लाइलाज है ल्यूपस, लेकिन सावधानियों से हो सकता है बचाव

ravigoswami
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बदलते परिवेश के कारण अलग अलग तरह की कई बीमारियाँ पैदा हो रही हैं, ऐसे कई रोग हैं जिनसे लोग जूझ रहे हैं लेकिन उन्हें इसके बारे में व्यक्ति को जानकारी भी नहीं है। स्किन, घुटनों, लंग्स या अन्य दूसरी जगहों पर सूजन लग रही है तो ये ल्यूपस बीमारी का एक लक्षण हो सकता है। ल्यूपस एक ऑटोइम्यून बीमारी है जिसके बारे में लोगों में बहुत ज्यादा अवेयरनेस नहीं है, इस वजह से कई बार इसे इग्नोर कर दिया है और बाद में स्थिति गंभीर हो जाती है। ल्यूपस के बारे में अधिक से अधिक जागरूकता फैलाने के लिए हर साल 10 मई का दिन वर्ल्ड ल्यूपस डे और मई का पूरा महीना ल्यूपस मंथ के रूप में मनाया जाता है। इसका उद्देश्य लोगों को ल्यूपस के बारे में जानकारी देना और उन्हें समय से जांच कराने के लिए प्रोत्साहित करना है।

इंदौर के मेदांता सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल के कंसल्टेंट रूमेटोलॉजिस्ट डॉ. गौतम राज पंजाबी के अनुसार, “सिस्टमिक ल्यूपस एरिथेमेटोसस (एसएलई) एक ऑटोइम्यून रोग का सटीक उदाहरण है, जिसमें शरीर में ऑटोएंटीबॉडी बनने के कारण यह एंटीबॉडी अपने खुद की स्वस्थ कोशिकाओं, टिश्यु और अंगों पर हमला कर नुकसान पहुंचाती है। यह मुख्य रूप से किशोर लड़कियों और मध्यम आयु वर्ग की महिलाओं को प्रभावित करता है। हालांकि, पुरुषों और बच्चों में यह रोग गंभीर हो सकता है। इस बीमारी के लक्षण हर मरीज में अलग अलग हो सकते हैं और इसी तरह बीमारी की गंभीरता भी अलग अलग हो सकती है उदारहण के लिए किसी के लिए सामान्य तो किसी के लिए जानलेवा साबित हो सकती है। क्योंकि इस रोग के लक्षणों और उनकी गंभीरता हर रोगी में अलग अलग होती हैं इसलिए निदान और उपचार में भी देरी हो सकती है। आम लक्षणों में लंबे समय तक बुखार रहना, थकान, वजन और भूख कम लगना, चेहरे पर तितली के आकार का चकत्ता, बार-बार मुंह में छाले होना, जोड़ों में दर्द या सूजन शामिल हैं। किडनी, हृदय, मस्तिष्क, स्पाइनल कॉर्ड, रक्त कोशिकाएं, लिवर, पेट, आंखें और फेफड़े जैसे अन्य अंग भी इससे प्रभावित हो सकते हैं।”

डॉ पंजाबी ने आगे कहा, “ल्यूपस का पता मुख्य रूप से रक्त परीक्षणों के माध्यम से लगाया जाता है। इन जांचों में लक्षणों के आधार पर एंटीन्यूक्लियर एंटीबॉडी (एएनए), एंटी डीएसडीएनए एंटीबॉडी, एंटी-स्मिथ एंटीबॉडी और रक्त में कम्पलीमेंट लेवल (सी3, सी4) की जांच शामिल होती है। ल्यूपस होने के बाद जितना अधिक से अधिक बचाव किया जाए उतना बेहतर है जैसे धूप से बचें, बाहर निकलने से पहले सनस्क्रीन का इस्तेमाल करें, धूप से बचने के लिए शरीर को पर्याप्त रूप से ढंके, धूम्रपान बंद करें एवं सावधानी के तौर पर कुछ दवाओं या गोलियों के सेवन बंद किया जा सकता है। ट्रीटमेंट प्लान में इम्यूनोसप्रेसेंट दवा अंगों को हुई क्षति और उसकी गंभीरता पर आधारित होती है। इसके अलावा इस रोग से संबंधित जटिलताओं जैसे संक्रमण, ऑस्टियोपोरोसिस, किडनी फेलियर, ह्रदय रोग (इस्केमिक हार्ट डिजीज) या कैंसर आदि के लिए समय पर जांच की जानी चाहिए।”