वन अफसरों की मिलीभगत से सुप्रीम कोर्ट में दायर विशेष अनुमति याचिका वापस लेने की तैयारी, शिकायती पत्र वन भवन को किया प्रेषित
भोपाल/कटनी। मध्यप्रदेश के कटनी जिले के वन क्षेत्र ग्राम झिन्ना तहसील ढीमरखेड़ा की 48.562 हेक्टेयर भूमि को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। तकरीबन 120 एकड़ की इस वन भूमि पर कटनी के खनन कारोबारी आनंद गोयनका की गिद्ध नजर है। शायद इसलिए तो वन अफसरों की मिलीभगत से सुप्रीम कोर्ट में दायर विशेष अनुमति याचिका वापस लेने की साजिशें रची जा रही हैं। इस संबंध में एक शिकायत मुख्यमंत्री को की गई थी जिसकी जांच वन मंडल कटनी द्वारा की गई। जिस पर वन मंडल ने अग्रिम कार्यवाही करते हुए पत्र को भोपाल स्थित वन भवन के हवाले कर दिया।
क्या है मामला-
शिकायती पत्र के मुताबिक, कटनी के खनन कारोबारी आनंद गोयनका मेसर्स सुखदेव प्रसाद गोयनका को मध्य प्रदेश की तत्कालीन दिग्विजय सरकार के कार्यकाल में 1994 से 2014 तक की अवधि के लिए 48.562 हेक्टेयर भूमि पर खनिज करने का पट्टा मिला था। खनिज पट्टा आवंटित होने की पीछे भी बहुत कुछ छिपा है। दरअसल मध्य प्रदेश शासन ने ग्राम झिन्ना तहसील ढीमरखेड़ा जिला कटनी के वन क्षेत्र की 48.562 हेक्टेयर भूमि पुराना खसरा नम्बर 310, 311, 313, 314/1, 314/2, 315, 316, 317, 318, 265, 320 में खनिज के लिए एक अप्रैल 1991 में 1994 से लेकर 2014 तक की अवधि के लिए निमेष बजाज के पक्ष में खनिज पट्टा स्वीकृत किया था। जिसे वर्ष 1999 में मध्य प्रदेश शासन के खनिज विभाग के आदेश से 13 जनवरी 1999 को उक्त खनिज पट्टा मेसर्स सुखदेव प्रसाद गोयनका प्रोप्राइटर आनंद गोयनका के पक्ष में हस्तांतरित किया गया। लेकिन साल 2000 में वन मंडल अधिकारी कटनी के पत्र के आधार पर कलेक्टर कटनी ने आदेश पारित कर लेटेराइट फायर क्ले और अन्य खनिज के खनन पर रोक लगा दी थी।
वन भूमि का इतिहास-
ग्राम झिन्ना की भूमि जमींदारी उन्मूलन के बाद वन विभाग को वर्ष 1955 में 774.05 एकड़ भूमि प्रबंधन में मिली थी। जो वर्ष 1908-09 से 1948-49 तक जमींदार रायबहादुर खजांची, बिहारी लाल व अन्य के नाम दर्ज थी जिसे 10 जुलाई 1958 की सूचना और एक अगस्त 1958 की प्रकाशन तिथि से संरक्षित वन घोषित किया गया। इसके बाद भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 4 की अधिसूचना क्रमांक डी-3390-3415-07-दस-3 दिनांक 24 सितम्बर 2007 प्रकाशन दिनांक 14 दिसम्बर 2007 से वनमंडल झिन्ना के अंतर्गत ग्राम झिन्ना के खसरा नम्बर 304, 333, 320 में कुल रकबा 153.60 एकड़ क्षेत्र अधिसूचित कर एसडीएम ढीमरखेड़ा को वन व्यवस्थापन अधिकारी नियुक्त किया गया जो कि वन विभाग के रिकॉर्ड में दर्ज है। वर्ष 2019-19 में एसडीएम ढीमरखेड़ा (वन व्यवस्थापन अधिकारी) द्वारा राजस्व प्रकरण क्रमांक /01अ-19(4)/2018-19 में पारित आदेश दिनांक 18-9-2019 के अंतर्गत उल्लेख किया गया कि वादग्रस्त भूमि खसरा नम्बर 320 वर्ष 1906 से 1951 तक मालगुजारी की जमीन नहीं थी। एसडीएम ढीमरखेड़ा (वन व्यवस्थापन अधिकारी) द्वारा पारित आदेश दिनांक 18-07-2008, 18-10-2011 और 18-09-2019 को पारित प्रत्येक आदेश में उक्त भूमि को वन भूमि मानने से इंकार किया। जिसे कलेक्टर कटनी द्वारा अपने आदेश दिनांक 04-03-2010, 19-03-2013 और 19-12-2019 के माध्यम से एसडीएम ढीमरखेड़ा (वन व्यवस्थापन अधिकारी) द्वारा पारित आदेशों के क्रियान्वयन पर रोक लगाई।
खनन पर रोक लगाने के कारण-
वन विभाग के अधिकार क्षेत्र की भूमि होने के कारण कुछ अफसरों के प्रयास से ये रोक लगाई गई। दरअसल वन विभाग ने इस वन क्षेत्र में वर्ष 1991-92 के दौरान सागौन का पौधारोपण किया था। वन की ताजा स्थिति की बात करें तो अभी 48.562 हेक्टेयर भूमि पर सागौन के तकरीबन 16400 वृक्ष लगे हैं। जिनकी मोटाई 100 सेंटीमीटर और ऊंचाई 20 मीटर है। वन क्षेत्र के घनत्व की बात करें तो 337 वृक्ष प्रति हेक्टेयर है। इसी क्षेत्र में बाघ, तेंदुए के साक्ष्य के साथ चीतल, सांभर, जंगली सूअर का रहवास भी वन विभाग को मिला है।
खनन कारोबारी पहुंचे हाईकोर्ट-
शासन के आदेश के खिलाफ खनन कारोबारी ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का रुख किया। राजस्व अधिकारियों से सांठ-गांठ और दस्तावेजों में हेरफेर कर खनन कारोबारी हाईकोर्ट से राहत पाने में सफल रहे। हाईकोर्ट द्वारा प्रदान की गई राहत के खिलाफ शासन ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की, जो आज भी विचाराधीन है।
कमलनाथ सरकार ने किया अवैधानिक आदेश-
सुप्रीम कोर्ट में दायर विशेष अनुमति याचिका को वापस लेने के लिए 2018 की कमलनाथ सरकार ने अवैधानिक आदेश किया था जिसमें तत्कालीन चीफ सेकेट्ररी एसआर मोहंती की बड़ी भूमिका था। लेकिन प्रदेश में अचानक सत्ता परिवर्तन के बाद शिवराज सिंह चौहान ने सरकार बनाई और मामला वहीं थम गया। इसके बाद खनन कारोबारी एक बार फिर मामले में सक्रियता दिखाते कुछ भ्रष्ट अफसरों से सांठ-गांठ की और फिर से सुप्रीम कोर्ट में दायर विशेष अनुमति याचिका क्रमांक/ 5353-5354/2017 को वापस लेने प्रयास किया। इसका भी आदेश जारी हो गया है। तत्कालीन कांग्रेस सरकार का साथ देते हुए वर्तमान में भी कुछ अधिकारी असत्य जानकारी भेज रहे हैं।
प्रदेश में सिर्फ ग्राम झिन्ना का सर्वे क्यों-
प्रकरण की सुनवाई के दौरान मध्य प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा टीएम गोदावर्धन वर्सेस यूनियन ऑफ इंडिया के प्रकरण का उल्लेख करते हुए कहा गया कि वन क्षेत्र में गैर वानिकी गतिविधियां निषिध हैं। गैर वानिकी का कार्य नहीं किया जा सकता है। यह प्रकरण सुप्रीम कोर्ट में अभी भी लंबित है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित साधिकार समिति (सीईसी) द्वारा मध्य प्रदेश राज्य की सभी विवादित भूमियों का सर्वे कराकर जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा था। खनन माफिया गोयनका बंधुओ द्वारा वन विभाग के अधिकारियों से मिलीभगत कर सिर्फ ग्राम झिन्ना जिला कटनी का सर्वे कराया जाना संदिग्ध है। इसमें आरोप लगाया जा रहे हैं कि करोड़ों रुपए का लेन-देन हुआ है। क्योंकि सर्वे सुप्रीम कोर्ट ने पूरे मध्य प्रदेश में करने कहा है।
निष्पक्ष जांच से सामने आएंगे असली चेहरे-
शिकायतकर्ता के मुताबिक यदि जिम्मेदार अफसरों की मंशानुसार शासन उक्त याचिका को सुप्रीम कोर्ट से वापस लेता है तो वन क्षेत्र में खनन से पर्यावरण पर बुरा असर पड़ेगा। साथ ही वन्य प्राणी भी विस्थापित होंगे। इस पेचीदा मामला में प्रदेश के वर्तमान वनमंत्री को भी अँधेरे में रखा गया है। अगर वास्तविक तथ्यों की सही जाँच हो तो अनेक कांग्रेसी मानसिकता के अधिकारियों का असली चेहरा सामने आ जाएगा।