इंदौर महसूस करे 36 अर्थियो का बोझ, तब तक कांधे से न उतारे बोझ, जब तक इंदौर को न मिले न्याय

Suruchi
Published on:
embulance

नितिनमोहन शर्मा

आईये, अब आपकी हमारी बारी है कांधा देने की। आपके समक्ष पड़ी है लाश स्मार्ट सिटी की। आपके सामने पड़ा है क्षत विक्षत शव “मेरे सपनो का शहर इंदौर” का। उठाइये इसे। अपने कांधे पर। मजबूरी है। उठाना ही होगी ये लाश। माना की आपके कांधे पर 36 निर्दोष की पार्थिव देह का बोझ हैं। हाथ पैर जवाब दे गए है। आंखे पथरा गई हैं। चीत्कार और रुदन से गला रुंधा हुआ है। एक कदम भी आपसे अब नही चला जा रहा। फिर भी स्मार्ट सिटी की लाश तो आपको उठाना ही पड़ेगी। अन्यथा स्मार्ट सिटी के शोर और मेरे सपनों के शहर के सब्ज़बाग आपके कानो में गूँजते रहेंगे और फिर शहर का कोई कोना रुदन क्रुन्दन चीत्कार से कांप उठेगा। इसलिए 36 जीती जागती जिंदगियों के काल कवलित होने का बोझ कांधे से उतरने मत देना।

सावधान। बोझ उतारने की पूरी तैयारी हो गई है। झूठे वादे। कोरे आश्वासन। बनावटी दर्द। दिखावटी कार्रवाई। घड़ियाली आँसू। सबके इंतजाम कर लिए गए हैं। जांच के बिंदु भी मुक़र्रर हो गए हैं। ये सब उसी नेतृत्व ने तय किये है जिसके भरोसे आपने ये शहर छोड़ रखा है। अपना भरोसा भी सोप रखा है। बार बार जिन्हें आप जीता रहे है, वे आपके शहर और आपको को अब “दरखरीद गुलाम” मान चुके हैं कि जाएंगे कहां? हमे ही वोट देंगे। आपके आसपास ऐसा वातावरण तैयार कर दिया गया है कि न आप सवाल पूछ रहे हैं, न गुर्रा पा रहे हैं। न कॉलर पकड़ पा रहे हो। अब भी उम्मीद उसी नेतृत्व से कर रहे है जो पूरी तरह नपुंसक और संवेदनहीन हो चला है? जिसकी प्राथमिकता में अब ये शहर और यहां के बाशिंदे नही है। आखिर कब तक इनके भरोसे रहोगे?

भूल गए आप। आप एक जिंदा शहर हो जिसने अपने दम पर इस शहर को खड़ा किया हैं। राजनीति आपके पीछे चलती थी। अब आप उसके पीछे कब तक चलोगे? जिंदा हो न आप? तो जिंदादिली दिखाओ और उठाओ स्मार्ट सिटी की लाश को अपने कांधे पर और कर दो इसका दाह संस्कार। और बगेर हस्त प्रक्षालन किये खड़े हो जाओ उन लोगो के सामने जो दम तोड़ती जिंदगियों के बीच भी अपने धतकरम में व्यस्त थे। एक के बाद एक मौत की खबर के बाद भी आम रस पूड़ी जिम रहे थे। जो शहर को ग़मगीन ओर समाज को रोता बिलखता छोड़ भोपाल चले गए ताकि राजनीतिक करियर पर कोई आंच न आ जाये। भले ही चिता की लपटों की आंच में कई परिवार उम्र भर के लिए झुलस गए। खड़े हो जाओ उनके सामने जो मीटिंग करते रहे और तब जागे जब तक लाशों के ढेर लग गए।

खड़े हो जाओ उन अफ़सरो के सामने जो सत्ता का प्रश्रय प्राप्त है। जो बरसो से शहर में जमे हुए हैं। जो आपको कुछ नही समझते। जिनका आंका आप जैसी जनता न होकर, कोई नेता हैं। जो इस शहर को प्रयोगशाला बनाये हुए हैं। आंख में आंख अब डाल दो उन अफ़सरो के जो चंद चाटुकारों की जयजयकार से यहां जमे हुए है। जो शहर को दोनो हाथों से लूट रहे हैं। जो इंदौर में बेठकर भौपाल के इशारे से उठते बैठते हैं। जिनको तबादलों का भय नही। जो घुमफिरकर फिर यही आ जाते है।

तो फिर उठाओ लाश स्मार्ट सिटी की। डरो मत। स्मार्ट सिटी का क्षत विक्षत शव देखकर घबराओ भी मत। ये वो ही शव है जो दीवारों पर पेंटिंग करता है। सड़के चमकाता हैं। खम्बो ही नही, झाड़ो पर भी रोशनी टांगकर जगमग उजाला करता हैं। चौराहों को सजाता हैं। सड़ांध मारते कुदरती प्राकृतिक प्रवाह को नदी बनाने पर आमादा है और उसके नाम से करोड़ो बहाता है, लाखो डकारता है नालों में क्रिकेट खिलाता है। बेक लाइन में खटिया बिछवाता हैं। डिवाइडर पर नकली घास बिछाता है। प्लास्टिक के झाड़ झंकार से हरियाली करता है। ट्रेचिंग ग्राउंड में प्रि वेडिंग शूट करवाता है। छप्पन-सराफा के खाऊ ठियो पर इतराता हैं। सफाई में अव्वल आने की अकड़ दिखाता है।

हा, हा ये उसी स्मार्ट शहर की लाश है जो ये सब तो करता है पर आपकी हमारी जान बचाने की सुध ही नही लेता। वो भी एक के बाद हादसों के बाद। डिवाइडर के कोनो में समाई धूल साफ करने की करोड़ो की मशीन तो लाता है लेकिन आपकी जान बचाने का एक भी ठोस समान नही खरीदता। न रस्सा। न सर्च लाइट। न सीढ़ी। न मास्क। न ऑक्सीजन सिलेंडर। न कोई ऐसा अमला तैयार करता है जो आपदा विपदा में तुरत फुरत आप तक आ जाये और जान बचा ले। आपके हिस्से में वो ही बेबसी आती है जो पटेल नगर और पपाया होटल में थी। आंखों के सामने अपने प्रियजनों को तड़प तड़प के मरते देखने की बेबसी।

क्या अब ये इन्दौर की नियति बन गई है? जो चाहे हो जाये इस शहर में। हमे क्या? वाकई अब आपको कोई फर्क नही पड़ता? जो चाहे, जैसा चाहे इस शहर के साथ खेल ले, प्रयोग कर ले? अफसर माई बाप बन जाये। शहर के भाग्यविधाता..!! क्या आप भी आपके नेतृत्व की तरह संवेदनहीन हो गए हैं? नपुंसक और कायर? चुने हुए नेताओ की तरह मूक बधिर हो गए हो जिनकी निष्ठा सिर्फ और सिर्फ सत्ता के प्रति है। अपने दल के प्रति हैं। कितना भी बुराँ हो जाये, गूंगापन जरूरी है। आप भी ऐसे ही स्वार्थी हो गए है क्या? अगर नही तो फिर शपथ लो कि इन 36 पार्थिव देह का बोझ अपने कंधों पर तब तक महसूस करोगे, जब तक इंदौर को न्याय न मिले..!!

याद है न..शनि अमावस्या पर एक सत्ता ने एक अधिकारी को सिर्फ इसलिए हटा दिया था कि श्रद्धालुओं को स्नान का जल नही मिल पाया था।…और इंदौर में क्या हुआ? 36 मौत के बाद? एक दो अदने से बीईओ पर कार्रवाई। दो शब्द सांत्वना के। जांच के आश्वासन। बस। सता फिर लौट गई राजधानी, जहा सत्ता में फिर से आने का मजमा जुटा हुआ था। वहां जाकर मशगूल हो गई…!! आप जलाते रहे सुबह से लेकर अंधियारा छाने तक निर्दोष जिंदगियों के शव।
क्या ये ही नियति रह गई आपके मेरे इंदौर की?