प्रदीप शर्मा
कल शाम से ही मैं आहत हूं ! आज मैं राहत का जिक्र नहीं करना चाहता,क्योंकि कल से ही चारों और राहत राहत का शोर मचा है,राहत इंदौरी चले गए । बहुत दिनों पहले मैंने भी अपने एक दोस्त को खोया,जिसका नाम मैंने आहत इंदौरी रखा है । ज़ाहिर सी बात है,चूंकि नाम जब मैंने रखा है,तो मेरे अलावा उसे कोई नहीं जान सकता ।
मैं भी कहां जान पाया था उसको,जब वह कॉलेज में हम लोगों के साथ पढ़ता था । उसने बी ए में, देखा देखी में अंग्रेज़ी साहित्य विषय ले तो लिया था,लेकिन उसकी रुचि शायरी में थी । कई असफल प्रेमी,जिनका प्रेम एकतरफा अर्थात् एकांगी होता है,अच्छे कवि अथवा शायर बन बैठते हैं । कुछ का नाम होता है,कुछ महज बदनाम होते हैं ।।
मेरे दोस्त का शायरी में नाम नहीं हुआ,इसलिए वह बदनाम भी नहीं हुआ, केवल आहत इंदौरी बनकर रह गया । राहत का नाम हमेशा उसकी जुबान पर रहता था,लेकिन तब हम राहत को नहीं जानते थे,और उसे शायर भी नहीं मानते थे । वह शायरी लिखता रहा,अंदर ही अंदर घुटता रहा ।
कभी कभी ठाकुर कैंटीन में,अकेले में अपना दर्द बयां करता,आप लोग मुझे नहीं समझोगे । केवल एक राहत साहब हैं जो मुझे समझते हैं,मेरी शायरी की कद्र करते हैं । कॉलेज छूट गया । आहत न घर का रहा न घाट का । बस दाढ़ी बढ़ी हुई और बेतरतीब शायराना रहन सहन । एक दिन उसके मुंह में सिगरेट देखी,मैंने टोका,यह क्या है आहत ? बोला,यह महज एक शौक है और यह कभी आदत नहीं बनेगी । बाद में जब भी मिला,शौक उसकी आदत बन चुका था ।।
बहुत दर्द था उसमें, ज़माने के प्रति शिकायतें ही शिकायतें ! कभी काम की बात नहीं । मेरे पास का माहौल इतना खराब है कि मुझे घुटन होती है अपने आप से । मेरी संगति भी बहुत खराब है । पूरा मोहल्ला ही ऐसा है । मैं जाऊं तो कहां जाऊं । थक हारकर कुछ दिनों उसने परिस्थितियों से समझौता कर लिया । तब इंदौर में टेम्पो चलते थे। वह भी टेम्पो चलाने लगा ।
मैं बहुत आहत हुआ, उसकी मजबूरियां देखकर ।
एक यादगार वाकया है मेरे इस आहत इंदौरी का ! मेरी बहन की शादी थी । पुराने दोस्तों में इसका भी नाम शामिल था । इसे भी बुलाया गया । शादी के दिन विवाह की भीड़भाड़ में मेरे पास आया,मेरे हाथ में लिफाफा थमाया और बोला । जेल में हूं अपने जादौन को मैंने बोला,प्रदीप की बहन की शादी है,उसने बस आने की मोहलत दी है । बाकी राम कहानी बाद में ! बाद में पता चला, बाहर पुलिस खड़ी थी,और आहत अंदर थे । बहुत दिनों बाद पता चला,जो लिफाफा महाशय दे गए थे,वह खाली था । लेकिन लिफाफे पर उनका नाम जरूर था । वह दोस्ती का मान रखने आया,मेरे लिए यही काफी था ।
राम कहानी यह थी कि किसी विवाह प्रसंग में इनके परिवार में गोली चलने से एक की मौत हो गई और पुलिस ने इनके पूरे परिवार को अंदर कर दिया । फिर अदालत में केस चले,कुछ छूटे,कुछ को सजा हुई ।।
आखरी बार आहत से मुलाकात भी एक मुक्तिधाम में ही हुई । ज़्यादा बातें नहीं हो पाई । शिकायत कर रहा था ! लड़की डिप्टी कलेक्टर बन गई है प्रदीप । उसकी शादी में तुम नहीं आए ।
बाद में किसी ने सूचना दी,तुम्हारा दोस्त नहीं रहा । कल राहत ने सभी पुरानी यादें ताजा कर दीं । आज ज़िन्दगी में न आहत है न राहत है । मैं मशहूर राहत से कभी नहीं मिला और गुमनाम आहत को पहचान नहीं पाया । मैंने आहत इंदौरी को बहुत पहले खोया,दुनिया ने इस कोरोना काल में राहत इंदौरी को खोया । खोया ही खोया ।
आखिर ज़िन्दगी में हमने क्या पाया । आहत,राहत को आखरी सलाम ।।