Indore Sthapna Divas: व्यापार केंद्र के रूप में मशहूर इंदौर, जानें इसका इतिहास

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इंदौर : देशभर में आज इंदौर व्यापार केंद्र के रूप में मशहूर है। इसकी शुरुआत 3 मार्च 1716 को इंदौर के ब्राह्मण परिवार के राजा राव नंदलालजी जमींदार मंडलोई ने मुग़ल बादशाह फर्रुखशियर से फरमान हासिल कर इंदौर को टैक्स फ्री जोन बनाया था। आज इंदौर को टैक्स फ्री जोन बनाने के 305 साल पूरे हो चुके हैं। इसके खास अवसर पर 3 मार्च को यानी आज शहर का स्थापना दिवस मनाया जा रहा है।

जानें कैसे ऐसे पड़ा इंदौर का नाम –

  1. पुरातत्व विभाग में उपलब्ध जानकारियों के मुताबिक इंदौर पर आधिपत्य के लिए बंगाल के पाल, मध्य क्षेत्र के प्रतिहार और दक्षिण के राजपूतों के बीच आठवीं शताब्दी में त्रिकोणीय संघर्ष हुआ। इसमें कभी पालों का, कभी प्रतिहारों का और कभी राजपूत शासन रहा।
  2. आठवीं शताब्दी में राजकोट के राजपूत राजा इंद्र तृतीय त्रिकोणीय संघर्ष में जीते तो इस विजय को यादगार बनाने के लिए उन्होंने यहां पर एक शिवालय की स्थापना की और नाम रखा इंद्रेश्वर महादेव। इसी मंदिर के कारण शहर का नाम इंद्रपुरी हो गया।
  3. अठारहवीं शताब्दी में मराठा शासनकाल में इंद्रपुरी का नाम बदलकर इंदूर (इसके पीछे का लॉजिक) मराठी में इंद्रपुरी को मराठी अपभ्रंश में इंदूर उच्चारण हुआ और बाद में यही नाम चलन में आ गया।
  4. अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में बिट्रिशों ने इंदूर का नाम अंग्रेजी में INDOR किया और बाद में बदलकर INDORE कर दिया।
  5. इनसाइक्लोपीडिया बिट्रानिका में 1715 में इंदौर को मराठा प्रमुखों से व्यापार में रुचि रखने वाले जमींदारों द्वारा बसाया जाना बताया गया है। 1741 में कंपेल के इन्हीं जमींदारों ने इंद्रेश्वर मंदिर बनवाया था, जिसके नाम पर बस्ती का नाम इंद्रपुर, फिर इंदूर व इंडोर और अंत में इंदौर पड़ा।
  6. बौद्ध साहित्य में भी इंदौर के नाम को लेकर काफी कुछ उल्लेख हुआ है। माना जाता है कि इंद्रपुरी का नाम पहले चितावद था और इसी के आधार पर बौद्ध साहित्य में चिटिकाओं का उल्लेख है।
  7. 1973-74 के बीच आजाद नगर उत्खनन में प्राप्त अवशेषों में इंदौर में हडप्पा संस्कृति की समकालीन सभ्यता कायम और निरंतरता होने के प्रमाण मिले हैं।
  8. खनन में हडि्डयों के उपकरण, एक बच्चे के शव के अवशेष, एक शिवलिंग, सूरमा दंडी मिली है। बुद्ध स्तूपों के अवशेष मिले हैं। इन बुद्ध स्तूपों के अवेशषों से यह भी प्रतीत होता है कि छटवीं से आठवीं शताब्दी तक इंदौर का नाम चितावद भी रहा है।
  9. वर्तमान में इंद्रेश्वर मंदिर की पूजा करने वाला पुरी परिवार मानता है कि इस मंदिर को नीलकंठपुरी महाराज ने यहां इंद्रेश्वर महादेव की स्थापना की थी। इसी मंदिर के नाम पर रहवासी इलाके का नाम इंद्रपुर रखा गया।
  10. जिसे 1741 के आसपास मराठा शासकों ने इंदूर कर दिया। मराठाओं के बाद यहां अंग्रेजो को शासन की बागडोर मिली दो उन्होंने इंदूर की स्पेलिंग INDOR (इंडोर) की तो यही नाम चल पड़ा। बाद में इसी नाम को INDORE (इंदौर) कर दिया।
  11. इंदौर के नाम के पीछे एक पौराणिक कथा भी प्रचिलत है। कहते हैं देवताओं के राजा इंद्र को शरीर में सफेद दाग की बीमारी ने घेर लिया।
  12. दूसरे देवताओं ने उन्हें बीमारी से निजात पाने के लिए महादेव की उपासना करने की सलाह दी। तब देवराज इंद्र ने इसी मंदिर में आकर कड़ी तपस्या की और वे ठीक हो गए।
  13. इंद्र द्वारा इस मंदिर में तपस्या करने की वजह से इस शिवालय का नाम इंद्रेश्वर महादेव नाम प्रचिलत हो गया। शिवपुराण में इंद्र द्वारा तपस्या किए जाने का उल्लेख है।
  14. इंदौर के नाम के पीछे बताई जाने वाली वजह जो भी हो, हर वजह में “इंद्रेश्वर मंदिर” का जिक्र अवश्य है। इंदौर के नाम का कारण बने इस मंदिर का ऐतिहासिक और धार्मिक दोनों दृष्टियों से काफी महत्व है।
  15. जुनी इन्दौर में बडा रावला जो आज भी इन्दौर शहर की शान हैं राजा राव नंदलालजी मंडलोई जमींदार के नाम पर एक मोहल्ला नंदलालपुरा बसा हुआ है।
  16. बडा रावला वाले राजा राव नंदलाल जी मंडलोई जमींदार के वंशज राजा राव श्रीकांत राव जमींदार (मंडलोई) आज इन्दौर शहर की स्थापना के 305 वर्ष पूर्ण होने पर इंदौरियन को बधाई।