क्या सचमुच प्रिंट मीडिया अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है

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अर्जुन राठौर

यह सचमुच बहस का विषय हो सकता है कि क्या इस दौर में प्रिंट मीडिया अपने सबसे बुरे समय से गुजर रहा है प्रिंट मीडिया की हालत तो करोना काल से पहले से ही खराब हो रही थी ,लोग बड़ी तेजी से सोशल मीडिया तथा समाचारों के अन्य इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों की ओर मुड़ रहे थे ऐसे में कोरोना आ गया और कोरोना ने तो प्रिंट मीडिया पर अपनी ऐसी छाप छोड़ी की प्रिंट मीडिया को सांस लेना ही दूभर हो गया ।

कोरोना काल के जो 2 महीने लॉक डाउन में गुजरे उसमें तो लोगों ने प्रिंट मीडिया से दूरी बना ली ,अखबारों का वितरण बंद हो गया देश भर से जो अखबार अन्य शहरों में पहुंचते थे वे भी पहुंचना बंद हो गए क्योंकि आवागमन के सारे साधन बंद पड़े थे इधर कोरोना के भय के कारण लोगों ने अखबारों को हाथ लगाना भी मंजूर नहीं किया और इसका नतीजा यह निकला कि लंबे समय तक अखबारों से लोगों का भय नहीं गया और इसी बीच सोशल मीडिया से लेकर न्यूज़ वेबसाइट और अखबारों के ई संस्करण की ओर लोग आकर्षित हुए और बीते 10 महीनों में तो यह सब उनकी आदत में आ गया।

अब हालत यह है की प्रिंट मीडिया अपनी इस सबसे बड़ी क्षति को पूरा करने में असमर्थ पा रहा है लाख प्रयासों के बावजूद भी एक बहुत बड़ी आबादी आज भी अखबारों से परहेज कर रही है इसकी एक सबसे बड़ी वजह यह है कि टेलीविजन के साथ-साथ न्यूज़ पोर्टल और अखबारों के ई संस्करण जो लगभग लोगों को मुफ्त में मिल जाते हैं उनके प्रति लोगों का रुझान बढ़ गया मेरे एक मित्र जो एक बहुत बड़ी न्यूज़पेपर वितरण एजेंसी चलाते हैं उनका कहना है कि उनका खुद का काम बहुत अधिक सिमट गया है अखबारों की बिक्री पहले जैसी नहीं रही और हाकर भी कम हो गए । लोगों ने अखबार बुलाना बंद कर दिए हालत यह है कि पहले अखबारों का जो प्रसार क्षेत्र था वह लगातार घटता ही चला गया। इसमें कोई दो मत नहीं है कि कोरोना काल ने प्रिंट मीडिया को अपूरणीय क्षति पहुंचा दी ।

इस रिपोर्ट को लिखने वाले लेखक का खुद का अनुभव है कि पहले जहां चार अखबार घर में आया करते थे वहां अब एक भी अखबार नहीं आता और उसकी आवश्यकता भी अब महसूस नहीं होती इसकी वजह यह है कि अखबार या तो ई संस्करण में पढ़ लिए जाते हैं या फिर न्यूज़ पोर्टल पर सारी खबरें मिल जाती है और बची कुची कसर टेलीविजन से पूरी हो जाती है ऐसे में अखबार हाशिए पर चले गए हैं

कोरोना काल में पाठकों की संख्या में कमी तो आई इसके बाद भारतीय अर्थव्यवस्था में जो मंदी वाड़ा आया उसके कारण अखबारों को मिलने वाले विज्ञापनों में भी कमी होती चली गई अभी भी भारत का बाजार सम्भला नहीं है और यही वजह है कि जो अखबार पहले 24 पेज के प्रकाशित होते थे उनकी संख्या घटकर या तो बारह हो गई या फिर सोलह ।

कोरोना ने भारत सहित पुरे विश्व के जनजीवन पर जो अपनी त्रासदी पूर्ण छाप छोड़ी है उसका सबसे अधिक शिकार प्रिंट मीडिया भी हुआ है इस बात को स्वीकार किया जाना चाहिए ।