खंडवा लोकसभा उपचुनाव : स्थानीय नेताओं ने बिगाड़ा अरूण यादव का समीकरण

Shivani Rathore
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इंदौर (Indore News) : नंदकुमार सिंह चौहान के अवसान के बाद रिक्त हुई खंडवा लोकसभा सीट पर रस्साकशी का दौर अपनी चरम पर है। बात कांग्रेस की करे तो कुछ दिन पहले अरूण यादव का नाम उनके समर्थकों ने खूब जोरशोर से चलाया था। संभावना भी लगभग तय ही मानी जा रही थी मगर कमलनाथ ने पिछले दिनों यह कहते हुए उम्मीदों पर पानी फैर दिया कि अभी कुछ भी तय नहीं हुआ। बहरहाल पीसीसी चीफ का यह बयान बहुत सोची समझी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।

इसके पीछे प्रमुख कारण स्थानीय नेताओं का दबाव है जो किसी भी सूरत में अरूण यादव को नहीं चाहते। उधर संगठन के रवैये से नाराज यादव गुरूवार को प्रदेश प्रभारी मुकुल वासनिक की मौजूदगी में हुई बैठक में नहीं पहुंचे। दरअसल बीते पांच सालों में खंडवा कि सियासत में खासा बदलाव आ चुका है। इतने सालों में अरूण यादव के समर्थक क्षत्रप जहां कमजोर हुए वही विरोधियों की ताकत में भी खासा इजाफा हुआ है। यहीं कारण है कि खंडवा की चार विधानसभा क्षेत्रों में उन्हें सीधे विरोध का सामना करना पड़ रहा है। बदले हालातों में यादव के अलावा तीन नए नाम टिकट की दौड़ में जुड़ गए है।

एक नाम था अब टिकट की दौड़ में चार नाम –
उप चुनाव की सुगबुगाहट शुरू होने के वक्त सिर्फ अरूण यादव का नाम चर्चा में था। जैसे जैसे विरोध तेज हुआ टिकट की दौड़ में चार नाम चर्चा में आ गए। इस सीट से सुरेंद्र सिंह शेरा ने अपनी पत्नी के टिकट के लिए अड़ गए। वही सचिन बिड़ला का भी नाम अब चर्चा में है। इनके अलावा खरगोन से विधायक रवि जोशी का नाम पिछले कुछ दिनों से काफी तेजी से सामने आया है। एक चौकाने वाला नाम आरटीआई एक्टिविस्ट डॉ आनंद राय का भी है।

खुद के बोए बीज पहुंचा रहे नुकसान –
खंडवा के स्थापित मजबूत नेता नंदकुमार सिंह चौहान को 2009 में पराजित कर अरूण यादव पार्टी में एक सितारा बन कर उभरे थे। इस दौर में उन्होंने स्थानीय सियासत में सिर्फ अपने लोगों को उपक्रत किया। जिससे चलते पार्टी का एक बड़ा धड़ा यादव के विरोध में खड़ा हो गया। 2014 के चुनाव में पराजय के बाद भी यादव ने अपना रवैया नहीं बदला। इसका खामियाजा उन्हें 2019 के चुनाव में भी उठाना पड़ा। यादव के खुद के बोए बीज उन्हें अब नुकसान पहुंचा रहे है। हालात यह है कि सूबे की आठ विधानसभा में से चार में यादव का खुल कर विरोध हो रहा है। यही कारण है कि संगठन गंभीरता से नए विकल्पों को खोजने में जुट गया है।

जिन्हें कमजोर किया वही खड़े है विरोध में –
यादव के टिकट का सबसे पहले विरोध बुरहानपुर से निर्दलीय विधायक सुरेंद्र सिंह शेरा ने किया। उन्होंने पार्टी संगठन से स्पष्ट कर दिया कि पहला दांवा उनका खुद का है। शेरा इस सीट से अपनी पत्नी का टिकट चाहते है। उन्होंने यादव को छोड़ किसी भी नेता को टिकट दिए जाने की शर्त भी पार्टी के सामने रखी है। विरोध में वरिष्ठ नेता राजनारायण सिंह और उनके पुत्र उत्तमसिंह भी खड़े है। गौरतलब है कि यादव समर्थक रहे मांधाता विधायक नारायण पटेल पाला बदल कर भाजपा में चले गए। उपचुनाव में पटेल ने कांग्रेस के उत्तमपाल सिंह को हरा दिया था। बड़वाह विधानसभा में हालात कुछ ऐसे ही है। मौजूदा विधायक सचिन बिड़ला खुल कर यादव कर रहे है। कारण साफ है बिड़ला के टिकट कटवाने के लिए यादव ने एड़ी चोटी का जोर लगा दिया था। भीकनगांव की स्थिति भी कुछ ठीक नहीं यादव विरोधी विधायक झुमा सोलंकी भी अपनी मंशा से संगठन को अवगत करवा चुकी है।

यादव समर्थक क्षत्रपों का खत्म होता प्रभाव –
खंडवा की जिन चार विधानसभा सीटों पर यादव का विरोध स्थानीय स्तर पर खड़ा हुआ है वहा कभी यादव समर्थक क्षत्रपों की तूती बोला करती थी। समय के साथ साथ जहां ये क्षत्रप कमजोर हो गए वही यादव विरोधियों की जड़े क्षेत्र में मजबूत होती रही। खास बात यह रही कि यादव अपने समर्थकों खास कर नए लोगों को साथ नहीं जोड़ पाए।

बुरहानपुर – यादव समर्थक अजय रघुवंशी स्थानीय स्तर पर काफी कमजोर पड़ गए है। यहां से सुरेंद्र सिंह शेरा ने ना सिर्फ निर्दलीय रूप से चुनाव जीता बल्कि कांग्रेस के एक बड़े तबकों को अपने साथ जोड़ लिया है। सिंधिया के साथ जाने वालों में शेरा का नाम चला था मगर उन्होंने पार्टी से नाता नहीं तोड़ा। कमलनाथ उन्हें उपक्रत करते मगर सरकार चली गई। अपनी उसी बफादारी का इनाम शेरा उप चुनाव में चाह रहे है।

भीकनगांव – वरिष्ठ नेता तोताराम महाजन सुभाष यादव के जमाने से यादव परिवार के फर्माबरदार रहे है। भीकनगांव के साथ महाजन की दखलंदाजी पंधाना में भी रहती आई है। अरूण यादव के सांसद बनने के बाद यह दखलंदाजी और बढ़ गई। पार्टी में उठ रही नाराजी पर यादव ने ध्यान नहीं दिया। स्थिति यह बनी कि झुमा सोलंकी सहित तमाम स्थानीय नेता यादव के विरोध में खड़े हो गए।

बड़वाह – सुभाष यादव के कट्टर समर्थक रहे पूर्व सांसद ताराचंद पटेल का कभी इस विधानसभा में दबदबा माना जाता था। बुरहानपुर, भीकनगांव, पंघाना में यादव के बढ़ते विरोध का असर बड़वाह में भी हुआ। सचिन बिड़वा सहित तमाम नेता एकजूट हो गए जिससे पटेल का प्रभाव शून्य हो गया। विधानसभा चुनाव में पैदा हुई सियासी अदावतों का असर और गहरा गया है।

मांधाता – इस सीट पर यादव के खास समर्थक नारायण पटेल विधायक चुने गए थे। अचानक पटेल ने पैतरा बदला और सिंधिया के साथ भाजपा में शामिल हो गए। उप चुनाव में वे भाजपा के टिकट पर मैदान में उतरे और उनके मुकाबले में कांग्रेस ने वरिष्ठ नेता राजनारायण सिंह के पुत्र उत्तमपाल सिंह को उतारा था। इस चुनाव में कांग्रेस को मिली हार का जिम्मेदार राजनारायण सिंह यादव को ठहरा रहे है।