कांग्रेस नेताओं के ही गले नहीं उतरे कमलनाथ के फैसले

Share on:

दिनेश निगम ‘त्यागी’:प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के दो फैसले पार्टी के ही नेताओं और कार्यकर्ताओं के गले नहीं उतरे। इनमें एक है विधानसभा के शीतकालीन सत्र को स्थगित करने पर सहमति देना और दूसरा, 28 दिसंबर के ट्रेक्टरों के जरिए विधानसभा के घेराव आंदोलन को अचानक रद्द कर मौन धरने में बदलना। कांग्रेस नेता सार्वजनिक तौर पर तो कुछ नहीं कह रहे लेकिन उन्हें निर्णय पसंद नहीं आया। उनका सवाल है कि जब पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ सहित कई राज्यों में विधानसभा की कार्रवाई चल रही है तो मप्र में क्यों नहीं चल सकती? ऐसी क्या मजबूरी थी कि कमलनाथ ने फिर सत्र स्थगित करने पर सहमति दे दी। इसी प्रकार विधानसभा स्थगित हो गई थी तब भी यदि ट्रेक्टरों के जरिए विधानसभा का घेराव किया जाता, गिरफ्तारियां होती तो आंदोलनरत किसानों के बीच अच्छा मैसेज जाता, लेकिन एक माह से की गई तैयारी पर कमलनाथ के निर्णय ने पानी फेर दिया। दोनों निर्णयों को पार्टी के अंदर वर्चस्व को लेकर चल रही जंग से जोड़कर देखा जा रहा है। इसे लेकर नेताओं में नाराजगी है।

 कांग्रेस ने बड़े स्तर पर की थी तैयारी
– दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन के समर्थन में कांग्रेस द्वारा विधानसभा का घेराव करने की तैयारी बड़े स्तर पर की गई थी। सभी विधायक ट्रेक्टरों में बैठकर विधानसभा जाने वाले थे जबकि सरकार ने इन्हें रोकने की पूरी तैयारी की थी। कांग्रेस की घोषणा को देखते हुए प्रशासन ने विधानसभा के आसपास 5 किमी के इलाके में धारा 144 लागू कर भारी वाहनों का प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया था। टकराव के हालात निर्मित थे। आंदोलन से कांग्रेस में जोश भरने की संभावना थी। दिग्विजय सिंह भी कांग्रेसियों को किसान के समर्थन में उतरने के लिए ललकार चुके थे। लेकिन कांग्रेस का यह आंदोलन आपसी गुटबाजी का शिकार होकर रह गया।

 यादव के बंगले पर खड़े रह गए ट्रेक्टर
– विधानसभा के घेराव आंदोलन की जवाबदारी पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव को सौंपी गई थी। उन्होंने बड़ी संख्या में ट्रैक्टर ट्रॉली बुलवा लिए और अपने घर के सामने लगवा लिए थे। अचानक कमलनाथ ने आंदोलन का स्वरूप बदल दिया और कहा कि विधायक अब गांधी प्रतिमा के सामने ट्रेक्टर के खिलौने हाथ में लेकर मौन धरना देंगे। इसके बाद सारे ट्रैक्टर ट्रॉली अरुण यादव के बंगले पर ही खड़े रह गए और खिलौनों के साथ धरने को खूब मजाक उड़ा।

 सत्र स्थगित होने के बावजूद की थी घोषणा
– विधानसभा सत्र स्थगित होने के बाद भी कांग्रेस नेता अरुण यादव का बयान सामने आया था। उन्होंने दावा किया था कि सत्र भले स्थगित हो गया लेकिन कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता ट्रैक्टर पर बैठकर विधानसभा का घेराव करेंगे। लेकिन नेता प्रतिपक्ष कमलनाथ ने विधानसभा घेराव का कार्यक्रम बदलकर मौन धरना देने का फैसला कर लिया। इस सवाल पर यादव ने कहा कि किसान आंदोलन के समर्थन में विधानसभा घेराव की पूरी तैयारी थी। बड़ी संख्या में हम उन्हें राजधानी में जोड़ चुके थे। ट्रैक्टर बुला लिए गए थे। लेकिन कमलनाथ के फैसला बदलने के कारण कार्यक्रम की रूपरेखा को बदल दिया गया। अरुण की नाखुशी साफ झलक रही थी। वे मौन धरने में शरीक भी नहीं हुए। अलबत्ता उन्होंने पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह से जाकर मुलाकात जरूर की। कमलनाथ अपनी पीठ भले थपथपाएं लेकिन सच यह है कि अरुण – अजय की चार साल की मेहनत की बदौलत ही कांग्रेस 15 साल बाद प्रदेश की सत्ता में आई थी। जिसे कमलनाथ ने अपनी गलतियों के कारण भाजपा को तस्तरी में रखकर सौंप दी।

 योजना फ्लाप होने पर उठ रहे सवाल
– कांग्रेस के नेता मान रहे हैं कि किसानों के समर्थन में भले मौन धरना दिया गया लेकिन सच यह है कि आंदोलन फ्लाप हो गया। मौन धरने का किसानों में कोई मैसेज नहीं गया। पार्टी के अंदर सवाल इस बात को लेकर उठ रहा है कि जब इतनी बड़ी संख्या में ट्रैक्टर, किसानों को भोपाल बुला लिया गया था, तो विधानसभा घेराव का कार्यक्रम एन वक्त पर क्यों बदला गया और कांग्रेस विधायकों को खिलौनों के ट्रैक्टर लेकर प्रदर्शन क्यों करना पड़ा।

 गुटबाजी का आरोप, सज्जन का जवाब
– विधानसभा के घेराव कार्यक्रम को पार्टी के अंदर चल रही गुटबाजी से जोड़कर देखा जा रहा है। दरअसल, कमलनाथ के बदले जाने की चर्चा चल रही है और अरुण यादव का नाम प्रदेश अध्यक्ष के लिए एक बार फिर चल पड़ा है। आरोप है कि आंदोलन से अरुण का कद न बढ़ जाए, इसलिए इसे रद्द कर दिया गया। दिग्विजय सिंह अरुण का नाम आगे बढ़ा रहे हैं जबकि दूसरा पक्ष कुछ और चाहता है। हालांकि कमलनाथ समर्थक पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा ने कहा विधानसभा सत्र स्थगित होने के कारण कार्यक्रम बदलने का फैसला हुआ। कांग्रेस पार्टी में किसी तरह की गुटबाजी नहीं है और न ही इसे लेकर अरुण यादव नाराज हैं।