आजदी के अमृत महोत्सव में जानिए, आजदी से पहले ही किन जगहों पर लहराया था तिरंगा, क्या कहता है इतिहास ?

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बंगाल विभाजन के विरोध में 7 अगस्त 1906 को कोलकाता के पारसी बागान चौक में एक रैली का आयोजन किया गया था। इस दौरान यहां झंडा फहराया गया था। यह झंडा लाल, पीले और हरे रंग था। इसके सबसे ऊपर हरे, पीले और फिर लाल रंगी की पट्टी थी। पहली पट्टी पर कमल के फूल बीच वाली पट्टी पर वंदे मातरम और सबसे नीचे की पट्टी पर चांद और सूरज बना थे।

उत्तर प्रदेश के लखनऊ विश्वविद्यालय में साल 1937 में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। इसमें गवर्नर जनरल सर हेटली और तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत के भी शामिल होने का कार्यक्रम था। ऐसे में लविवि के अध्यक्ष रह चुके जय नारायण श्रीवास्तव ने अपने साथियों के साथ मिलकर विवि में झंडा पहराने की योजना बनाई, लेकिन स्वतंत्रता आंदोलन की आग को देखते हुए विवि की सुरक्षा व्यवस्था बहुत कड़ी थी। ऐसे में जय नारायण और उनके कुछ साथी एक दिन पहले ही विवि के कला प्रांगण की छत पर छिपकर बैठ गए। अलग दिन गवर्नर जनरल हेटली और मुख्यमंत्री पंत के आने से कुछ देर पहले उन्होंने ब्रिटिश झंडे को उतारकर तिरंगा पहरा दिया था।

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हरियाणा के झज्जर जिले का टाउन हाल आजादी का गवाह है। 15 जनवरी 1922 को स्वतंत्रता सेनानी पंडित श्रीराम शर्मा ने टाउन हाल पर लोगों की भीड़ के साथ यहां तिरंगा झंडा लहराया था। हालांकि, स्वतंत्रता सेनानी और उनके सहयोगियों को अंग्रेजी हुकूमत ने इसकी कठोर सजा दी। लोगों भीड़ पर लाठी चार्ज कर झंडा उतरवा दिया गया। वहीं, श्रीराम शर्मा को कोड़े मारे गए और जीप के पीछे रस्सी से बांधकर घसीटा गया, लेकिन यह यातना उनके हौंसले को नहीं तोड़ पाई।

मध्यप्रदेश के जबलपुर जिले में पहली बार अक्टूबर 1922 में विक्टोरिया टाउन हॉल पर तिरंगा फहरा दिया गया था। देश में आजादी के लिए लगातार आंदोलन हो रहे थे। असहयोग आंदोलन की सफलता के लिए कांग्रेस की एक समिति जबलपुर आई थी। शहर के विक्टोरिया टाऊन हॉल में आंदोलन को लेकर सदस्यों को अभिनंदन पत्र दिए जा रहे थे। इसी दौरान कुछ कार्यकर्ताओं ने टाउन हॉल की इमारत पर तिरंगा फहरा दिया गया। तब से यह तारीख इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई।