरा भुगतान कर दिया।

इतने करोड़ का किया भुगतान

प्रदेश सरकार ने पोषण आहार की गुणवत्ता की जांच एक स्वतंत्र लैब से भी कराई. इसमें पाया गया कि प्रदेश की विभिन्न फर्मों ने करीब 40 हजार मैट्रिक टन पोषण आहार घटिया गुणवत्ता वाला बांट दिया है। इसके एवज में अफसरों ने करीब 238 करोड़ रुपए का भुगतान भी कर दिया। फिर भी, घटिया गुणवत्ता का पोषण आहार सप्लाई करने वाली फर्मों के खिलाफ कोई कार्रवाई नही की। इतना ही नहीं जिम्मेदार अधिकारियों से इस संबंध में कोई पूछताछ भी नहीं की गई।

बता दें कि, बिहार में चारा घोटाला भी इसी तर्ज पर हुआ था। जांच में सामने आया था कि चारे की ढुलाई के लिए जिन गाड़ियों को ट्रक बताकर दर्ज किया गया था। पड़ताल में उनके रजिस्ट्रेशन बाइक और स्कूटर के निकले थे।