दिलीप गुप्ते की कलम से
हिंदी फ़िल्मी गीतों में कभी कभी ऐसे शब्द आते हैं कि जिनका मतलब समझने के लिए शब्दकोश टटोलने पड़ते हैं. मज़े की बात यह कि ये गीत जनता की ज़बान पर चढ़ जाते हैं. ऐसे ही एक गीत ने आज से ७० साल पहले धमाल मचाई थी. १९४९ में आई फिल्म ‘एक थी लडकी’ के गीत ” लारा लप्पा लारा लप्पा” ने लोगों को पागल कर दिया था. वे बिना इसका मतलब जाने इस गीत पर नाचने लगे. पंजाबी टप्पे की तरह बनाया गया यह गीत फिल्म संगीत में नई बात थी. फ़िल्म में नायक मोतीलाल और नायिका मीना शौरी के बीच बहस होती है. तब मीना कहती है, आप तो लारा लप्पा करने लगे. नायक के मतलब पूछने पर वह कहती है, अब आप अड़ी टप्पा करने लगे. फिर वह अपनी ओर से लारा लप्पा का मतलब टालमटोल करना और अड़ी टप्पा का मतलब झगड़ा करना. बताती है. और फिर दफ़्तर में लड़के लड़कियाँ सवाल जवाब की तर्ज़ पर लारा लप्पा लारा लप्पा लाई रखदा, अड़ी टप्पा अड़ी टप्पा लाई रखदा गाने लगते हैं. दोनों पक्ष एक दूसरे पर आरोप लगाते हैं. लड़के “काम कुछ करती नहीं और बाँधती है साड़ियाँ ” गाते हैं. पंजाब से आए फ़िल्मकारों को साड़ी अजीब लगती थी . गाने का अंत आते आते रिद्म तेज़ हो जाती है.
फिल्म के सभी गीत अज़ीज़ कश्मीरी ने लिखे थे और संगीत दिया था विनोद ने. इनका असली नाम था एरिक्सन रॉबर्ट. इन्होंने कुछ और फ़िल्मों में संगीत दिया, पर ज्यादा चले नहीं. यह गीत निर्माताओं को इतना भाया कि अपनी अगली फिल्म ‘ढोलक’ में पहला गाना रखा, “लारा लप्पा लारा लप्पा गाए ला” और एक प्रसंग में नायक नायिका के स्वागत में बैंड पर बजवाया.
इस धुन को बॉब इज़्ज़ाम के गीत की नक़ल कहा गया. कुछ जानकार इसे अरबी गायक मोहम्मद फाउजी के गीत की नक़ल भी कहते है. भारतीय संगीतकारों ने भी इसे भुनाया. लेकिन जादू पैदा किया ओपी नैयर ने, नया दौर के गीत ” उड़े जब जब ज़ुल्फ़ें तेरी” के इंटरल्यूड में. मीना शौरी को बाद में लारा लप्पा गर्ल कहा जाने लगा.