जोबट विधायक कलावती भूरिया के कोरोना से आकस्मिक निधन से कांग्रेस को तो क्षति हुई ही है किंतु आदिवासी बहुल अलीराजपुर- झाबुआ जिले का एक बहुत बड़ा जन नेता जनता से बिछड़ गया है। मात्र ढाई साल में ही विधायक रहते हुए भूरिया ने अलीराजपुर जिले में जो अपनी पैठ बनाई उससे यहां कांग्रेस पार्टी व संगठन को एक बड़ी ताकत मिली अलीराजपुर जिले में झाबुआ से आकर चुनाव लड़ना और उसके बाद फिर उन्होंने अपना जो संपर्क आम जनता से स्थापित किया वह बहुत अद्भुत था। कांग्रेस कार्यकर्ताओं व अपने प्रशंसकों की जो टीम उन्होंने अलीराजपुर जिले में खड़ी कर ली वह बिरले नेता ही कर पाते हैं। इसी का परिणाम था कि 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में रतलाम संसदीय क्षेत्र की आठों विधानसभा में से एकमात्र जोबट विधानसभा ही ऐसी थी जहां से कांग्रेस को करीब 18000 मतों से अधिक की लीड मिली थी।
अपने जुझारू पन, तेजतर्रार व्यक्तित्व और आमजन से जुड़ाव की सहज, सरलता उनके व्यक्तित्व में रची बसी हुई थी। 2018 में उन्हें अलीराजपुर जिले में आयातित नेता कहा गया खुद कांग्रेस में ही उनके खिलाफ बगावत हो गई और पूर्व विधायक सुलोचना रावत परिवार की ओर से उनके पुत्र विशाल रावत ने निर्दलीय फार्म भर दिया उन्हें कांग्रेस नेताओं ने समझाया भी किंतु वे नहीं माने और कलावती भूरिया के खिलाफ चुनाव मैदान में डटे रहे। एक तरफ भाजपा की चुनौती और दूसरी तरफ कांग्रेस के भीतर ही बगावत का बिगुल,उसके बावजूद इन दोनों से भी उन्होंने पार पा लिया और अंततः दो हजार से अधिक मतों से विधायक का चुनाव जीत गई। यह उनके व्यक्तित्व की खासियत थी कि उन्होंने अपने कई राजनीतिक विरोधियों को धराशाई कर अपने पक्ष में काम करने के लिए तैयार कर लिया था।
उनके व्यक्तित्व की एक और सबसे बड़ी खासियत थी जो कि कुछ कम ही आदिवासी जनप्रतिनिधियों में देखने को मिलती है मीडिया के प्रति हमेशा उनमें सम्मान और आदर का भाव बना रहता था कोई भी पत्रकार कभी भी उन्हें फोन कर उनकी बाइट ले लेता था, अलीराजपुर जिले में जोबट जैसे अति पिछड़ी विधानसभा के विकास को लेकर उनके कई सारे सपने भी थे और इस दिशा में उन्होंने कार्यवाही भी शुरू की ही थी कि काग्रेस की सरकार गिर गई। जनवरी से मार्च तक जिले के भाजपा नेताओं ने जोबट में उनके खिलाफ कुछ मामले एकत्रित कर व्यक्तिगत आंदोलन किए जिसका उन्होंने अपने अंदाज में बखूबी सामना किया और जोबट में कई सारे कांग्रेसी विधायकों को जुटा कर अपनी राजनीतिक ताकत का एहसास करा दिया था।
हालांकि वे राजनीति में करीब 25 साल से रची बसी हुई थी, राजनीतिक वातावरण उन्हें अपने परिवार में विरासत में मिला था। झाबुआ जिले के प्रभावशाली कांग्रेस नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहे कांतिलाल भूरिया उनके काका थे । प्रदेश में कांग्रेस सरकार के समय से ही 1999 में झाबुआ जिला पंचायत के अध्यक्ष पद पर चुनी गई थी जो कि 2018 में विधायक बनने तक उस पद पर काबिज रही। झाबुआ में जिला पंचायत चुनाव में उन्होंने भाजपा को कभी भी जीतने नहीं दिया।
भाजपा सरकार के 15 साल के निरंतर कार्यकाल में भी लगातार जिला पंचायत झाबुआ का अध्यक्ष चुनाव जीतती रही यह उनकी मिलनसारिता कार्यकर्ताओं तक उनकी पहुंच का ही परिणाम था कि उन्हें भाजपा कभी हरा नहीं पाई । दो हजार अट्ठारह में जोबट से विधायक निर्वाचित होने के बाद उन्होंने झाबुआ जिला पंचायत अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दिया। हालांकि उनके राजनीतिक जीवन में एक बार कांग्रेस से बगावत कर झाबुआ विधानसभा में 2013 में निर्दलीय चुनाव भी लड़ा था जो कि वह हार गई थी उसके पीछे भी यह था कि उन्हौने झाबुआ से कांग्रेस का टिकट मांगा था जो कि पार्टी उन्हें नहीं देकर उन्हें थांदला से टिकट दिया था, जिसे उन्होंने स्वीकारा नहीं और वह झाबुआ में निर्दलीय खड़ी हो गई थी।
कांग्रेस में राजनीतिक संजीवनी उन्हें उनके काका कांतिलाल भूरिया और दिग्विजय सिंहजी जैसे नेता से हमेशा मिलती रही। आरंभ से ही उन्हें दिग्गी राजा का समर्थक उनके काका कांतिलाल जी की वजह से कहा जाता रहा। हालांकि बाद में उन्होंने अपने व्यवहार जुझारू व्यक्तित्व से कांग्रेस के अन्य नेताओं खासकर कमलनाथ जी व अन्य के बीच भी अपने अच्छे संपर्क व संबंध स्थापित कर लिए थे। बहरहाल कलावती भूरिया जैसी जननेता कम ही पैदा होती है, आदिवासी बहुल क्षेत्र में ज्यादा शिक्षा प्राप्त नहीं करने के बावजूद मोरडूंडिया ग्राम के एक सरपंच के पद से लेकर झाबुआ जिला पंचायत अध्यक्ष और उसके बाद दूसरे जिले में जाकर विधायक बनने का सफर पूरा कर वे अनंत यात्रा पर चली गई है।
वे बहुत खांटी और जमीन से जुड़ी हुई नेता थी । सिर्फ एक निर्दलीय चुनाव में हार के अलावा वह जीवन में कभी कोई चुनाव नहीं हारी। यह हर किसी के बूते की बात भी नहीं है। बस इतना जरूर है उनमें में कुछ ऐसा खास था जो हर किसी नेता में कमोबेश कम दिखाई देता है उनकी खासियत अब उनके साथ ही चली गई है। कलावती भूरिया जैसी राजनीतिक शख्सियत अब शायद ही अलीराजपुर झाबुआ जिले में कोई दूसरी हो, उनकी कमी को अब कोई नहीं पूरी कर सकता।
आशुतोष पंचोली