अर्जुन राठौर
इंदौर के प्राइवेट कॉलेज डिग्री बांटने के अड्डे बन चुके हैं इन कॉलेजों की स्थिति इतनी बदतर है कि यहां पर विश्वविद्यालय की टीम निरीक्षण करे तो पता चलेगा कि ना तो इन कालेजों में फैकल्टीज है और ना ही इंफ्रास्ट्रक्चर है याने यह तमाम कालेज छात्रों से फीस वसूलने के अड्डे बन गए हैं, साल भर की फीस दे दो कॉलेज आने की जरूरत नहीं है क्योंकि कॉलेज में न तो बैठने की ठीक से व्यवस्था है और न पढ़ाने वाली फैकल्टी है छात्रों की उपस्थिति की फर्जी खानापूर्ति कालेज की ओर से कर दी जाती है और साल के अंत में छात्रों को डिग्री मिल जाती है यही कारण है कि बगैर पढ़ाई के पास हुए छात्र चपरासी की नौकरी तक के काबिल नहीं रहते । आज देश की अधिकांश कारपोरेट कंपनियों की यह शिकायत है कि उन्हें गुणवत्ता के साथ काम करने वाले छात्र नहीं मिलते , मिलेंगे भी कैसे जब कालेजों में पढ़ाई ही नहीं होती तो छात्रों में गुणवत्ता कैसे आएगी ?
इस तरह से डिग्री लेकर छात्र अपने भविष्य के साथ खिलवाड़ करते हैं इंदौर शिक्षा का हब जरूर बना लेकिन फर्जीवाड़े की भरमार हो गई अभी दो-तीन दिन पहले ही खबर आई थी कि एक मेडिकल कॉलेज में मान्यता के लिए मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया की टीम आने वाली थी तब भाड़े पर फर्जी मरीज लाए गए जिन्हें कोई बीमारी नहीं थी और उन्हें कहा गया है कि तुम मरीज बनकर पलंग पर लेट जाओ तुम्हें दिन भर के पैसे मिल जाएंगे इस फर्जीवाड़े को एक समाचार पत्र ने उजागर भी किया था जब मेडिकल शिक्षा के साथ इतना बड़ा खिलवाड़ हो सकता है तो फिर बाकी कालेजों की बात ही क्या है ।
सबसे बड़ी बात यह है कि शिक्षा के क्षेत्र से शिक्षाविदों की विदाई होती जा रही है और उनकी जगह है जो लोग ले रहे हैं वे पूरी तरह व्यवसाई है उन्हें शिक्षा की गुणवत्ता से कोई लेना देना नहीं है उन्हें तो बस छात्रों से मोटी फीस वसूलनी है औऱ बगैर पढ़ाई कराए साल के अंत में डिग्री देना है । इस पूरे मामले को लेकर विश्वविद्यालय की भूमिका की बेहद संदिग्ध है क्योंकि विश्वविद्यालय यदि चाहे तो मान्यता देने के बाद उन कॉलेजों का कठोर निरीक्षण करा सकता है और अनियमितता मिलने पर उनकी मान्यता रद्द कर सकता है लेकिन दबाव और प्रभाव के चलते विश्वविद्यालय भी एक सीमा तक ही ऐसे कालेजों के खिलाफ कार्रवाई कर पाता है।