दिल्ली : चित्रा तिरुनल इंस्टीट्यूट फॉर मेडिकल साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी (एससीटीआईएमएसटी) में देश के पहले हार्ट फेलियर रिसर्च बायो-बैंक (एनएचएफबी) का उद्घाटन किया गया, जो भविष्य के उपचारों के लिए एक गाइड के रूप में रक्त, बायोप्सी और नैदानिक डेटा एकत्र करेगा। एनएचएफबी का 5 अगस्त को वर्चुअल उद्घाटन करते हुए, स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग (डीएचआर) के सचिव और भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के महानिदेशक प्रो. बलराम भार्गव ने कहा कि देश में कोई हार्ट फेलियर बायो-बैंक नहीं है और यह भविष्य के उपचारों और प्रौद्योगिकियों का मार्गदर्शन करने में बहुत मदद करेगा, साथ ही यह हार्ट फेलियर के रोगियों को काफी लाभ पहुंचाएगा।
उन्होंने कहा कि बायो-बैंक भारतीय बच्चों और वयस्कों में दिल की बीमारियों और दिल की विफलता के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान करेगा, जो कि पश्चिमी देशों की तुलना में काफी अलग हैं। एससीटीआईएमएसटी के अध्यक्ष और नीति आयोग के सदस्य डॉ. वी. के. सारस्वत ने आशा व्यक्त करते हुए कहा कि एनएचएफबी आणविक तरीकों को समझने में बहुत मददगार साबित होगा और दिल की विफलता की पहचान, निदान और उपचार में सुधार करेगा। उन्होंने कहा कि यह भारत में हार्ट फेलियर में अनुसंधान के एक नए युग की शुरुआत करेगा और हृदय के रोगियों के निदान और उपचार के परिदृश्य को बदल देगा।”
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के सचिव प्रो. आशुतोष शर्मा ने अपने संदेश में बताया, “यह सुविधा कोविड-पश्चात् हार्ट फेलियर के क्षेत्र में अनुसंधान और उपचार के लिए उपयोगी होगी। लॉन्ग-कोविड लक्षणों और पोस्ट-कोविड हार्ट फेलियर के मामले में वृद्धि होने से रोगियों के आंकड़े तथा बायोस्पेसिमेन एकत्र करने की आवश्यकता होती है, जो भविष्य के अनुसंधान के लिए बायोबैंक हो सकते हैं। एनएचएफबी के माध्यम से, अनुसंधानकर्ता गुणवत्ता और सुरक्षा के समुचित मानकों को कायम रखते हुए, नैदानिक डेटा से जुड़े अच्छी तरह से परिभाषित जैविक नमूनों तक पहुंच प्राप्त कर सकते हैं।
मुझे पूरी उम्मीद है कि एनएचएफबी भारत और विदेशों में अनुसंधान की सुविधा प्रदान करेगा, जिससे चिकित्सकों और वैज्ञानिकों को दिल की विफलता से संबंधित रुग्णता और मृत्यु दर को समझने के साथ-साथ समाधान खोजने में मिलकर काम करने में मदद मिलेगी।’’ एससीटीआईएमएसटी के निदेशक प्रो. अजीत कुमार वीके ने कहा कि बायो-बैंक महत्वपूर्ण संसाधन है, जिसमें मानव शरीर के अंगों के उच्च गुणवत्ता वाले जैविक नमूनों का संग्रह होता है जिनका उपयोग आणविक तरीकों को समझने और दिल की विफलता की पहचान, निदान और उपचार में सुधार के लिए किया जा सकता है।
परियोजना के प्रमुख अन्वेषक और एससीटीआईएमएसटी में कार्डियोलॉजी के प्रो. डॉ. हरिकृष्णन एस ने बताया कि भंडारण सुविधाओं में -20, -80 डिग्री मैकेनिकल फ्रीजर और एक तरल नाइट्रोजन भंडारण प्रणाली शामिल है, जो – 140 डिग्री पर जैव-नमूने को कई वर्षों तक स्टोर कर सकती है। वर्तमान में, लगभग 25,000 बायोसैंपल को स्टोर करने की सुविधा है। बायोसैंपल्स में ओपन-हार्ट सर्जरी के दौरान प्राप्त रक्त, सीरम, ऊतक के नमूने और हृदय की विफलता के रोगियों से एकत्र किए गए पेरिफरल रक्त मोनोन्यूक्लियर सेल (पीबीएमसी) और जीनोमिक डीएनए शामिल हैं। आईसीएमआर के एक सदस्य के साथ एक तकनीकी सलाहकार समिति (टीएसी) द्वारा बायो-बैंक की गतिविधि की निगरानी की जाती है।
नमूने दान करने के इच्छुक रोगियों से सहमति प्राप्त करने के बाद नमूने एकत्र किए जाते हैं। संग्रहीत और सूचीबद्ध नमूनों को नैदानिक डेटा जैसे – शरीर-विज्ञान संबंधी उपायों, इमेजिंग डेटा जैसे ईसीजी, इकोकार्डियोग्राफी एमआरआई, और अनुवर्ती डेटा से जोड़ा जाएगा। टीएसी और एससीटीआईएमएसटी की आचार समिति द्वारा प्रस्ताव को मंजूरी मिलने के बाद दिल की विफलता से संबंधित अनुसंधान में रुचि रखने वाले अनुसंधानकर्ता और चिकित्सक एससीटीआईएमएसटी के साथ सहयोग कर सकते हैं। एससीटीआईएमएसटी के बायो-बैंक ने हाइपरट्रॉफिक कार्डियोमायोपैथी में सहयोगात्मक अनुसंधान के लिए इनस्टैम बैंगलोर के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जो दिल की मांसपेशियों फूलने से संबंधित है।
भारत में हार्ट फेलियर के एक प्रमुख स्वास्थ्य समस्या के रूप में उभरने के साथ, आईसीएमआर ने क्षेत्र में अनुसंधान को बढ़ाने के लिए एससीटीआईएमएसटी में नेशनल सेंटर फॉर एडवांस्ड रिसर्च एंड एक्सीलेंस इन हार्ट फेलियर (केयर-एचएफ) की शुरुआत की थी। हार्ट फेलियर बायो-बैंक इस परियोजना के प्रमुख घटकों में से एक है, जिसमें अत्याधुनिक भंडारण सुविधाओं के विकास के लिए 85 लाख रुपये की धनराशि आबंटित की गई है।