कर्नाटक: कर्नाटक विधानसभा चुनावों को लेकर राजनीतिक सरगर्मिया चरम पर है। हालाकि इस विधानसभा चुनाव में क्या सिद्धारमैया अपनी कुर्सी बचा पाएंगे? इस बात का फैसला तो 15 मई को मतगणना के दौरान ही होगा। लेकिन आपको बता दे कि कर्नाटक की सियासत में सिद्धारमैया ही एक ऐसे मुख्यमंत्री है, जिन्होंने एक रिकॉर्ड अपने नाम किया है। पिछले चार दशक के इतिहास में सिद्धारमैया ने ही अपने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया है। कर्नाटक विधानसभा बनने से पहले इसे मैसूर नाम से जाना जाता था। आजादी के बाद से अब तक यहां 28 मुख्यमंत्री रहे हैं। 1947 से लेकर 1956 के बीच मैसूर से तीन मुख्यमंत्री हुए। 1952 में पहला विधानसभा चुनाव हुआ और के हनुमंत्याह पहले सीएम बने। 1954 में राज्यों के पुर्नगठन के बाद 1956 में मैसूर को राज्य का दर्जा मिला। 1956 से 1972 तक मैसूर राज्य रहा, इस दौरान पांच मुख्यमंत्री चुने गए। 1972 में मैसूर राज्य को कर्नाटक नाम मिला। 1972 में पांचवें विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सत्ता में आई और डी देवराज उर्स मुख्यमंत्री बने। वे कर्नाटक के पहले सीएम हैं जो 5 साल 286 दिन तक अपने पद रहे। इसके बाद 1978 से लेकर अब तक करीब 15 मुख्यमंत्री बने और 5 बार राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा है। इस दौरान कोई भी मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सका इसके बाद 1999 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव कांग्रेस ने जीता और एसएम कृष्णा सीएम बने, लेकिन वो अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके। 2008 में बीजेपी ने पहली बार कर्नाटक के जरिए दक्षिण भारत में एंट्री की। कर्नाटक में बीजेपी के लिए कमल खिलाने का श्रेय बीएस येदियुरप्पा को मिला, लेकिन वे भी पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर सके। येदियुरप्पा तीन साल 62 दिन तक मुख्यमंत्री रहे। येदियुरप्पा की जगह सदानंद गौड़ा को सीएम बनाया गया, लेकिन वे एक साल का कार्यकाल भी पूरा नहीं कर सकें। पार्टी ने उनकी जगह जगदीश शेट्टार को मुख्यमंत्री बनाया। शेट्टार सीएम के पद पर महज 304 दिन रहे और उनके नेतृत्व में हुए चुनाव में बीजेपी को करारी हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद कर्नाटक के 2013 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने जीत का परचम लहराया, जिसमे सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली। डी देवराज उर्स के बाद सिद्धारमैया ही ऐसे मुख्यमंत्री है जिन्होंने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया है।