केरोसिन से जलने वाला स्टोव

Deepak Meena
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जिस समय, गैस सिलेंडर से जलने वाले चूल्हों का आगमन, हमारे घरों में नहीं हुआ था, तब ये घासलेट से काम करने वाले स्टोव महाशय ही, हम सबके ज्यादातर घरों की, एक बहुत बड़ी सुविधा हुआ करते थे। अन्य धातुओं से बने स्टोव की अपेक्षा, शुद्ध पीतल की टंकी वाला स्टोव, जिस भी घर में पाया जाता था, उसका फैमिली स्टैंडर्ड जरा हाई माना जाता था। इस स्थिति को बेहतर तरीके से महसूस करते हुए, तब बहुत से घरों में, उस पीतल टंकी के स्टोव को, किसी भी सुयोग्य माध्यम से चमकाकर, एकदम चकाचक ही रखा जाता था। ताकि, घर की शोभा वृद्धि होती रहे और देखने वालों पर, इंप्रेशन भी जम सके ।

इस स्टोव में, एक अति महत्त्वपूर्ण पार्ट्स के नाते, एक बेहद छोटी साइज का पुर्जा, जिसे स्टोव की शब्दावली में ‘लौंग’ कहा जाता था, जो कि, उस स्टोव को जलाए रखने में, अपनी बहुत बड़ी साइज की भूमिका निभाता था, लगा रहता था। इसी के साथ, इस लौंग में फंसे कचरे को साफ़ करने के लिए, एक अत्यंत दुबली और पतली काया की ‘लोहे की पीन’ भी, स्टोव का जरूरी उपकरण हुआ करती थी। प्रायः इसकी मौजूदगी, प्रत्येक स्टोव वाले घर में, अनिवार्य रूप से रहा करती थी। अन्यथा पड़ोसियों से भी उधार मांगकर, काम निकाल लिया जाता था।

प्रत्येक स्टोव का, यह परंपरागत आचरण रहता था कि, वह उसे जलाने के सर्वप्रथम प्रयास में, अकसर नहीं जला करता था। उसे जलाने के दौरान, उसके द्वारा, नाना प्रकार की अदाएं दिखाने के बाद, जब उसका उक्त लौंग, उक्त पीन से साफ़ कर दिया जाता था, तो उस स्थिति में, वह स्टोव अपनी समूची दुष्टता को त्यागकर, संपूर्ण सज्जनता को अपनाते हुए, अपना काम करने लगता था।

इसके बावजूद भी, यदि वह लौंग, अपना बेमतलब का अतिरिक्त रूतबा दिखाने से बाज़ नहीं आता, तो उसे खोलकर, बाहर निकालते हुए, साफ़ करने के लिए, एक छोटा पाना भी ईजाद हो गया था। यह भी लगभग प्रत्येक स्टोव वाले घर में मिल जाता था। इसके माध्यम से, उस लौंग को खोलकर, उपयुक्त रास्तों से, घर का कोई भी पुरुष सदस्य, उसे बेहतर तरीके से स्वच्छ करके, पुनः यथास्थान स्थापित कर देता था। सुधार की इस अंतिम प्रक्रिया को अपनाने के बाद, वह स्टोव, अपना सारा इतराना भूलकर, शानदार तरीके से जलने लगता था। जिस भी घर में, जिस भी युवा पीढ़ी द्वारा, उक्त लौंग को, उस पाने द्वारा खोलकर साफ़ किया जाता था, उसे अपने परिवार में एक कुशल इंजीनियर का सम्मान मिलने लगता था। साथ ही, उसके इंजीनियर बनने की संभावनाएं , बलवती हो जाती थीं।

अनेक विशेषताएं होने के बाद भी, इस स्टोव में, एक ज्यादा बड़ी बुराई यह रहती थी कि, जिस प्रकार वर्तमान के ज्यादातर टीवी समाचार चैनल्स में, तमाम राजनीतिक दलों के प्रवक्तागण, राजनीतिक बहस के नाम पर, जिस तरह का परस्पर झगड़ा करते हुए, जो कर्कश शोर मचाते हैं, ठीक उसी प्रकार का कानफोडू शोर, तब यह स्टोव भी किया करता था। अब तो केवल उसकी मधुर यादें ही शेष हैं।

इस प्रस्तुति पर, पाठकों के अनुभवों का सम्मान है।

लेखन-
ललित भाटी, इंदौर।
मोबाइल नंबर,
98270,08628.