Indore: नगर निगम के भिक्षुक पुनर्वास केंद्र के कर्मचारियों को 15 महीनें से नहीं मिला वेतन, जनसुनवाई में पहुंचे कर्मचारी

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इंदौर नगर निगम के परदेशीपुरा स्थित भिक्षुक पुनर्वास केंद्र में 79 भिक्षुक रह रहे है । इसके संचालन के साथ ही सेवा और सम्हालने के लिए संस्था परम पूज्य रक्षक आदिनाथ वेलफेयर एंड एजुकेशनल सोसाइटी (संस्था प्रवेश) की ओर से हम 70 कर्मचारी कार्यरत है। आज सभी कर्मचारी वेतन ना मिलने से अपने जीविका के संकट को लेकर कलेक्टर से मिलने समूह के रूप में पहुंचे हैं। आर्थिक रूप से दुखी और व्यथित कर्मचारियों इन ने बताया कि विगत कई माह से निगम द्वारा संस्था प्रवेश को भुगतान नही किये जाने के कारण हम कर्मचारियों को 15 माह से वेतन प्राप्त नहीं हुआ है।

जिससे हमारी आर्थिक स्थिति अत्यंत खराब हो गई है। परिवार का भरण-पोषण करने में भी अत्यंत कठिनाई हो रही है। परिवार का गुजर बसर मुश्किल से हो पा रहा है। भूखों मरने की नौबत आ गई है। आज संस्था के कर्मचारियों ने चर्चा में बताया कि निश्चित ही यह एक मानवीय सेवा का प्रकल्प है इसे अन्य प्रकल्पों से अलग रखकर देखा जाना चाहिए। यहाँ सेवारत हम सभी कर्मचारी बहुत ही विपरीत परिस्थितियों मे आए भिक्षुकों की निरंतर सेवा हम सुश्रुसा मे लगे रहते है।

यहाँ आने वाले भिक्षुक बड़ी ही दयनीय दिन-हीन अवस्था मे आते है कुछ भिक्षुकों के शरीर पर कीड़े और बहुत से घाव होते है कई की मानसिक अवस्था भी बिगड़ी होती है जो हिंसक व्यवहार करते है ऐसी परिस्थिति मे भी हम सभी कर्मचारी अपनी सेवा भावना से विचलित न होकर समर्पित होकर धैर्य के साथ उनकी दशा सुधारने का कार्य करते हैं। हम संस्था प्रवेश की प्रेरणा से उनके शरीर से लेकर उनकी मानसिक अवस्था को भी ठीक करते हैं। उनको समाज की मुख्य धारा में जोड़ने के लिए कौशल प्रशिक्षण के माध्यम से उनकों स्वावलंबी बनाते हैं।

उनके शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए हम किचन स्टाफ उनके लिये पांच बार सात्विक भोजन बनाकर खिलाते हैं। जो बीमारी या वृद्धावस्था से पीड़ित असहाय हितग्राही बिस्तर पर ही रहते हैं हम केयरटेकर उन्हें अपने परिजन की तरह मानकर उनके डायपर बदलना, स्पंज कराना, उन्हें भोजन कराना आदि कार्य करते हैं। हम यह मानते हैं कि वेतन के साथ-साथ हमें पुण्य कार्य करने का अवसर भी मिल रहा है परंतु वेतन न मिलना हम कर्मचारियों के साथ अन्याय ही है। वर्तमान में हमारी स्थिति भी भिक्षुको का पुनर्वास करते-करते भिक्षुको के समान हो गई है।

आज हम मानवीय दृष्टिकोण में कब तक अपने परिवारों को परेशानी में डालकर काम करे ये परिवार के भरणपोषण का उनके जीवन का मामला है। परिवार की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण किसी भी प्रकार की कोई अप्रिय स्थिति बन सकती है या कोई दुख:द घटना होती है तो ये हमारे लिए और इन्दौर महानगर की प्रसिद्धी के विपरित होगा और इसकी समस्त जिम्मेदारी इंदौर नगर निगम की होगी। नगर निगम द्वारा एवम संस्था प्रवेश द्वारा एक बेहतर प्रकल्प चलाया जा रहा है कि इंदौर देश में पहला भिक्षा मुक्त शहर बने केंद्र सरकार की इस महती योजना में सेवारत कर्मचारियों और प्रकल्प के संचालन में राशि नही दिया जाना तो निश्चित ही बहुत दुखद है।

प्रशासनिक अधिकारियों के साथ ही निगम के महापौर और जनप्रतिनिधियो को इस संवेदन शील विषय पर तुरंत आगे आकर इस प्रकरण में कार्य करना चाहिए। सवाल 70 कर्मचारी परिवारों के भविष्य के साथ ही 79 भिक्षुको का भी है जो संस्था प्रवेश पुनर्वासित कर केंद्र पर उनका देख रेख कर रही है। ऐसे विषयो पर सभी जनप्रतिनिधि देखे कि क्यों भुगतान नहीं किया जा रहा है। हमारे संवेदनशील शहर इंदौर के लिए यह दुखद पहलू है।