नरेश भावनानी की फर्श से अर्श तक पहुंचने की दिलचस्प दास्तान

Ayushi
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ब्रजेश जोशी

मन्दसौर: यह कलम चलाते हुए आज मुझे बड़ा सुकून मिल रहा है । आज मैं एक ऐसे शख्स के बारे में लिख रहा हूं जिसने फर्श से अर्श तक अपना सफर तय किया है। देखने में आचरण में व्यवहार में बहुत ही नम्र साधारण व्यक्तित्व किंतु इस सादगी के अंदर छुपा हुआ एक ऐसा विराट व्यक्तित्व जिसने उम्र के अर्धशतक के पायदान तक पहुंचते पहुंचते ही जीवन के हर रंग को जान लिया परख लिया और अपनी सफलता को केवल अपने दायरे में ही न रखते हुए अपने समाज और अपने शहर के लिए बांटने का सपना संजोया है। इनके मन में बहुत कुछ तमन्ना है हैं निश्चित रूप से यह सब पंक्तियां पढ़कर सुधी पाठकों को उत्सुकता हो रही होगी कि कौन है यह शख्स…!

तो अब मैं बता ही देता हूं इनका नाम है नरेश भावनानी… यह नाम पढ़ कर अधिकांश लोग अचरज में पड़ गए होंगे कि कौन है यह नरेश भावनानी पहले तो कभी नाम नहीं सुना नहीं उनकी शख्सियत के बारे में कोई जानकारी है.. बिल्कुल मैं भी यही धारणा रखता था किंतु जैसे-जैसे नरेशजी के बारे में जानता गया इतना तो समझ ही गया कि ये कोई करिश्माई व्यक्तित्व है लेकिन जब पूरा जाना तो लगा कि शायद ये तो उससे भी बढ़ कर है।

पिछले हफ्ते उनके मंदसौर प्रवास के दौरान पहली मुलाकात में जब मैंने उनसे एक लंबा साक्षात्कार लिया तो वास्तव में लगा कि यह अदभुत क्षमता वाली एक प्रेरक पर्सनाल्टी है। मंदसौर शहर में नई आबादी में सिन्धी परिवार में जन्में नरेश ने गरीबी के संघर्ष के साथ अपना जीवन शुरू किया। तीन भाई और पांच बहनों का परिवार माता पिता सहित घर में 10 सदस्य बेहद गरीबी रोज कमाना और खाना। एक दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम किया। कमला नेहरू स्कूल में पढ़ा। स्कूल टाईम 12 से 5 बजे तक का था मैं स्कूल जाने से पहले व बाद में भी काम करने जाता था। नूतन स्कूल के बाहर ठेले में गोली बिस्किट बेचे। नरेश बताते हैं कोई चीज ऐसी बाकी नहीं रही जो मैने मन्दसौर में ठेला चला कर ना बेची हो।

नेशनल स्कूल के पास गुमटी लगाई बर्फ़ कुल्फी बेची। माथे पर दाल पकवान के डब्बे रखकर दुकान दुकान उन्हें बेचने जाता। बहुत कठिनाई भरा जीवन बचपन में देखा। लेकिन काम करने से कभी पीछे नहीं हटा और नये काम को सीखने की ललक मेरे मन में हमेशा से रही कड़ी मेहनत की इसलिए संघर्षों से मैं कभी घबराया नहीं।बल्कि हिम्मत से सामना करता रहा। सिंधी पुरुषार्थी होते हैं कोई काम करने में शर्म नहीं करते। मेरे बड़े भाई दुबई अपनी किस्मत आजमाने गए थे किंतु उनका वहां काम नहीं जमा और वह फिर मंदसौर आ गए।19 साल की उम्र में 1989 में मैं दुबई गया वहां मुझे 2 कम्पनियों के ऑफर थे मैंने एक कम्पनी के शॉपिंग मॉल पर काम करना शुरू कर दिया शुरू में वहां की मुद्रा में जो मुझे जो पगार मिलती थी वह अपने देश की मुद्रा में लगभग 5 हजार रु.थी।

छोटे शहरों के लोग हार्ड वर्कर होते हैं मेरे काम से कम्पनी ने सन्तुष्ट हो कर मुझे मेनेजर बना दिया। मेने अपनी मेहनत से कंपनी का दिल जीत लिया। धीरे धीरे मुझे कंपनी ने अपने अनेक शॉपिंग मॉल्स का भी मैनेजर बना दिया। 1989 में मैंने मंदसौर छोड़ा और 2004 तक लगभग 14 साल मैंने इसी कंपनी में काम किया इस दौरान मैं दुनिया का हर देश घुमा हर बड़े बिजनेस एंपायर से और बिजनेस पर्सनालिटी से मेरी मुलाकातें हुई। इतने सालों के अनुभवों को लेकर मैंने 2005 से अपनी खुद की कंपनी वेस्ट झोन की स्थापना की व स्वतंत्र रूप से व्यवसाय आरम्भ किया। कड़े संघर्ष कठिन परिश्रम और सच्ची लगन व 14 साल का अनुभव इन वजहों से नरेशजी का व्यवसाय दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा है।

वास्तव में नरेश भावनानी ने अपनी जीवटता व कड़े परिश्रम से खुद को इतना सफल व्यवसायी बना दिया है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से भी उन्हें मिलने का व चर्चा करने का अवसर मिला। कभी मन्दसौर की सड़कों पर ठेला चलाने वाले नरेश भवनानी दुबई में 120 मॉल्स 2 फाइव स्टार होटल के मालिक हैं। इस शख्स से आज एक विशिष्ट व्यक्तित्व के रूप में रूबरू हो कर लगा कि कड़ी मेहनत से पाई सफलता की चमक क्या होती है। मंदसौर शहर में जन्मा पढ़ा बढ़ा गरीब परिवार का यह युवक दुबई जाकर सफलता की इतनी बुलंदियों को छू लेगा वास्तव में यह सब अकल्पनीय ही है। नरेश भावनानी ने इस कल्पनातीत स्थिति को हकीकत में तब्दील कर दिखाया।

वे अपनी सफलता का श्रेय अपने माता-पिता के आशीर्वाद और काम के प्रति सच्ची लगन को देते हैं। वे कहते हैं मैंने अनेक ऐसे व्यवसायिक संस्थानों को भी हाथ में लिया जो घाटे में चल रहे थे या जो कमजोर हो गए थे उन्हें भी फिर से प्रॉफिट में लाकर मजबूती से खड़ा कर दिया। नरेश कहते हैं मुझे जरूरत और गरीबी का अच्छी तरह अनुभव है भगवान ने मुझे मदद करने के काबिल बना दिया है तो मैं रोज ही कुछ न कुछ दान पुण्य जरूर करता हूं मेरा परिवार बचपन में भले ही गरीबी में रहा किंतु साधु संतों के उपदेश सत्संग हम भी सुनते थे।उनकी कुछ बातों का हम पर भी असर हुआ और कठिन से कठिन स्थितियों में भी हमने हिम्मत नहीं हारी सत्संग का ही प्रभाव रहा और मुझे सफलता दर सफलता मिलती चली गई।

सुधी पाठकों को यह बता दूं कि नरेश भावनानी ने व्यक्तिगत योगदान से सिंधी समाज द्वारा धान मंडी के पास खाकी कुआ के आगे एक अत्यंत ही रमणीय अत्याधुनिक भव्यतम रिसोर्ट का निर्माण कराया है जिसे झूलेलाल सिंधु महल नाम दिया गया। नरेश भावनानी के इस अल्टीमेट योगदान को संवार कर इतना भव्य रूप देने का दायित्व सिंधी समाज के 13 महानुभावों की समिति ने अपने कंधों पर लिया और बखूबी इस काम को अंजाम तक पहुंचा दिया। भवनानी समाजजनों की मेहनत को सर्वोपरी मानते हैं उनने कहा पैसा तो कोई भी दे सकता है किन्तु खड़े रहकर समय दे कर काम हर कोई नहीं कर सकता निःसन्देह समाजजनों की लगन को सलाम है।

निश्चित ही इस प्रसंग से समाज और दानदाता या सहयोग कर्ताओं के बीच इतना अद्भुत समन्वय दिखा कि दोनों एक दूसरे की तारीफ करते नहीं अघाए। नरेश कहते हैं मैंने यह जो कुछ किया है यह कुछ भी नहीं है मैं अपने समाज के लिए और इस मंदसौर शहर के लिए बहुत कुछ करना चाहता हूं मेरा सपना है कि मंदसौर शहर के हर वासी के चेहरे पर मुस्कुराहट रहे। और उसकी वजह मैं बन सकूं। अब यह तो ऊपर वाले के हाथ में है कि मेरी यह भावना वह कैसे और कब पूरी करता है। लेकिन मैं सभी लोगों से यह जरूर कहना चाहूंगा कि अपने माता पिता का आदर सम्मान जरूर करें वही हमारे भगवान हैं।उन्हीं के आशीर्वाद से हम आगे बढ़ सकते हैं।

इस लंबी चर्चा में उनकी यह भावना परिलक्षित हुई कि वे अपनी मां को अपना आदर्श मानते हैं।उन्होंने बताया कि उन्होंने अपनी पहली कंपनी और उसके बाद जितनी भी अपनी बिजनेस कंपनियां शुरू की उन सब का उद्घाटन अपनी मां के ही हाथों से कराया मां से बढ़कर कुछ नहीं है इसी के बाद सब कुछ है। वे कहते हैं हमें यदि ईश्वर ने इस लायक बनाया है कि हम लोगों की मदद कर सकते हैं तो हमें अवश्य करना चाहिए क्योंकि हमारी सक्षमता जरूरी नहीं कि केवल हमारे ही पुरुषार्थ से ही अर्जित हुई हो यह भी हो सकता है कि किसी के भाग्य से ईश्वर इतना कुछ दे रहा हो। मैं तो यहां तक मानता हूं कि मेरे यहां काम करने वाले किसी नौकर की किस्मत से मेरा काम इतना फल फूल रहा है। इसलिए जरूरतमंदों के लिए अपने कमाए हुए धन का कम से कम 25 फीसदी तो दान पुण्य करना ही चाहिये। क्योंकि आपको जो कुछ सफलता मिली है उस पर अकेले आपका हक नहीं है कई लोगों की दुआएं हैं उसके पीछे रहती है उन सब का भी हक है।