नहीं रहे जीवन साहू, 70 के दशक में युग प्रभात स्कूल ऑफ जर्नलिज्म बन गया था

Ayushi
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अर्जुन राठौर

कल प्रकाश बियानी और राजकुमार केसवानी की मृत्यु के दुखद समाचार के बाद आज सुबह पता चला कि जीवन साहू जी हमारे बीच नहीं रहे अभी दो दिन पहले ही यह खबर मिली थी कि साहू जी स्वस्थ हो गए हैं उनकी रिपोर्ट भी नेगेटिव आ गई है तथा उन्हें नाम को नान कोविड वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया है सभी लोग उनके घर लौटने की प्रतीक्षा कर रहे थे इसी बीच यह दुखद खबर आ गई ।

जीवन साहू जी बहुत संघर्षशील और विनम्र स्वभाव के पत्रकार थे उन्होंने अपने अखबार साप्ताहिक युग प्रभात के माध्यम से पत्रकारिता में न केवल अपनी पहचान बनाई बल्कि उसी के दम पर वे इंदौर प्रेस क्लब के अध्यक्ष भी बने और जीवन भर युग प्रभात का संपादन करते रहे उस समय याने 70 के दशक में जीवन साहू जी का कार्यालय गोपाल मंदिर में हुआ करता था वहीं पर अग्निबाण प्रेस भी थी जीवन साहू जी की सहजता और और सरलता के कारण उस जमाने के संघर्ष कर रहे युवा पत्रकार उनसे जुड़ जाते थे एक तरह से कहा जाए तो युग प्रभात स्कूल आफ जर्नलिज्म बन गया था।

उन दिनों कमल दीक्षित जी भी जीवन साहूजी के साथ जुड़े हुए थे और जीवन साहू भी नए पत्रकारों को या तो अपने यहां नौकरी दे देते थे या फिर उनके आर्टिकल छाप कर उन्हें आर्थिक मदद देते रहते थे उस जमाने में ₹25 महीने की भी नौकरी कई पत्रकारों ने की और ₹10 में जीवन साहू जी के लिए लेख भी लिखे 70 के दशक में यह राशि संतोषजनक हुआ करती थी जब नईदुनिया हर एक आलेख प्रकाशित होने पर मात्र ₹30 देता था ।

जीवन साहू जी के यहां से निकलकर अनेक पत्रकारों ने अपनी दिशाएं पाई उनमें से पंकज शर्मा भी एक है जो बाद में नवभारत टाइम्स में भी लंबे समय तक रहे दिल्ली में रह रहे वरिष्ठ पत्रकार रविंद्र दुबे की भी करें तो वे भी साहू जी के संपर्क में रहे और उनके लिए उन्होंने कई बार लेख लिखे । साहू जी की यह विशेषता थी कि वे जब भी मिल जाते तो चाय नाश्ता जरूर कराते यही वजह है कि संघर्षरत पत्रकार उनके सानिध्य का लाभ तो लेते ही चाय नाश्ता भी उस जमाने में मिल जाता था युगप्रभात में काम करने वाले संघर्षरत पत्रकारों की लिस्ट बहुत लंबी है ।

इसे ऐसे कहा जा सकता है कि युगप्रभात उस जमाने में स्कूल आफ जर्नलिज्म बन गया था कुल मिलाकर उस समय तीन सप्ताहिक अखबार स्थापित थे जिनमें स्पूतनिक ,प्रभात किरण और युग प्रभात थे स्पूतनिक और प्रभात किरण के मुकाबले साहू जी के अखबार की अर्थव्यवस्था थोड़ी कमजोर थी लेकिन साहू जी खुले दिल से अपने साथियों की मदद किया करते थे अपने इसी गुण के कारण वे धीरे-धीरे लोकप्रिय होते गए और एक समय के बाद वे प्रेस क्लब के अध्यक्ष भी बन गए किसी भी साप्ताहिक अखबार के माध्यम से प्रेस क्लब का अध्यक्ष बनवा मायने रखता था इस अर्थ में यह कहा जा सकता है कि जीवन साहू ने जीवन भर जीवंत संबंध कमाए थे ।आज वे हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनके साथ जुड़े हुए रिश्ते हमेशा याद आएंगे ।