रश्मि भट्ट मौलिक -इन्टरनेशनल चाय दिवस
वो चाय और साथ तुम्हारा
जैसे कोई, चमकता सितारा
सुबह-सुबह चाय को पीना
जैसे कोई जिन्दगी ही जीना
आंखो की सुस्ती खुलती हमारी
नजरों में रहती
खुमारी खुमारी
पीते ही एक सिप
जी लेते है जैसे
इस बेरंग पड़ी दुनिया में
एक कप के फेरे
दहशत पड़ी है ,दिलो में
चाय पीकर, थोड़ा
यूँ ही हँस लेते
बहुत गम है जमाने में सबके
पर चन्द सिप
में जी जाते है
काश कभी तो होगा
उजला सबेरा
और आप और हम
हमारे बहुत सारे कपों के साथ
हमारा और आप सबका
मिलना
अभी तो पीते है फीकी हम चाय
कभी आप सब मिलोगे तो
पी लेंगे एक कप हम भी
मीठी सी चाय
बस कुछ चन्द लाइन
बस यूँ ही