देश ने कोरोना के चलते अप्रैल- मई में मजदूरों का दर्दनाक पलायन देखा. तब भरे पेट वाले भक्तों ने इन मजदूरों को कोसते हुए कहा था कि ये अब गांव-गांव में कोरोना फैला देंगे. हालांकि लाखों मजदूर अपने गांव पहुंच गए, जिनमें से गिनती के मजदूरों को कोरोना हुआ, लेकिन जैसा अंदेशा था वैसा इन गरीबों ने संक्रमण नहीं फैलाया. लेकिन अब नेताओं ने जरूर चुनाव जीतने के चक्कर में गांवों को बीमारी दे दी. प्रदेश में उपचुनाव जीतने के लिए शिवराज सरकार ने सारी गाइडलाइन ताक पर रख दी, नतीज़तन मुख्यमंत्री, पार्टी अध्यक्ष, महामंत्री-मंत्रियों के साथ कई नेता कोरोना की चपेट में आए. क्योंकि ये भीड़ भरी सभाएं करते रहे. अभी जो कोरोना पॉजिटिव मरीजों की जानकारी और क्षेत्र सामने आ रहे हैं उनमें इंदौर जिले के वे गांव शामिल हैं जहां पर इन नेताओं ने चुनावी प्रचार-प्रसार किया. सांवेर के तो दोनों संभावित प्रत्याशी ही कोरोना पॉजिटिव हो गए. वहीं इन्होंने कार्यकर्ताओं से लेकर मतदाताओं को संक्रमित कर डाला. मंत्री और बड़े नेताओं का तो वीवीआईपी नि:शुल्क इलाज हो जाएगा, लेकिन छोटे कार्यकर्ताओं से लेकर गांवों के गरीब जरूर परेशान होंगे. जब शहर में ही कोरोना मरीजों के फजीते होते है तो गांवों का तो भगवान ही मालिक है. उधर मुख्यमंत्री की नींद खुली और 14 अगस्त तक सार्वजनिक कार्यक्रमों पर रोक लगाई है ,वही मंत्री-विधायकों को भी मास्क पहनना अनिवार्य किया, जिसके चलते अभी तक बिना मास्क में घूमने वाले नरोत्तम मिश्रा जैसे मंत्री पहली बार मास्क में नजर आए. प्रदेश के इन भाजपा नेताओं ने तो मोदी जी की सलाह भी नहीं मानी. मास्क-दो गज दूरी का पालन नहीं किया और खुद के साथ गाँवों तक पहुँचा दी बीमारी !
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