इंदौर शहर माता आहिल्या की नगरी और प्रदेश की आर्थिक रजधानी इसका शहर का नाम इतिहास के पन्नो में भी मौजूद है, इस शहर की ख़ास बात है यहां से पुराने समय की हुयी रचनाओं में,आविष्कारों में, कही न कही शहर का छोटा हो या बडा योगदान जरूर रहा है। बात अगर आजादी के बाद कि जाए तो वर्ष 1947 में देश आजाद हुआ था, और 1948 में देश की संविधान की शुरूआती नींव रकहि गयी थी उस वक़्त भारत के संविधान का जो पहला पन्ना बना था, वह पन्ना आज भी इंदौर में मौजूद है। ये कहानी शहर के भार्गव परिवार की है। जहां आज भी चितावद स्थित आनंद नगर में रहने वाले भार्गव परिवार के घर में इतिहास का यह पन्ना मौजूद है।
दरअसल ये बात उस समय की है जब संविधान का कवर बनाया जा रहा था उस समय इंदौर के भार्गव परिवार के इंदौर के चित्रकार दीनानाथ भार्गव ने संविधान के कवर पर अंशोक स्तंभ की डिजाइन तैयार की थी, आज के समय में ये जानकारी बहुत कम लोगो तक है लेकिन शहर के दीननाथ भार्गव का इतिहास में बहुत बड़ा योगदान है। कुछ वर्ष पहले 24 दिसंबर 2016 को दीनानाथ का निधन हो गया था, लेकिन उनके परिवार ने आज भी दीनानाथ भार्गव की उन यादगार स्मृतियों को सहेजकर रखा है।
क्या है इस पन्ने के पीछे की कहानी-
जब संविधान बनाया गया था उस समय के वर्ष 1948 में निर्मित भारत के संविधान की मूल प्रति आज भी ललित कला एकेडमी, दिल्ली में रखी है। इतिहास के इस खास को जब किया जा रहा था तब संविधान के कवर को करने वाली टीम में इंदौर के चित्रकार दीनानाथ भार्गव भी शामिल थे। उस समय उनकी उम्र काफी काम थी जब वे शांति निकेतन में फाइन आर्ट के द्वितीय वर्ष के छात्र थे। उस समय उन्हें 1949 में सरकार ने 12 हजार रुपये पारिश्रमिक का भुगतान किया था। इस संविधान की ख़ास बात ये थी कि इसके कवर पर पहली बार में सोने के वर्क से अशोक स्तंभ का जो चित्र बनाया गया था, और उस पर काली स्याही का ब्रश गिर गया था। जिस कारण उसी समय उन्होंने ठीक वैसा दूसरा चित्र तैयार किया, जो भारतीय संविधान की पुस्तक में आज भी लगा है।