मरने से पहले जीना सीख ले

Akanksha
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याद-ए-राहत/जयराम शुक्ल

मुन्नाभाई एमबीबीएस.. हाँ 2003 में रिलीज राजकुमार हिरानी की यह फिल्म शायद हममें से सभी ने देखी होगी…।

एक टपोरी (संजयदत्त) की बिंदास सहजता सबको नम कर देती है…लेकिन इस फिल्म की जान ..वह गाना है जो कैंसर से जिंदगी की उम्मीद छोड़ चुके युवा( जिम्मी शेरगिल) की इच्छा के अनुरूप मुन्नाभाई को गाते हुए फिल्माया गया।

इस गाने पर एक नर्तकी अपनी अदाओं से उस कैंसर पीड़ित को रिझाती है। यह गाना बेहद प्रभावी तरीके से गाया संगीतकार अनु मलिक ने।

गाने की पंक्तियों को गुनगुनाते हुए जानिए कि इस संवेदनशील दार्शनिक गीत के लेखक कौन थे..? जी..इस मर्मस्पर्शी गीत को लिखा है..राहत इंदौरी ने।

जब यह फिल्म मैंने देखी तो दो दृष्य स्थाई तौर पर मेरे मानस पटल पर अंकित हो गए एक यही जिसका मैंने उल्लेख किया दूसरा वह मकसूद भाई स्वीपर (सुरेन्द्र राजन ने यह किरदार निभाया) वाला।

जिन दिनों मैं दैनिक भास्कर भोपाल में था तो मेरे साथ बैठने वाले सहकर्मी थे आदिल कुरैशी। वे नेशनल न्यूज रूम में मुंबई से आने वाली फिल्मी खबरें देखते थे। उनसे फिल्मों पर बात होती थी..।

एक दिन मैंने ‘मुन्नाभाई एमबीबीएस’ के इस गाने का जिक्र करते हुए कहा- मुद्दतों बाद मैंने फिल्मों में इतना अर्थवान गीत सुना।

आदिल भाई खिल उठे- भैय्या ने लिखा है इसे..।
मैंने कहा मतलब..?
आदिल भाई बोले..राहत इंदौरी ने.. हाँ वे मेरे बड़े भाई हैं..।

अंतरमुखी आदिल भाई से राहत साहब पर खूब सारी बातें हुईं..। दोस्ती जब और गाढ़ी हुई तो मालूम हुआ कि आदिल भाई भी छुपे रुस्तम हैं..वे थियेटर के बेहतरीन अभिनेता हैं..और ‘डिस्कवरी चैनल’ के एपीसोडस में उन्होंने वाइसओवर किया..।

आदिल भाई ने भैय्या(राहत इंदौरी) से मेरी कई बार बातें कराई। राहत जी चकित थे कि मुझे उनके कोई चर्चित शेर याद नहीं लेकिन यह गीत मुहख्खर याद है..।

मैंने उन्हें बताया- मुझे जब यह गीत अच्छा लगा तब यह नहीं मालूम कि इसे आपने लिखा है..।

बहरहाल इसके बाद..राहत साहब को गंभीरता से सुनना शुरू किया..फिर एक बार जब उनसे भेंट हुई तब उनके कई शेर उनको ही सुना दिए..।

राहत साहब खरी- खरी कहने वाले बेपरहवाह शायर थे..शायद कैफ साहब की तरह। पर वे कैफ साहब के मुकाबले आज के जमाने के हिसाब से कुछ व्यवस्थित और सचेत थे।

फिल्मों के ग्लैमर से वे नीरजजी की तरह ही अभींजे थे..। श्रोताओं/दर्शकों की दाद और उनके शेअरों का विवाद ही उनकी पूँजी थी..।

राहत साहब व उनकी स्मृतियों को नमन करते हुए प्रस्तुत है..मुन्नाभाई एमबीबीएस.. का वही गाना..!

यार ज़रा माहौल बना
हर पर मैं उठा
सदियों का मज़ा
जो बीत गया सो बीत गया
जो बीतना है वो हँस के बिता

यार ज़रा माहौल बना
हर पल मैं पी बस एक दवा
जी खोल के जी
कुछ कम ही सही पर शान से जी

देख ले आखों में आखें डाल
सीख ले हर पल में जीना यार
सोच ले जीवन के पल हैं चार
याद रख मरणा है एक बार
मरने से पहले जीना सीख ले

देख ले आखों मैं
आखें डाल सीख ले

बाइयाँ खुशियों की
थाम के बाइयाँ
गम की मरोड़ कलाइयां
गम का यारों गम मत करना
छोड़ दे अब तो हर पल मरना
मरने से पहले जीना सीख ले

देख ले आखों में आखें डाल
सीख ले हर पल में जीना यार
सोच ले जीवन के पल हैं चार
याद रख मरणा है एक बार

बाइयाँ साँसों की खुद पे डाले
बाइयाँ जीवन है बर्फ की नैया
नैया पिघले हौले हौले
चाहे हँस ले चाहे रो ले
मरने से पहले जीना सीख ले.