दूसरे लॉक डाउन की जकड़ में आ चुका इंदौर शहर

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अतुल शेठ

इंदौर शहर दूसरे लॉक डाउन की जकड़ में आ चुका है।यह समय है जब हमें विचार करना चाहिए कि, पहले लॉक डाउन से लेकर मध्य काल से लेकर इस व्दीतीय लॉकडाउन के बीच में,हमने क्या पाया?क्या सिखा?भविष्य की क्या योजना बनाई थी?और उसके द्वारे,कितनी उपलब्धि हो पाई।जो हमें इस दूसरे लोकडाउन में काम में आ रही है ?

पहला लॉक डाउन खत्म हुआ मध्यकाल आया तो उसमें करीब करीब 600 मरीज अधिकतम प्रतिदिन मैं आ रहे थे।उसके बाद मरीज घटटे गए और फरवरी के मध्य में आते-आते न्यूनतम 15-20 मरीज प्रतिदिन पर आ गए थे।उसके बाद मरीज बढना शुरू हुए।और आज की तारीख में करीब करीब 900 मरीज प्रतिदिन निकल रहे हैं,जिसकी संभावना आगे जाकर ओर बढ़ने की है।

तो सवाल यह है कि मध्यकाल और पहले लॉकडाउन में जो कठिनाइयां हमने महसूस की,जेसै ऑक्सीजन की कमी,अस्पतालों में जगह की कमी थी,कोराइनटेन सेंटर बनाए थे और उसमें भी जगह कम पड़ने लगी थी।आर्थिक तंगी महसूस होने लगी थी आदी।तब यह माना गया था कि इन सब अनुभव के सहारे,दूसरी लहर जब भी आएगी जो पहली लहर से बहुत ज्यादा होगी यह सर्वविदित था,उसमे उपरोक्त सिख का लाभ मिलेगा।

इसके बावजूद ऐसा क्या रहा कि आज की तारीख में शहर के अंदर तमाम तरह की कमियां सामने उभर के आ रही है ओर हम सब बेबस हे।इसमें सबसे ज्यादा अखर ने वाली जो बात है कि जो निचला तबक्का है,जो मध्यमवर्गीय परिवार है,उनके पास में आइसोलेशन में रहने की जगह अपने घर में नहीं है।उनके लिए कोई भी व्यवस्था शहर में हम खड़ी नहीं कर पाए हैं।आज भी टेस्टिंग के अंदर हम बहुत कम टेस्टिंग कर पा रहे हैं।और जो टेस्टिंग कर पा रहे हैं उसका परिणाम भी बहुत देरी से 2 दिन से लेकर चार-पांच दिन में आ रहा है।

टेस्टिंग के बाद में जो ट्रेसिंग की बात है उस ट्रेसिंग की बात में भी लगता है कि हम 50% भी ट्रेसिग नहीं कर पा रहे हैं।और जहां तक ट्रीटमेंट का सवाल है,सर्वविदित है कि इंदौर शहर में सारी कमियां हम सबके सामने दिख रही है। चाहे दवाइयों का मामला हो,चाहे ऑक्सीजन का मामला हो, चाहे पलंग का मामला हो, या सामान्य डॉक्टरी सलाह का मामला हो। या आमजन के विश्वास का, सब मामलों में हम बहुत पीछे दिख रहे हैं ,कोरोना महामारी की तुलना में। इसी बीच लॉकडाउन लग गया है।

इसके भी क्या परिणाम आएंगे कहना बहुत मुश्किल है।मुझे लगता है कि सभी लोगों ने बैठ के जिसमें ना केवल राजनैतिक और प्रशासनिक लोग हो बल्कि समाज ओर एनजीओ केविशेषज्ञ सभी क्षेत्र के बैठे और खुले मन से चर्चा कर, इन कमियों को कैसे दूर कर सकें सोचना चाहिए ।और निश्चित समय सीमा की योजना बनाकर उसे लागू करना चाहिए।

अन्यथा कोरोना महामारी और हमारी आने वाली चरमराई अर्थव्यवस्था जिसमे बेरोजगारी,उससे बचने वाले अपराध,उद्योग धन्धे का अलाभकारी होना,सब मिलकर जो अकल्पनीय स्थितियां निर्मीत करेगी,वह सोच कर डर लगता है। आओ सब मिलकर हम अपने शहर को,प्रदेश को इस महामारी के दौर से ऊपर निकालने में मदद करें साथ बैठे,साथ सोचे और यह लहर कोई आखरी लहर नहीं है, करोना से लड़ाई लंबी है।