कोरोना की तलाश में

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विश्वास व्यास

हम इंदौरी भाई लोग निडर, बहादुर, वीर योद्धा है। हमारी कॉलोनी में जिस घर मे कोरोना निकला है। वह छोटा मोटा टूरिस्ट स्पॉट हो गया है, मोहल्ले के लिए। बच्चे बूढ़े सब देख आये जैसे रावण देखने जाते है, बिल्कुल वैसे ही। टोली बनाकर। बहुत कोशिश के बाद भी कोरोना नही दिखा। बाकी तो वो बेरिकेड्स की दिशा, बेरिकेड्स लगाने का समय, एम्बुलेंस आने जाने का टाइम, और लाल पोस्टर पर लिखी इबारत जैसी चीजो पर बहस कर रहे है। उन के घर मे कितने लोग है, कौन सी बाई आती है, सब्जी वाला कौन सा है, कौन सी बहू कब मायके से आई है, इन सब खबरों ने सचिन पायलट को पछाड़ दिया है। वह परिवार अचानक आसपास के बीस कोस में गब्बर सिंह जैसा पहचाना जाने लगा है।

हर आदमी दूसरे को सलाह दे रहा है, “भिया, ध्यान रखना हो, ” मगर मेरा भाई खुद सरफ़रोशी की तमन्ना लिए उधर हो आया है। मगर अफसोस सारे जेम्स बांड और करम चंद मिल कर भी कोरोना नही देख पाए। वो साला दो दिन की मेहनत के बाद भी नही दिखाई दिया। कोई सुबह गया , कोई रात को। बड़ो ने लड़के- बच्चों को उधर न जाने की सलाह दी, पर खुद रात को टहलने के बहाने उधर हो आए।लड़के बच्चे फिर किसके बस में है? वे भी अपनी सहूलियत से जासूसी कर आये। मगर कोरोना नही दिखा।

वरना अपने लोग कोरोना तो क्या ,चीन की भी गरदन मरोड़ दे। मुझे लगता है, कोरोना इतने “पेलवान” देख कर डर गया, कायर है, छिप के वार करेगा। नही तो आमने सामने की लड़ाई और बोलचाल में अपने लोग अव्वल है। खैर, सब लोग अपनी अपनी कोशिश कर चुके है ,कॉलोनी में, की कोरोना बस एक बार मिल जाये। तो उसे हिंदी में समझा कर “ठीक” कर दिया जाए।उम्मीद है वह भी निराश नही करेगा।