सांसों का बीज गणित -ज़िंदादिली बनाये रखिये, संक्रमण तो चला ही जाएगा !

Mohit
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पंकज मुकाती – पूरी ज़िंदगी बस सांसें लेते रहे। बिना किसी बहीखाते के। याद ही नहीं कभी उसकी कोई गिनती की हो। और अपना गणित तो कमजोर ही रहा। हिसाब की किताब भी कभी खोली ही नहीं। फिर अचानक एक दिन सांसों का बहीखाता खुल गया। जाहिर है मर्जी से नहीं ही खुला। गणित से जी चुराने वाले के लिए एक नया गणित। वो भी जरुरी। ज़िंदगी के लिए। स्कूल में गणित में कृपांक से पास होते रहे। सांसों के गणित की परीक्षा में भी ऐसे ही परिवार, दोस्तों, दृश्य, अदृश्य चाहने वालों की दुआ कृपांक बनकर ज़िंदगी की मार्कशीट पर चस्पा हुई। ज़िंदगी में आये संक्रमण की परीक्षा में भी पास हो गए।

स्कूल वाला ज़ज़्बा आज तक कम नहीं हुआ। अपना तो परीक्षा परिणाम भी चौकाने वाला ही रहा। उसकी छाया ज़िंदगी में अलग कैसे रहती। स्कूल में गणित में कृपांक और बाकी सभी विषयों में डिस्टिंक्शन मिलता रहा। गणित को भूल गर्व से बाहर आकर ख़ुशी मनाते और कहते कि गणित ही जीवन नहीं है। वही हिसाब-किताब अब तक जारी है। अस्पताल से भी उसी डिस्टिंक्शन के साथ छाती फुलाकर बाहर निकले। वहां भी डॉक्टर्स से यही कहते रहा-गणित ही जीवन नहीं है। सीटी स्कैन में आये संक्रमण के स्तर से मुझे फर्क नहीं पड़ता।

मैं तो 19 /25 के सीटी स्कोर के गणित को नहीं बाकी विषयों में डिस्टिंक्शन वाला आदमी हूँ। जब मैंने अरविन्दों के डॉक्टर रवि दोशी जी से कहा ये 19 /25 को आप ही सुलझाओ। वे बोले कैसा महसूस कर रहे हो -मैंने कहा फिजिकली, मेंटली एक दम फिट। उन्होंने अपने चौकोर चश्मे से आँखे घुमाई। बोले -फिर ठीक है। इसे बनाये रखो। यहाँ 30-35 परसेंट इन्फेक्शन वाले भी बिस्तर से उतरने का साहस नहीं कर रहे।

अब पूरे बहीखाते की बारी। मुझे पहले दिन बुखार आया। टेस्ट कराया। पॉजिटिव आया। सीटी स्कैन में स्कोर 2/25 आया। डॉक्टर ने बोला बहुत माइल्ड है। घर में रहिये। बड़ी ख़ुशी हुई। बच गए। 24 घंटे में फिर बुखार आया। फिर सीटी स्कैन। इस बार सीटी बच गई। ख़ुशी काफूर। सीटी स्कैन का स्कोर 15 /25 आया। यानी 2 से सीधे 15 शेयर मार्केट के उछाल, रोहित शर्मा की बल्लेबाजी, शूमाकर के फर्राटे से भी तेज़ी से 24 घंटे में ही सीटी स्कोर ने वो उड़ान भरी कि डॉक्टर भी हैरान। अपन जैसे दो में वैसे पंद्रह में।

फिर अस्पताल की खोज। पूरी हो ही गई। जरुरी इंजेक्शन लगे। लगा अब तो ठीक हो ही जाएंगे। अंगुलियों में छोटी सी मशीन लगाकर नापतौल शुरू हुआ। पर गणित ने यहाँ भी पीछा नहीं छोड़ा। जरुरी इंजेक्शन के बाद छठवें दिन फिर सीटी स्कैन हुआ। अब जो हुआ उसने उम्मीदों को क्लीन बोल्ड कर दिया। सीटी स्कैन में संक्रमण बढ़ गया। उसका हिसाब अब 70 फीसदी में बदला। परिवार में नील /सन्नाटे का भाव। फिर अँगुलियों में मशीन से साँसों का पहाड़ा और तेज़ पढ़ना शुरू हुआ। पर 70 फीसदी में उलझने के बजाय मैं सौ फीसदी ज़िंदगी की तरफ ही झुका रहा। जब-जब अंगुली पर वो ऑक्सीमीटर लगाया। उसका नंबर मेरे पक्ष में बढ़ता गया। जब भी उसका अंक 97 को छूता लगता। लगता सारे करीबी मिलकर मेरे लिए यही पहाड़ा पढ़ रहे हैं, दो दूनी चार, चार दूनी आठ। बस इन्हीं दुआओं के पट्टी पहाड़े के साथ आज स्वस्थ हूँ। ज़िंदगी के बीज गणित का सार यही है -बस ज़िंदादिली बनाये रखिये। आप सबका शुक्रिया।