इंदौर..अहिल्याबाई के आराध्य का नाम है

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नितेश पाल

खबर आई है कि नाम बदलने के चलन में इंदौर के नाम को देवी अहिल्याबाई नगर करने की तैयारी की जा रही है। नाम बदलने के इस चलन की हवा में शिवराज ओर उनके मंत्री इंदौर की आहुति भी देने की तैयारी कर रहे हैं, लेकिन इंदौर की जनता, इंदौर की तासीर से नावाकिफ मुख्यमंत्री, मंत्री और उनके सन्त्री जिन माँ अहिल्या के नाम पर इस शहर को करने जा रहे है उनके बारे में शायद कुछ जानते नही है। इस शहर का नाम किसी मुगल के नाम पर नही बल्कि खुद अहिल्याबाई होलकर के आराध्य इंद्रेश्वर महादेव के नाम पर है।

देवी अहिल्याबाई ने पूरे देश मे कई मंदिरो का जीर्णोद्धार करवाया, कई घाट, धर्मशाला बनवाए, लेकिन कही अपना नाम नही लिखवाया क्योंकि उन्होंने अपना राज्य अपने आराध्य इंदौर का नाम जिन महादेव के नाम पर है उन्हें समर्पित कर दिया था। मौकापरस्त नेताओ की तरह माँ अहिल्याबाई काम नही करती थी, वे नाम से ज्यादा काम पर विश्वास करती थी। उनके राज्य में जनता की भावना सर्वोपरि थी। वे शिवभक्त थी और शिव के आदेशानुसार ही राज्य संभालती थी। उन्होंने खुद कभी अपने नाम को नही बढ़ाया बल्कि शिव को आगे रखा।

अब उनके आराध्य शिव के नाम के इस शहर का नाम हटाकर माँ अहिल्याबाई के नाम पर शहर का नाम करना उनके आराध्य शिव ओर शिव सेविका माँ अहिल्याबाई दोनों का अपमान होगा। शिव पुत्री नर्मदा का अपमान करने वालो को लगता है कि वो शिव का अपमान भी कर लेंगे और कोई कुछ नही बोलेगा। नाम बदलकर नोटों की खेती करने का ख्वाब देखने वाले शेख चिल्लियों में दम है तो इंदौर के पहले ग्वालियर का नाम रानी लक्ष्मीबाई के नाम पर करने की हिम्मत दिखाए, दम है तो बदले भिंड, मुरैना, झाबुआ का नाम।

शायद इन लोगो को लगता है नाम बदलकर बगैर काम किये ये इमोशन की चरस का नशा चढ़ाकर वोटों को पा जाएंगे। इन लोगो को इंदौर के नाम पर एतराज है, लेकिन इंदौर की समस्याओं को हल करने पर ध्यान नही है। पहले कोरोना ओर उसके बाद ड़ेंगू से शहर बेहाल है। हर घर मे डेंगू का एक मरीज है। लोगो की जाने जा रही है। लेकिन सरकार कोई रियायती अस्पताल नही बनवा पा रही है। इंदौर की जनता को रोज पानी तक नही मिल पाता है। सड़के उखड़ी पड़ी है।इंदौर में रोजगार को बढ़ावा देने वाले कोई नई यूनिट नही है।

यहां तक कि इंदौर की खुद की इकाइयों नगर निगम, आईडीए में इंदौर के अधिकारियों और कर्मचारियों के बजाए बाहरी अफसरो को भर दिया गया है। इंदौर की समस्या को खत्म करने के लिए सरकार के पास पैसे नही है। इसलिए अब नाम बदलने का खेल चल रहा है। संविधान के मुताबिक बनी शहर के जनप्रतिनिधियों की संस्था इंदौर नगर निगम परिषद ने 14 नवम्बर 2017 को एक प्रस्ताव पारित करते हुए इंदौर का नाम इंदुर करने का प्रस्ताव पारित कर सरकार को भेजा था लेकिन आज तक उस पर तो सरकार ने अमल नही किया और अब नया शिगूफा लाए है। यदि माँ अहिल्याबाई के लिए कुछ करना चाहते हो तो उनके द्वारा किये गए वैराग्यपूर्ण शासन प्रणाली के हिसाब से राज्य चलाकर दिखाओ, जिसमे अपने ओर अपनो के लिए नही जनता के भले के बारे में काम किया जाता है।