क्रिकेट से प्यार… आईपीएल से इनकार!

Shivani Rathore
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जिस तरह एक ही दल में रहते हुए मोदी और गडकरी कम ही मुद्दों पर सहमत होते हैं, उसी तरह हम पति-पत्नी भी कभी-कभी एक-दूसरे से सहमत हो लेते हैं, जैसे आइपीएल। मुझे क्रिकेट की समझ है, इसलिए आइपीएल नहीं देखता हूं और पत्नी को समझ नहीं आता है, इसीलिए वो क्रिकेट ही नहीं देखती है। इस एक मुद्दे पर सहमत होने से हमारा पारिवारिक जीवन सुखी है, ऐसा मान सकते हैं। अब पत्नी बगैर रोक-टोक धड़ल्ले से सीरियल (किलर) देख रही है और मुझे भी अपने मन का करने की पूरी आजादी है। कह सकते हैं, आइपीएल की वजह से मैं बेकार हूं तो पत्नी को फुरसत नहीं है और घर का रिमोट सुरक्षित हाथों में है।

मुझे समझ नहीं आता है कि आइपीएल में देखने लायक क्या होता है, चंद विदेशी चीयर लीडर्स, प्रीति जिंटा, शाहरुख खान या कभी-कभी प्री-वेडिंग एक्सपर्ट अंबानी परिवार, बस, इसके अलावा तो कुछ होता नहीं है। सच कहूं तो मुझे यह भी पता नहीं है कि आइपीएल में कितनी टीम खेल रही हैं, खिलाडिय़ों की तो बात ही जाने दें। सुना है, अब तो चीयर लीडर्स भी देसी होने लगे हैं। मेरा एक दोस्त तो सिर्फ इसलिए ही मैच देखता था, जो अब नहीं देखता है कि अपने जैसों को क्या देखना। जब मैं यह कहता हूं कि मैं आइपीएल नहीं देखता हूं तो मेरे चेहरे पर वही भाव आ जाते हैं, जैसे क्लासिकल का सुनने वाला कहे कि फिल्मी गाने नहीं सुनता हूं या पेरेलल सिनेमा की वजह से खुद को अलग दिखाने वाले यह कहते पाए जाते हैं कि ‘मैं कामर्शियल सिनेमा नहीं देखताÓ या राजनाथ कहें कि राहुल की बात को गंभीरता से नहीं लेता हूं।

भारत की टीम भी जिसको पता नहीं है, यदि वो भी आइपीएल देख रहा है तो, समझ सकते हैं क्या तो देख रहा होगा या क्या समझ आ रहा होगा। एक बार किसी आइपीएल-प्रेमी से पूछ लिया था कि आइपीएल में क्या देखते रहते हो, तो उसका जवाब था ‘चौका लगेगा या छक्का, टुचुक-टुचुक नहीं होती है इस खेल में!Ó कौन खिलाड़ी बेटिंग कर रहा है? पूछा तो उसका जवाब था- सभी तो हेलमेट लगाए रहते हैं, क्या फर्क पड़ता है कि कौन बल्ला पकड़े हैं।

दरअसल खेल देखता कम हूं, खेलता ज्यादा हूं। जैसे, ओवर की हर गेंद, अब गेंदबाज कोई भी हो, अपन को क्या, पर मैं बता सकता हूं कि चौका लगेगा या छक्का। दस में से सात बार तो मेरा अंदाज सही ही निकलता है। जब ऐसा नियम कि हर गेंद पर कुछ तो कमाना ही है तो विकेट में अपनी कोई दिलचस्पी नहीं रहती है कि कोई एक बेट्समैन तो होता नहीं है कि आउट हो गया तो आगे क्या होगा, पूरी फौज खड़ी रहती है। एक आउट होता है तो दो तैयार हो जाते हैं। रक्तबीज की तरह।

सच कहूं तो मुझे यह भी कई बार पता नहीं होता है कि सामने कौन-सी टीम खेल रही है, अपन इन सब बातों से ऊपर उठ चुके हैं इतने साल में। जिस तरह चुनावी सभाओं में रोजनदारी पर भीड़ होती है ना, जिसे यह भी पता नहीं होता है कि जेपी नड्डा कौन है या खरगे किस पार्टी के हैं, वैसे ही आइपीएल का है कि कौन-सी टीम, किसकी हार, किसकी जीत, अपन को क्या लीजो-दीजो। बस यही फर्क है कि अपन पैसे देकर तमाशा देखते हैं और ये लोग पैसे लेकर। वैसे जल्दी ही पैसे देने लगें तो कोई बड़ी बात नहीं होगी। उसने बताया।

मैं कहता हूं कि आइपीएल इतना लंबा नहीं चलना चाहिए और पत्नी की मनोकामना है कि यदि पूरे साल आइपीएल ही चलता रहे तो संतोषी माता के सौलह शुक्रवार उपवास रख लें। उसकी जीत की संभावना इसलिए ज्यादा है कि अपने आराध्य तो जय शाह हैं और अपनी उनके पिताजी से कोई जान-पहचान नहीं है, जबकि पत्नी का दावा है कि हर शुक्रवार उसे संतोषी माता साक्षात दर्शन देती हैं, सपने में। क्रिकेट और आइपीएल देखने में बड़ा फर्क है।

अब जैसे ड्राइंग रूम में बैठा क्रिकेट देख रहा हूं… कि तभी कोई अंदर आता है और ‘क्या स्कोर हुआÓ पूछता है तो मेरा एक ही जवाब हर बार होता है ‘तीन विकेट पर चार सौÓ, वह इस बार भी दु:ख और आश्चर्य करता है ‘अरे यार, ये तो ज्यादा हो गए, कौन मार रहा है?Ó ‘डेरिक रेंडलÓ… यह भी मेरा स्थायी जवाब है। ‘ये ऑस्ट्रेलिया वाले तो खेलते ही अच्छा हैं, मुश्किल है इन्हें हराना।Ó भले ही इंग्लैंड-इंडिया का चौथा टेस्ट मैच खेला जा रहा हो।
मैं जब आइपीएल में किसी को परेशान नहीं करता हूं तो ये लोग फिर मुझे टेस्ट क्रिकेट देखने क्यों नहीं देते! यह वैसा ही है कि फिल्मी गाने सुनते हैं और राग पर सवाल पूछते हैं। मेरे साथ यही अच्छा है कि मैं हर बार रटारटाया जवाब ना जाने कब से दे रहा हूं और ये पूछने वाले बाज ही नहीं आते हैं।

प्रकाश पुरोहित