न्यायमूर्ति विजय कुमार शुक्ला ने पर्यावरण संरक्षण में आम जन की भूमिका को बताया महत्वपूर्ण

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प्लास्टिक बॉटल, पेपर नैपकिन व बढ़ते वाहन दे रहे हैं पर्यावरण को चुनौती 

इंदौर । मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति विजय कुमार शुक्ला ने पर्यावरण के संरक्षण में आम जन की भूमिका को महत्वपूर्ण बताया है। उन्होंने कहा कि इस समय पर्यावरण को प्लास्टिक की बोतल, पेपर नैपकिन और बढ़ते हुए वाहन चुनौती दे रहे हैं । इस बारे में नागरिकों को जागरूक होना पड़ेगा।
वे अभ्यास मंडल के द्वारा प्रीतमलाल दुआ सभागृह में संवैधानिक प्रावधान में पर्यावरण संरक्षण और आमजन की भुमिका विषय पर आयोजित मासिक व्याख्यान को संबोधित कर रहे थे। न्यायमूर्ति विजय कुमार शुक्ला ने कहा कि नई पीढ़ी में प्लास्टिक की बोतल और पेपर नैपकिन के प्रयोग का चलन बढ़ गया है। जो कि गलत है। इस पीढ़ी को यह समझना चाहिए कि इन दोनों वस्तुओं के प्रयोग से पर्यावरण दूषित होता है। पेपर नैपकिन बनाने के लिए पेड़ों की बली ली जाती है। इस समय बढ़ते वाहन वह भी खासतौर पर शहरी क्षेत्र में, चिंता का विषय है। हवा का जो प्रदूषण है उसमें 40% प्रदूषण वाहन और यातायात से हो रहा है। हमारे संविधान में नागरिकों को मौलिक अधिकार दिए गए हैं और उसके साथ में बुनियादी कर्तव्य भी निश्चित है।

उन्होंने कहा कि इस संविधान में राज्य के नीति निर्देशक तत्व में वन को कायम रखने में नागरिकों की जिम्मेदारी को भी चिन्हित किया गया है। उन्होंने कई उदाहरण के माध्यम से पर्यावरण के संरक्षण में न्यायालय के द्वारा दिए गए योगदान की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि वन के रिसोर्स का बेहतर उपयोग किया जाना चाहिए। हवा में प्रदूषण की समस्या लगातार बढ़ रही है । इसके पीछे कारण यह है कि वाहनों की संख्या भी बढ़ रही है। एक समय हमारा मध्य प्रदेश जंगल से भरा हुआ प्रदेश था। उसी का परिणाम है कि आज हमें अच्छी और शुद्ध वायु मिल पा रही है । इस समय पूरा विश्व प्रदूषण से पीड़ित है।

रामायण, महाभारत काल में भी की गई पर्यावरण की चिंता 

न्यायमूर्ति शुक्ला ने कहा कि रामायण और महाभारत के काल में भी पर्यावरण की चिंता की गई थी । अपनी बात को विस्तार देते हुए उन्होंने बताया कि जब वनवास पर भगवान राम गए थे तो उनसे मिलने के लिए राजा भरत जा रहे थे । उस समय पर राजा के आने के लिए रास्ते को साफ किया गया था । इसके लिए जितने पेड़ काटे गए थे उससे तीन गुना पेड़ राजा भरत के आदेश पर लगाए गए थे । महाभारत काल की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि जब पांडव वनवास में थे तब एक दिन नकुल और सहदेव लकड़ी काट रहे थे । उसी समय धर्मराज युधिष्ठिर वहां पहुंच गए । उन्होंने इन दोनों को बहुत सारी लकड़ी काटते हुए देखकर कहा कि प्राकृतिक संसाधन का आवश्यकता के जितना ही उपयोग किया जाना चाहिए । यह दोनों उदाहरण अनादि काल से पर्यावरण के संरक्षण के प्रति हमारी जागरूकता के प्रतीक हैं ।

वरिष्ठ अधिवक्ता चितले जी ने उठाए सवाल 

इस कार्यक्रम में 87 वर्ष की उम्र के वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक चितले जी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कई मूलभूत सवाल उठाएं । उन्होंने कहा कि वकालत करते हुए उन्हें 64 वर्ष हो गए हैं । उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय के गेट के पास में अफ्रीकन प्रजाति का एक पेड़ लगा हुआ था जिसे की काट दिया गया है । क्यों काटा गया ? यह किसी को नहीं मालूम है । जिला कोर्ट 1905 में मनाया गया था । इसके गेट के पास में बरगद का पेड़ था । उसे भी काट दिया गया है । क्यों काटा किसी को नहीं मालूम ? अब इस कोर्ट को नए स्थान पर ले जाया जा रहा है । जहां इसे ले जाने की योजना है वह तालाब की जमीन है । उस जमीन पर कोर्ट को क्यों ले जा रहे हैं ? 1920 के बाद से इंदौर में कोई भी नया तालाब नहीं बना है । यह समय ग्लोबल वार्मिंग का समय है । हम सभी डेंजर जोन में है । हमें यह सोचना होगा कि हम अपने बच्चों को कैसा वातावरण देकर जाएंगे । अतिथियों का स्वागत अभ्यास मंडल के अध्यक्ष रामेश्वर गुप्ता, धर्मेंद्र चौधरी ,गौतम कोठारी मदन राणे , पद्मश्री भालु मोंढे, वैशाली खरे, पल्लवी अढ़ाव,दीप्ति गौड़ ने किया । कार्यक्रम का संचालन माला सिंह ठाकुर ने किया । अंत में आभार प्रदर्शन अशोक कोठारी ने किया ।