जाना था कि एक दिन जाना होगा
पर कहाँ, कैसे- कब नहीं जाना था…
ऐसे जाओगे इतनी दूर माना नहीं था
सोचते ही मन घबराता था
…एक अजीब सा शून्य भर जाता…
सब विचार खो गए हालातों में
ना सोचना है ना जानना अब
कुछ बाकी नहीं सिवा पछतावे के
वैसा होता -तो ये होता यूँ
वो कर पाते तो शायद ये नहीं होता
इस करने और ना होने की बातों से अब क्या होगा.
वो चले गए दूर ना रोक सका कोई..
कौन रोक पाया है उनको जाने से..
पंछी उड़ जाये जैसे पिंजरे से.
इस दुनिया से दूर एक और ठौर होगा.
मेरी आँखों से दूर लेकिन मन में होगा.
छूटी सब आशा -उम्मीद उसके साथ.
फिर भी स्पर्श होगा मेरे हाथ
जाओ !अब तुम को जाना है,
साथ तुमको यादों में रहना है.
ना छूटेगी नातों की मजबूत डोर.
आना होगा तुम्हे फिर बार बार.
… महिमा शुक्ला 😔