उर्दू शायरी के बहुरुपिये का मंच छोड़ना!

Share on:

सोपान जोशी

उर्दू जुबान और उसकी शायरी पीछे मुड़ के देखती है, एक गुजरे जमाने की ओर। राहत इंदौरी उन इने-गिने शायरों में रहे, जिनकी वजह से नए लोगों के मन में उर्दू की जगह बन सकी। राहत ने जो जगह छोड़ी है, उसे ध्यान से देखने पर यह पता चलता है कि इसे कोई एक शायर नहीं भर पाएगा। लगभग नौ लाख लोग तो ट्विटर के नए और अटपटे संसार में उनकी हर उक्ति का इंतजार करते हैं। सत्तर साल के उर्दू प्रोफेसर और चित्रकार के लिए यह छोटी बात नहीं है। दुनिया भर के मुशायरों में उन्हें शरीक होने के बुलावे आते रहे हैं। जगह-जगह उनका सम्मान हुआ है। उर्दू का कोई दूसरा शायर आज नहीं होगा, जिसे मंच से सुनने के लिए इतनी बड़ी भीड़ में जवान लोग आते हैं।

महफिल लगाने वालों के लिए राहत इंदौरी का नाम भारी भीड़ जुटाने की जमानत रहा है, केवल उत्तरी भारत में ही नहीं बल्कि विदेश में हर उस जगह जहां भारतीय लोग पाए जाते हैं। उनकी जगह भरना इसलिए और भी कठिन है, क्योंकि पिछले कुछ साल राहत इंदौरी बहुरूप व्यक्तित्व के नाते उभर के आए हैं। उनका एक रूप है, मंच पर चढ़ के अपने तेवर और बयान के अंदाज से महफिल लूट लेने वाले अदाकार का। उनके आलोचकों की शिकायत रही है कि नए लोगों पर प्रभाव डालने के लिए उन्होंने लटके-झटके अख्तियार कर लिए थे कि किसी कवि की महानता उसकी लोकप्रियता भर से नहीं आंकी जा सकती। उनका इशारा कुछ ऐसे उथले संदर्भों की ओर है जिन्हें राहत मंच से युवा लोगों को उकसाने के लिए करते हैं, किंतु उनके आलोचकों में भी ऐसे लोग मिलते हैं, जो उनके अदबी काम को उनके मंच के पाठ से गहरा मानते हैं।

यह राहत का दूसरा रूप रहा है। उनके संपादक और प्रकाशक बताते हैं कि देवनागरी में छपे उनकी शायरी के संकलन हाथो-हाथ बिकते हैं। उनके कवित्त में कुछ ऐसा रहा है कि उनके चाहने वाले ही नहीं, उनके आलोचक भी एक बार के लिए अपनी समीक्षा वाली आंख किनारे कर के ‘वाह कह उठें। कई लोग कहते हैं कि राहत की रचनाओं को बिना उनका नाम जाना-पहचाना जा सकता है। कई मौकों पर उनके साथ मंच पर अपनी शायरी पढऩे वाले युवा शायर आलोक श्रीवास्तव, राहत की शायरी को वसीम बरेलवी और बशीर बद्र के साथ रखते हैं, दोनों ऐसे शायर हैं जिनके काम में ठहराव और रवानियत रही है।

राहत का तीसरा रूप रहा है मुंबई की फिल्मी दुनिया के गीतकार का। उनके लिखे गीत खूब चले हैं। संगीत निदेशक अनु मलिक उनकी गीतकारी की ओर बार-बार मुड़े, हालांकि परवेज़ अख्तर, ए.आर. रहमान और शंकर-एहसान-लॉय ने भी उनके गीत अपनी धुनों से सजाए हैं। ऐसा कोई शायर कुछ सालों में सामने नहीं आया, जो इन तीन तरह के संसार में अपना नाम जमा सके। मुशायरे का मंच, किताबी और गंभीर शायरी और फिल्मों की गीतकारी। राहत इंदौरी का जाना इन तीनों खानों में खाली जगह छोड़ गया है। कुछ सालों में उनकी सफलता का एक कारण हिंदी कवि कुमार विश्वास रहे हैं, जो उनके दोस्त भी रहे हैं और उन्हें नई पीढ़ी से जोडऩे वाले सेतु भी।
कुमार विश्वास कहते हैं कि उन्होंने पच्चीस साल में राहत को तीन हिस्सों में निखरते हुए देखा है। पहले एक उर्दू प्रोफेसर के नाते। फिर मंच लूटने वाले अदाकार के नाते और अंत में अतंरराष्ट्रीय ख्याति बंटोरने वाले शायर-ए-आजम के नाते। राहत के तेवर ने उन्हें राजनीति में सरकारों की अनीति का लोकप्रिय आलोचक तो बनाया ही, साथ ही उर्दू संसार की रूढि़ का विरोधी भी सिद्ध किया। इसीलिए अगर कोई उनकी तुलना दुष्यंत कुमार से करता है तो कोई पाकिस्तानी शायर जॉन एलिया से जिनकी शायरी में सत्ता संस्थानों का मजाक खूब पाया जाता है।

युवा लोग राहत की शायरी में वे सुर पाते रहे हैं, जो उनके अपने मन के तार में छिपे थे पर उभर के नहीं आते थे। भाजपा सरकार की सांप्रदायिक राजनीति से चिंतित लोगों को उनमें विरोध और हिम्मत मिलती रही है। वहीं ऐसे लोग भी हैं जो कहते हैं कि वे अपने विरोध में ज्यादती कर जाते हैं। उन्हें करीब से जानने वाले कहते रहे हैं कि राहत की चिंताएं सामाजिक हैं, सांप्रदायिक नहीं। यह तो सभी मानते हैं कि राहत इंदौरी ने उर्दू कविता के लिए नई जगह बनाई, नए लोगों के मन में जगह बनाई।

उनके पसंद करने वाले आलोचक ने एक बार यह जताया था कि भारतीय कविता में ऊंचाई का परिचय इससे मिलता रहा है कि आप दूसरों का सामना करने से पहले अपने आपका सामना कैसे करते हैं। उर्दू शायरी के सबसे ऊंचे नाम दूसरों की आलोचना के लिए नहीं याद किए जाते, बल्कि अपने आप पर हंसने के लिए माने जाते हैं। राहत इंदौरी की शायरी में इस रूप को ढूंढऩे वालों का कहना है कि इस बहुरूप शायर को इस ऊंचाई की ओर भी देखना था। फिर भी, राहत को चाहत तो खूब मिली। उन्हें चाहने वाले उनकी पंक्तियां कई सालों तक दुहराते रहेंगे।