राज-काज:  कॉश! कमलनाथ पहले बदल लेते यह आदत…

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दिनेश निगम ‘त्यागी’

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ रिजर्व नेचर के लिए जाने जाते हैं। कॉरपोरेट शैली में काम की वजह से मुख्यमंत्री बनने के बाद भी उन्होंने मंत्रालय में बैठकर ज्यादा काम किया। न मंत्रियों, विधायकों से मिलने में दिलचस्पी ली, न जनता और मीडिया से। कांग्रेस छोड़ने वाले अधिकांश बागियों का यही आरोप था कि कमलनाथ के पास उनकी बात सुनने का समय ही नहीं था। नतीजा, कमलनाथ सत्ता से बाहर हैं और लोगों के बीच रहने वाले शिवराज सिंह चौहान सत्ता के अंदर। खास बात यह है कि सत्ता गंवाने के इतने समय बाद कमलनाथ को समझ आया कि काम की उनकी शैली ठीक नहीं है। इसीलिए पहली बार उन्होंने कहा कि अब वे सबसे मिलेंगे। सबकी बात सुनेंगे और सुझाव लेंगे। बस, मिलने के लिए उन्हें सिर्फ एक मैसेज करने की जरूरत है। कमलनाथ जी, काम की आदत में यह बदलाव यदि आपने मुख्यमंत्री बनने के तत्काल बाद कर लिया होता। आप महसूस कर लेते कि मुख्यमंत्री एसी कक्ष में बैठकर काम करने के लिए ही नहीं, जनता का सबसे बड़ा प्रतिनिधि भी होता है। उसे जनता के बीच ज्यादा होना चाहिए, तो शायद आज आप सत्ता से बाहर नहीं होते। आपने खुद को बदलने में में देर कर दी।

केंद्रीय नेतृत्व के दखल के बाद बनी बात….

– विधानसभा की 28 सीटों के उप चुनाव के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक गोविंद सिंह राजपूत एवं तुलसी सिलावट मंत्री बनेंगे, इसमें किसी को संदेह नहीं था। उम्मीद थी कि उप चुनावों के तत्काल बाद इनकी शपथ होगी। ऐसा नहीं हुआ, तब अचरज हुआ। ज्योतिरादित्य को इसके लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से चार दौर की बात करना पड़ी। उनकी पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेताओं से भी चर्चा हुई। तब जाकर राजपूत एवं सिलावट मंत्री बन सके। पर जैसा दिखाई पड़ रहा है, मसला वैसा है नहीं। दोनों की शपथ में विलंब की वजह है परिवहन विभाग को लेकर खींचतान। मुख्यमंत्री कमाई के सबसे बड़े स्त्रोत इस विभाग को अपने किसी खास मंत्री को देना चाहते थे। वे राजपूत को परिवहन छोड़कर कोई भी विभाग देने को तैयार थे। इसके विपरीत सिंधिया किसी भी हालत में परिवहन विभाग छोड़ने के लिए राजी नहीं थे। सरकार उनकी बदौलत बनी है, इसलिए जो वायदे हुए थे, वे उन पर अमल चाहते थे। खबर है कि भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को मामले में दखल देना पड़ा। तब बात बनी। ऊपर के निर्देश पर राजपूत और सिलावट की शपथ हुई। राजपूत को फिर राजस्व और परिवहन विभाग का दायित्व मिला।

सिंधिया समर्थक अफसर पर एक्शन के मायने….

– ग्वालियर नगर निगम के कमिश्नर संजीव कुमार माकिन को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के निर्देश पर तत्काल प्रभाव से हटा दिया गया और वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया चुप हैं। इसे लेकर अचरज है और अटकलों का दौर भी जारी है। इसलिए क्योंकि माकिन सिंधिया के पंसद के अफसर थे। कांग्रेस सरकार के दौरान उन्होंने ही उनकी नगर निगम कमिश्नर के पद पर पोस्टिंग कराई थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ ने एक बार उन्हें हटा दिया था तो इसकी गूंज भोपाल से लेकर दिल्ली तक सुनाई पड़ी थी। सिंधिया के कारण कमलनाथ को उनका तबादला रद्द करना पड़ा था। शिवराज ने माकिन को बेइज्जत कर हटाया। प्रदेश भर के अफसरों के बीच बैठक में उन्होंने नाराजगी जताते हुए मुख्य सचिव को निर्देश दिए कि बहुत हो गया, इनकी छुट्टी करो। इसके तत्काल बाद उनका तबादला आदेश जारी हो गया। इसके बाद भी सिंधिया चुप हैं। इसके मायने तलाशे जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री अपने खास मंत्री को परिवहन विभाग नहीं दे सके, इसलिए जवाब में उन्होंने सिंधिया को उनकी जगह बता दी। सच जो भी हो, पर अटकलें तो इसी तरह की चल रही हैं।

राम, लक्ष्मण, भरत को शत्रुघन की तलाश….

– प्रदेश का सागर ऐसा सौभाग्यशाली जिला है, जहां से तीन कद्दावर नेता मंत्रिमंडल में शामिल हैं। हाल ही में मंत्रिमंडल में शामिल ज्योतिरादित्य सिंधिया के सबसे खास गोविंद सिंह राजपूत पहली बार सागर पहुंचे। उनका जोरदार स्वागत हुआ। इस अवसर पर आयोजित स्वागत सभा को संबोधित करते हुए प्रदेश के पीडब्ल्यूडी मंत्री गोपाल भार्गव ने कहा कि अब तक हमारी राम-लक्ष्मण (गोपाल भार्गव-भूपेंद्र सिंह) की जोड़ी विकास के लिए संकल्पित थी। अब गोविंद राजपूत के रूप में तीसरा भाई भरत मिल गया। उन्होंने उम्मीद जताई कि हमें चौथा भाई शत्रुघन भी शीघ्र मिलेगा। अटकलें लग रही हैं कि आखिर शत्रुघन होगा कौन? भाजपा के अंदर से ही होगा या गोविंद राजपूत की तरह बाहर से आएगा। बहरहाल, राम, लक्ष्मण और भरत को लेकर कई तरह की चर्चाएं चल पड़ी है। पहली यह कि राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघन त्याग और समर्पण के लिए जाने जाते थे। जिन्हें न राजपाट का मोह था, न पत्नी-पुत्रों का। जबकि गोपाल भार्गव एवं भूपेंद्र सिंह के बीच राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता किसी से छिपी नहीं है। गोविंद अब तक कांग्रेस में थे और दो चुनाव में उनका भूपेंद्र से मुकाबला भी हुआ। नजर इस पर है कि भाईयों की यह नई जोड़ी कैसी होगी?

चर्चा के केंद्र में एक कक्ष की साज-सज्जा….

– प्रदेश भाजपा कार्यालय में एक कक्ष की साज-सज्जा का काम तेजी से चल रहा है। इतने बड़े कार्यालय में रेनोवेशन चूंकि सिर्फ एक कक्ष का हो रहा है, स्वाभाविक तौर पर इसलिए पार्टी के अंदर यह चर्चा के केंद्र में भी है। दरअसल, लंबे समय बाद कार्यालय के प्रभारी महामंत्री का दायित्व भोपाल के किसी नेता को मिला है। ये हैं भगवानदास सबनानी। कई उतार-चढ़ावों के बाद वे मुख्य धारा में आए हैं। इससे पहले अजय प्रताप सिंह रहे हों, विजेंद्र सिंह सिसोदिया या कोई अन्य, ये भोपाल से बाहर के रहे हैं। सबनानी अच्छे संगठक हैं और व्यवस्थित काम करने के लिए जाने जाते हैं। संभवत: इसलिए वे कार्यालय प्रभारी के कक्ष को ऐसा तैयार करा रहे हैं ताकि काम करने वाले स्टॉफ की अलग व्यवस्था हो और मिलने-जुलने वालों से वे अलग बैठकर बातचीत करें। इसलिए मीडिया कक्ष के एक हिस्से को कार्यालय प्रभारी के कक्ष में शामिल किया जा रहा है। इस हिस्से में सबनानी का स्टॉफ बैठेगा। खबर है कि भोपाल का होने के नाते प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा को कार्यालय से संबंधित जवाबदारी सबनानी को ही सौंपी है। साफ है कि आने वाले समय में संगठनात्मक कार्यों में सबनानी मुख्य भूमिका निभाने वाले हैं।