इंदौर : पहले पढ़ा और अनुभव किया था कि गॉलब्लैडर में स्टोन बनने की वजह तीन F है, फीमेल, 40 इयर्स, और फैटी मतलब महिलाओं में, 40 साल की उम्र और मोटापे से यह स्टोन बनते हैं, वहीं गॉलब्लैडर में यह समस्या पहले उड़ीसा, वेस्ट बंगाल और अन्य जगह पर होती थी, लेकिन अब यह सामान्य लोगों में भी पाया जाता है, यह बात कंसलटेंट और लेप्रोस्कोपिक सर्जन डॉक्टर नरेंद्र पाटीदार ने कही। डॉक्टर पाटीदार ने शहर के कई बड़े संस्थानों में अपने सेवाएं दी है, अब वह शहर के प्रतिष्ठित डीएनएस अस्पताल में अपनी सेवाएं दे रहे है। उन्होंने सर्जरी से जुड़े अपने 30 साल के अनुभव साझा किए। उन्होंने बताया की गॉल ब्लेडर में स्टोन बनने की वजह से गॉलब्लैडर में इंफेक्शन और सूजन बढ़ जाती है। इसके कई कारण है लेकिन खान पान में हेवी डाइट लेना भी इसका एक कारण है।
खुद को समय देना जरूरी है, 30 साल से कर रहा सर्जरी
डॉक्टर नरेंद्र पाटीदार बताते हैं कि शुरुआती दिनों में सुबह 6 से रात के 12 तक काम करता था, लेकिन यह जाना की खुद को समय देना भी जरूरी है, यह सेहत के लिए अच्छा है, रोजाना वॉक करता हु, पहले 15 साल तक बैडमिंटन भी खेलता था। अब पर्सनल लाइफ के लिए टाइम निकालता हूं। में 2004 से लेप्रोस्कोपिक सर्जरी कर रहा हूं, लेप्रोस्कोपी सर्जरी का मुझे 19 साल का अनुभव है, वहीं जनरल सर्जरी 30 साल से कर रहा हूं। जिसमें लेप्रोस्कोपी सर्जरी में गॉलब्लैडर सर्जरी, अपेंडिक्स, इंटेस्टाइन, एब्डॉमिनल, फिस्टुला, और अन्य प्रकार की सर्जरी करते है। मैंने एमबीबीएस और एमएस की पढ़ाई एमजीएम मेडिकल कॉलेज इंदौर से की है। इसके बाद कई फेलोशिप प्रोग्राम में भाग लिया।
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अपेंडिक्स और हर्निया में यह रखे खयाल
अपेंडिक्स से संबंधित समस्या भी पहले बहुत कम लोगों में होती थी, लेकिन अब यह भी लोगों में दिन ब दिन बढ़ती जा रही है, इसका कारण खान पान, कॉन्स्टीपेशन, इन्फेक्शन और अन्य चीजों से अपेंडिक्स की समस्या बढ़ जाती है। वहीं अगर बात हर्निया की करी जाए तो इसमें कुछ लोगों को वेट लिफ्टिंग, अस्थमा, और ज्यादा खांसी से यह समस्या देखने को मिलती है। ज्यादा वेट उठाना सही नहीं होता है, इसकी एक सीमा होनी चाहिए, वहीं पता चलने पर डॉक्टर से सलाह लेकर इसका इलाज करवाना जरूरी होता है।
1994 से पहले सब सर्जरी हाथ से होती थी, लेकिन अब टेक्नालॉजी की मदद से इसमें काफी नवाचार हुआ है..
लेप्रोस्कॉपी सर्जरी पहले के मुकाबले अब ज्यादा होने लगी है, वहीं अब किडनी संबंधित, कैंसर संबंधित, ऑर्गन और अन्य प्रकार की सर्जरी अब लेप्रोस्कोपी से होने लगी है। 1994 से पहले सब सर्जरी हाथ से होती थी, लेकिन अब टेक्नालॉजी की मदद से इसमें काफी नवाचार हुआ है, यह पूरी तरह से सुरक्षित है, वहीं पेशेंट भी इसमें जल्दी रिकवर करता है।
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