जाने वास्तु में योग का महत्त्व

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डॉ तुषार खण्डेलवाल

गीता में श्री कृष्ण ने कहा है “ योगस्थ: कुरु कर्माणि ” अर्थात हमेशा योग में रहे . योग का अर्थ किसी भी सन्दर्भ में जोड़ या कहे जुडाव है. और साधारण शब्दों में हम जब योग की चर्चा करते है तो हमारा आशय हमारे पंच कोष अर्थात पांचो शरीरो ( स्थूल , प्राण , मन , ज्ञान और आनंद शरीर ) को स्वस्थ & उर्जावान रखने के लिए जो किया जाता है उससे रहता है.

जिसमे आसन से स्थूल शरीर , प्राणायाम से प्राण शरीर एवं ध्यान से मन शरीर को शक्तिशाली बनाया जाता है एवं तीनो के योग से ही हमें अपना संतुलित & उर्जावान शरीर प्राप्त होता है. आइये वास्तु योग को समझने से पहले वास्तु के बारे में क्या, क्यों, कैसे जानना आवश्यक है .

वास्तु क्या : कोई भी निर्माण हो वह वास्तु कहलाता है किन्तु जब निर्माण शास्त्र अर्थात वैज्ञानिक नियमो के आधार से किया जाता है तब भवन वास्तुशास्त्रानुसार कहलाता है . जैसे हमारे शरीर में हर अंग के लिए ईश्वर ने जगह निर्धारित की है , ताकि वह अपना कार्य सुचारू ढंग से कर सके और स्वस्थ रहे . ठीक उसी प्रकार भवन में वास्तुपुरुष का भी एक शरीर होता है जिसमे सभी एक्टिविटीज के उचित स्थान के कुछ  नियम है, ताकि भवन में होने वाली हर एक्टिविटी को प्रकृति का साथ मिले.

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वास्तु क्यों : हर भवन की एक उर्जा होती है जिसका हमारे शरीर से सीधा सम्बन्ध रहता है , यदि भवन धनात्मक उर्जा से युक्त है , तो वह हमें उर्जा देगा एवं यदि भवन नकारतमक उर्जा से युक्त है तो हमारे शरीर से उर्जा खींच लेगा . दुनिया की हर वस्तु पंच महाभूत अर्थात पंच तत्वों आकाश , वायु , अग्नि , जल और पृथ्वी से बनी होती है . उनमे केवल इन तत्वों का अनुपात भिन्न भिन्न होता है एवं उनसे एक स्पंदन निकलता है. वास्तु शास्त्र में ये पांचो तत्व अत्यंत महत्पूर्ण है . जैसे जल तत्व उचित स्थान पर होगा तब वह सूर्य की सुबह की धनात्मक किरणों से उर्जा ग्रहण कर लेगा , उस पानी का जब हम उपयोग करेंगे तब  वह उर्जा हमें ट्रान्सफर होगी .

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भवन का  सबसे ज्यादा क्रियाशील स्थान है आग्नेय कोण है,  जहा किचन का स्थान है,  जिसमे अग्नि प्रधान होती है , सूर्य की वह किरणे जो कीटाणु का नाश करने की शक्ति रखती है, दोपहर लगभग 1 से 3 बजे आग्नेय कोण में प्रवेश करती है और हमारा किचन कीटाणु मुक्त हो जाता है . इन्सान की सही नींद सबसे बड़ी जरुरत है वास्तु में एक्टिविटी के अनुसार बेडरूम के स्थान होने के अलावा किस दिशा में सर रखकर सोना चाहिए यह पूरा चुम्बकीय फील्ड पर  आधारित है , क्यूंकि हमारे शरीर में रक्त कण में लोह तत्व मौजूद रहते है तो उनका प्रवाह सही तरीके से होने से नींद अच्छी आती है.

कैसे : तो उर्जावान जीवन के लिए सबसे पहला कदम भूमि चयन होता है . जिसमे भूमि का आकार, भूमि की उर्जा कैसी है एवं उसकी उर्जा का घर के मालिक की उर्जा के साथ सामंजस्य कैसा है , जो आज वैज्ञानिक उपकरणों से ज्ञात किया जा सकता है . उसके बाद वास्तु से प्लानिंग की बारी आती है , जिसमे प्रवेश कहा से हो, बेड रूम किसके कहा कहा हो , किचन , पूजा , ड्राइंग रूम , टॉयलेट्स आदि के लिए कौन सी जगह उचित है वहा उन्हें इंटीरियर प्लान के साथ प्लान किया जाता है , साथ ही निर्माण में वास्तु अनुरूप मटेरियल का चयन भी अपना अत्यंत महत्व रखता है .

भूमि एवं प्लानिंग वास्तु के अनुसार होने के बाद अब शुरु होता है वास्तु योग :

अब यहाँ से वो मुद्दा शुरु होता है की क्यों कई बार वास्तु अनुरूप दिखने पर भी विपरीत परिणाम आ जाते है . तो पहले तो यह जानिए की जैसे हमारे शरीर में पंच ज्ञानेन्द्रिया ( आँख-देखना , नाक – सूघना , कान- सुनना , जिह्वा – स्वाद , और त्वचा – महसूस ) होती है जिससे हमें ज्ञान प्राप्त होता है और हम निर्णय  लेते है , ठीक उसी प्रकार वास्तु विज्ञानं में भवन में जो भी देखने वाली उर्जा जैसे रंग, तस्वीरे, वॉलपेपर, मुर्तिया , आदि से आती है , स्पर्श वाली उर्जा कैसा फ्लोर लगाया है आदि से आती है , कैसी गंध है, कैसी ध्वनि है , इन सब का जब सही वास्तु अनुरूप योग होता है तब ही हमारा शरीर भवन की उर्जा के साथ सामंजस्य बनाता है और स्वस्थ रहता है .

प्लास्टिक पेंट , पी. ओं. पी . वर्क , पी. वी. सी. की फ्लोरिंग , प्लास्टिक के फूल / नकली घास जिनका  अधिक प्रयोग जिन्हें हम या इंटीरियर जाने अनजाने  फैशन के अनुसार कर रहे है,  उनका दुस्प्रभाव आता है और सामान्यतः दिखने में वास्तु अनुरूप होने पर भी भवन में नकारात्मकता आ जाती है .

इन सब दुष्प्रभावो को वास्तु योग द्वारा ही रोका जा सकता है . ये भवन की आतंरिक प्रणाली को सक्षम बनाने का विज्ञान है , जो भवन की उर्जा इतनी धनात्मक  कर देता है की बड़ी बड़ी नकारात्मक उर्जा का असर रहने वालो पर  ज्यादा नहीं पड़ता  वास्तु शास्त्र के ग्रंथो में  “ गर्भ विन्यास विधानं ” एक अध्याय है जिसमे यह बताया गया है की भूमि एवं भवन का पदविन्यास ( कई भागो मै बांटे )  करे और भवन निर्माण में कॉलम व नीव में , कुर्सी हाइट पर विभिन्न प्रकार की उर्जाओ को जो उनका भोजन है , विभिन्न पदों में विभिन्न प्रकार से स्थापित करे .

जिससे की वास्तु भवन आतंरिक रूप से शक्तिशाली बनता है .ये 32 पद जो आज की भाषा में कह सकते है 32 प्रकार के एनर्जी रिसीवर्स है , जो ब्रह्माण्ड से उचित उर्जा , उचित स्थान पर आकर्षित कर भवन के विभिन्न अंगो को उनकी आवश्यकतानुसार पहुचाते है , ताकि हर अंग अपना कार्य सुचारू रूप से करे . वास्तु भवन उर्जावान होने पर हमें अच्छा स्वास्थ्य तो मिलता ही है . साथ ही सामंजस्य , समपन्नता, यश, आदि बाय प्रोडक्ट के रूप में मिलते  है . यही वास्तु योग है .