अजय बोकिल
जहां देश में सोने के भाव लगातार बढ़ते जा रहे हैं, वहीं दक्षिणी राज्य केरल में सोना तस्करी कांड ने मुख्यमंत्री पी. विजयन का चैन छीन लिया है। पिछले दिनो राज्य में पकड़े गए 30 किलो सोने के बाद जहां देश में सोने की तस्करी के एक नए रास्ते का खुलासा हुआ, वहीं इसकी आंच सीधे विजयन सरकार पर आ रही है। हालांकि मामला उजागर होने के बाद मुख्यमंत्री ने अपने प्रमुख सचिव एम शिवशंकर को सस्पेंड कर दिया। इस मामले में मुख्य आरोपी स्वप्नप्रभा सुरेश सहित 16 लोगों को पकड़ा गया है। मामले की जांच एनआईए एवं राज्य की क्राइम ब्रांच कर रही है।
कूटनीतिक रास्ते से सोने की इतने बड़े पैमाने पर तस्करी इस बात जो उजागर करती है कि सोना तस्करों की पहुंच कहां तक है। खास बात यह है कि इसमें संयुक्त अरब अमीरात ( यूएई) दूतावास की भूमिका भी संदिग्ध है। विपक्ष का आरोप है कि माकपा नेताअों और सोना तस्करों के बीच साठगांठ है। बेशक इस सोना तस्करी कांड ने सीएम विजयन की कोरोना लड़ाई में कमाई प्रशंसा को धक्का पहुंचाया है। विपक्षी कांग्रेस नीत यूडीएफ और भाजपा मुख्यमंत्री से नैतिक आधार पर इस्तीफा मांग रहे है कि सोना तस्करों से सत्तारूढ़ पार्टी के सम्बन्ध है। हालांकि इस प्रकरण में माकपा पूरी तरह सीएम विजयन के साथ खड़ी है, लेकिन पार्टी की चिंता यह है कि अगर यह मामला जल्द ठंडा नहीं हुआ तो इसका विपरीत असर अगले साल मई में होने वाले विधानसभा चुनाव पर पड़ सकता है। कोरोना की कमाई सोना छीन सकता है।
मामला उन दिनो का है, जब देश गलवान घाटी में उलझा था। लगभग उसी वक्त केरल से एक चौंकाने वाली खबर आई कि तिरुवनंतपुरम अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से कस्टम अधिकारियों ने 15 करोड़ कीमत का 30 किलो सोना बरामद किया है। यह सोना यूएई के वाणिज्य दूतावास के लिए आए शौचालयों में इस्तेमाल होने वाले उपकरणों से भरे बैग में रखा हुआ था। इस तस्करी के आरोप में संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के वाणिज्य दूतावास के एक पूर्व कर्मचारी को हिरासत में लेकर उससे पूछताछ की गई। खबर यह भी चली कि केरल सीएम कार्यालय में तैनात एक आला अफसर ने हवाई अड्डे पर यूएई के वाणिज्य दूतावास के पूर्व कर्मचारी की मदद करने की कोशिश की थी।
इस मामले पर राजनीतिक बवाल मचना ही था। कथित रूप से मुख्यमंत्री की नाक के नीचे हुई इस तस्करी को लेकर विपक्ष ने सरकार को घेरना शुरू किया। मुख्यमंत्री ने जांच कमेटी बनाकर अपने एवं सूचना प्रौद्योगिकी प्रमुख सचिव एम शिवशंकर को सस्पेंड कर दिया।
बताया जाता है कि इस आईएएस अधिकारी के सोना तस्करी के आरोप पकड़ी स्वप्नप्रभा से रिश्ते हैं। उधर यूएई दूतावास के एक संदिग्ध कर्मचारी ने भी देश छोड़ दिया। वरिष्ठ कांग्रेस नेता रमेश चेन्निथला ने यह आरोप लगाते हुए मामले की सीबीआई जांच की मांग की कि मुख्यमंत्री कार्यालय ‘अपराधियों का अड्डा’ बन गया है। जबकि भाजपा प्रमुख के. सुरेंद्रन ने आरोप लगाया कि इस सोनाजब्ती के बाद सीमाशुल्क अधिकारियों के पास मुख्यमंत्री कार्यालय से फोन आया था। मुख्यमंत्री विजयन ने विपक्ष के आरोपो को खारिज करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री कार्यालय ने भ्रष्टाचार में शामिल लोगों के साथ कभी कोई संवाद नहीं किया। राज्य की जनता यह जानती है। उन्होंने कहा कि इस मामले में जो इसमें शामिल होंगे , नहीं बच पाएंगे।
सोना खरीदना, पहनना, रखना भारतीयों का पुराना शौक है, जो कोरोना काल में भी कम नहीं हुआ। भारत हर साल करीब 1 हजार टन सोना विदेशों से आयात करता है। इसमें से भी लगभग 200 टन सोना तस्करी के जरिए आता है। इस तस्करी के लिए यूएई बहुत मुफीद माना जाता है। लेकिन कूटनीतिक रास्ते से इतनी बड़ी तादाद में सोना पहुंचना सभी के लिए चौंकाने वाला है। यह सोना संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के महावाणिज्य दूतावास के एक राजनयिक के नाम एयर कार्गो के जरिए भेजा गया था। इस मामले में पुलिस ने सरित, स्वप्ना व संदीप को गिरफ्तार किया है। एक अन्य आरोपी फैजल फरार है। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) का कहना है कि देश में आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए सोना तस्करी की जा रही थी। इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आइयूएमएल) विधायक एम. उमर ने भी केरल विधानसभा अध्यक्ष पी. श्रीरामकृष्णन पर सोना तस्करी के आरोपी से संबंध रखने का आरोप लगाते हुए उन्हें पद से हटाए जाने की मांग कर दी है।
सोना तस्करी का 76 वर्षीय मुख्यमंत्री विजयन का सीधा कोई सम्बन्ध नहीं लगता। उनकी पार्टी माकपा इस घटनाक्रम के लिए मोदी सरकार को ही जिम्मेदार ठहराया है। उसका कहना है कि केन्द्र सरकार ने यूएई के राजनयिक को स्वदेश भाग जाने दिया, जबकि सोना तस्करी कांड की जांच अभी चल रही है। इस मामले की प्रमुख आरोपी स्वप्ना सुरेश पर आरोप है कि वह एक स्पेस प्रोजेक्ट पर काम रही थी, जिसका सम्बन्ध सूचना प्रौद्योिगकी विभाग से था। जिसके पीएस और मुख्यमंत्री के भी प्रमुख सचिव पी. शिवशंकर थे।
कुछ लोग इस कांड की तुलना राज्य में पुराने 10 करोड़ के सोलर स्कैंडल से कर रहे हैं, जिसमें तत्कालीन विपक्षी माकपा ने पूर्व मुख्यमंत्री अोमन चांडी से इस्तीफा मांगा था। इस पूरे घटनाक्रम से प्रदेश में राजनीतिक उथलपुथल बढ़ गई है। विपक्ष सोना तस्करी कांड को सियासी स्वर्ण अवसर के रूप में देख रहा है। हालांकि करीब एक हफ्ते पहले किए गए एक सर्वे में कहा गया था कि राज्य में अगर अभी चुनाव होते हैं तो वाम मोर्चे को कुल 140 सीटों में से 77 से 83 सीटें तक मिल सकती हैं।
इस सोना तस्करी मामले का सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि सोना उस कूटनीतिक मार्ग लाया जिसमें विदेशी राजनयिकों की कोई जांच नहीं होती और जिनके खिलाफ कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं किया जा सकता। यह तस्करी का सबसे सुरक्षित मार्ग है। विपक्षी कांग्रेस और भाजपा इस आधार पर सीएम से इस्तीफा मांग रहे हैं कि इस तस्करी मामले की प्रमुख आरोपी स्वप्ना की मुख्यमंत्री कार्यालय से नजदीकियां थीं। स्वप्ना यूएई में पली बढ़ी है तथा वह यूएई कौंसुलेट जनरल के कार्यालय में बतौर कार्यकारी सचिव काम कर चुकी है। उसके खिलाफ कुछ और मामले भी बताए जाते हैं। स्वप्ना के साथ संदीप नायर भी इस मामले में आरोपी है।
वैसे राज्य के मुख्यमंत्री पी. विजयन पहले भी ऐसे कई आरोपों का सामना कर चुके हैं। लेकिन इस बार मामला थोड़ा अलग है। अगर यह सोना प्रकरण जल्द ठंडा नहीं हुआ तो इसका असर अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव पर पड़ सकता है। हालांकि केरल में अमूमन हर चुनाव में सत्ता परिवर्तन की परंपरा है। या तो वाम मोर्चा सत्ता में आता है या फिर लोकतांत्रिक मोर्चा। इस हिसाब से नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस नेता रमेश चेन्नीथला का विजयन से इस्तीफा मांगना और पूरे मामले की सीबीआई जांच की मांग करना सही राजनीतिक चाल है। इसी बीच सोना तस्करी प्रकरण में प्रदेश की राजनीति में जगह बनाने की कोशिश में जुटी भाजपा भी अपनी संभावनाएं तलाश रही है। लिहाजा लेफ्ट की सरकार को कटघरे में खड़ा करने का कोई मौका वह नहीं चूकेगी।
सरकार की चिंता यह भी है कि केरल में कोरोना से शुरूआती सफल लड़ाई के बाद अब पाॅजिटिव मामले बढ़ने लगे हैं। दूसरी तरफ विपक्ष जनता के असंतोष पर सोने का पानी चढ़ाने की कोशिश में जुट गया है। राज्य में विरोध स्वरूप कांग्रेस, मुस्लिम लीग और भाजपा के प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। देखने की बात यही है कि यह सोना तस्करी प्रकरण राजनीतिक रूप से किसके गले का हार बनेगा और किसका पानी उतार देगा। अगर लेफ्ट का यह आखिरी गढ़ भी ढहा तो उसकी मुश्किलें और बढ़ेंगी।