क्या यह गलत परंपरा की शुरुआत नहीं

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दिनेश निगम ‘त्यागी’

अंग्रेजों की याद दिलाने वाले भोपाल के मिंटो हाल का नाम भाजपा के पितृ पुरुष कुशाभाऊ ठाकरे के नाम करने की घोषणा गले नहीं उतरी। भाजपा के अंदर से पहले प्रख्यात शिक्षाविद्, संविधान सभा के उप सभापति डा. हरी सिंह गौर के नाम से मिंटों हाल का नाम करने की मांग उठी। इसके बाद टंट्या मामा जैसे जनजातीय शहीद और वीर सावरकर के नाम उठाए गए। लेकिन नामकरण के लिए कुशाभाऊ ठाकरे को चुना गया। घोषणा होते ही विवाद शुरू हो गया। दरअसल, स्वर्गीय ठाकरे को भाजपा का पितृ पुरुष कहा जाता है। उन्हें आजादी के आंदोलन या किसी अन्य क्षेत्र में उनके योगदान के कारण नहीं जाना जाता। ठाकरे देश के प्रधानमंत्री या प्रदेश के मुख्यमंत्री भी नहीं रहे।

इसलिए शहीदों, स्वतंत्रता सेनानियों और डॉ हरी सिंह गौर जैसे महापुरुषों के स्थान पर मिंटों हाल का नाम ठाकरे के नाम करने के कारण सवाल उठ रहे हैं। वीर सावरकर के नाम को इसके लिए चुना जाता तब भी बेहतर होता। आखिर वे अंग्रेजों से लड़े थे। उनकी यातना का शिकार हुए थे। इसे गलत परंपरा की शुरुआत माना जा रहा है। संगठन में काम की बदौलत भविष्य में लालकृष्ण आडवाणी और सोनिया गांधी के नाम से सार्वजनिक इमारतों का नामकरण हो, तब भी क्या किसी को एतराज नहीं होगा?

विधायकों के ‘नहले’ पर मुख्यमंत्री का ‘दहला’ –

उस्ताद, उस्ताद होता है और शागिर्द, शागिर्द, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भाजपा विधायकों के ‘नहले पर दहला’ जड़ कर यह साबित कर दिखाया। विधायकों ने भाजपा कार्यालय में वन टू वन’ बातचीत में शिकायत की थी कि अफसर उनकी नहीं सुनते। उनके कहने पर कोई काम नहीं होते और उन्हें कार्यकर्ताओं, लोगों के सामने नीचा देखना पड़ जाता है। चंदला विधायक राजेश प्रजापति का मामला उदाहरण था, जिसमें छतरपुर कलेक्टर ने काम करना तो दूर उनसे मिलने से ही इंकार कर दिया था। विधायक को उनके बंगले के सामने धरने पर बैठ जाना पड़ा था।

विधायकों की इस शिकायत पर क्या हुआ, कोई नहीं जानता लेकिन मुख्यमंत्री चौहान ने पार्टी कार्यसमिति की बैठक में खरी-खरी सुनाकर विधायकों को जमीन दिखा दी। मुख्यमंत्री ने कहा कि समस्या यह है कि अधिकांश विधायक सिर्फ ट्रांसफर एवं पोस्टिंग के कागज लेकर आते हैं। यदि उनकी सभी सिफारिशें मान ली जाएं तो हालात ये हो जाएंगे कि कई स्कूलों में न शिक्षक होंगे और कई अस्पतालों में न ही डाक्टर। उन्होंने कहा कि इसलिए मुझे सब देखना पड़ता है। मुख्यमंत्री की सलाह थी कि विधायक जनता से जुड़े और क्षेत्र के विकास से संबंधित काम लेकर आएं तो क्षेत्र, भाजपा और उनका, सभी का भला होगा।

सोनिया के संकेत को नजरअंदाज करते नाथ-

कांग्रेस के वरिष्ठतम नेता और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ उम्र के इस पड़ाव में अपनी इमेज पद से चिपके रहने वाले नेता की बनाते दिख रहे हैं। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह की तरह राजनीतिक सेहत के लिहाज से इसे ठीक नहीं माना जा रहा। कमलनाथ अक्सर दिल्ली जाकर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलते हैं। उन्हें सोनिया के नजदीक भी माना जाता है। हाल में सोनिया गांधी से मिलने के बाद पहली बार उन्होंने कहा कि ‘एक व्यक्ति, एक पद’ के सिद्धांत के तहत हाईकमान उनके बारे में कोई निर्णय लेगा तो उन्हें स्वीकार्य होगा।

इससे साफ है कि सोनिया गांधी से मुलाकात में उनके पद छोड़ने को लेकर चर्चा हुई है। कमलनाथ ने यह भी कहा कि वे मप्र नहीं छोड़ेंगे, इसका मतलब यह भी है कि पार्टी हाईकमान उन्हें मप्र से हटाकर दिल्ली बुलाना चाहता है। मजेदार बात यह है कि सोनिया गांधी के संकेत के बावजूद कमलनाथ न मप्र छोड़ने के लिए तैयार हैं और न ही एक भी पद। वर्ना संकेत पाकर वे किसी एक पद से इस्तीफा देने की पेशकश कर सकते थे। खबर है कि कांग्रेस हाईकमान चाहता है कि कमलनाथ प्रदेश अध्यक्ष का पद छोड़ें जबकि कमलनाथ नेता प्रतिपक्ष का पद छोड़ना चाहते हैं। सहमति न बन पाने से मामला अटका हुआ है।

दग्विजय की मध्य प्रदेश में सक्रियता के मायने –

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह एक बार फिर चर्चा में हैं। वे उसी लगन से महंगाई, केंद्र एवं राज्य की भाजपा सरकारों के खिलाफ जनजागरण अभियान चला रहे हैं, जिस मनोयोग से नर्मदा परिक्रमा की थी। दिग्विजय के इस अभियान के मायने तलाशे जा रहे हैं। इसलिए भी क्योंकि कांग्रेस हाईकमान ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की अभियान समिति का प्रमुख बनाया है। उद्देश्य है देश भर में लोगों को जोड़कर कांग्रेस को मजबूत करना। लेकिन दिग्विजय सिंह का फोकस सिर्फ मध्यप्रदेश पर है।

वे प्रदेश के ताबड़तोड़ दौरे कर रहे हैं। शहरों-कस्बों में प्रभात फेरियां निकाल रहे हैं, बैठकें और सभाएं ले रहे हैं। राजनीतिक हलकों में इस सक्रियता को कमलनाथ के एक पद छोड़ने से जोड़कर देखा जा रहा है। कांग्रेस के एक प्रमुख पदाधिकारी का कहना है कि दरअसल दिग्विजय एक बार और प्रदेश कांग्रेस की बागडोर अपने हाथ में चाहते हैं। पहले नर्मदा परिक्रमा और अब प्रदेश भर में ताबड़तोड़ दौरों के जरिए दिग्विजय ये साबित करना चाहते हैं कि उनमें अब भी दिन-रात काम करने का माद्दा है। वे कांग्रेस को सत्ता में वापस ला सकते हैं। बहरहाल, दिग्विजय की मंशा क्या है, कोई नहीं जानता लेकिन उनके जनजागरण अभियान के निहितार्थ तलाशे जा रहे हैं।

 भाजपा में भी कुछ नेताओं ने ले रखी है सुपारी –

कांग्रेस ही ऐसी पार्टी नहीं है जहां सलमान खुर्शीद और मनीष तिवारी जैसे तमाम नेता अपनी ही पार्टी को निबटाने की वजह बने हुए हैं, भाजपा में भी ऐसे नेताओं की कमी नहीं है। यह बात अलग है कि भाजपा सत्ता में हैं और अपेक्षाकृत मजबूत, इसकी वजह से उस पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। भाजपा में कभी मुरलीधर राव जैसे नेता बम फोड़कर सांसदों, विधायकों को नाराज कर देते हैं, ब्राह्मण, बनिया जैसी जातियों पर टिप्पणी कर देते हैं तो कभी उमा भारती और साध्वी प्रज्ञा ठाकुर अपने बयानों से पार्टी नेतृत्व को असहज कर देती हैं।

विंध्य अंचल में विधायक नारायण त्रिपाठी अलग राह चलते दिखाई पड़ते हैं और अब कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए प्रदेश के खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री बिसाहूलाल के बयान से बवाल पैदा हो गया। उन्होंने सवर्ण खासकर ठाकुर-ठकार घराने की महिलाओं को लेकर कह दिया कि जब तक इन्हें पकड़कर घर से बाहर नहीं निकाला जाएगा, काम पर नहीं लगाया जाएगा, तब तक समानता नहीं आएगी। इस बयान से राजनीति में उबाल आ गया। बिसाहू के पुतले जलने लगे। मंत्रिमंडल से हटाने की मांग उठने लगी। अंतत: प्रेस बुलाकर बिसाहूलाल को माफी मांगना पड़ गई। इससे भी मामला शांत होते नहीं दिखाई पड़ता। विरोधी उनके खिलाफ कार्रवाई पर अड़े हैं।