भारतीय टीम की जर्सी बनाने वाले ने बनाए भगवान राम के वस्त्र, सपने में दिखे थे हनुमान

Deepak Meena
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अयोध्या। उत्तर प्रदेश के अयोध्या में रामलला विराजमान हो गए। अवध में राम के आगमन के साथ ही पूरा देश राममय हो गया है। शाम होते ही पूरा देश दीयों से जगमग हो उठा है जैसे मानों दीपावली मनाई जा रही है। अयोध्या समेत पूरा देश में दीपोत्सव की धूम है। भगवान का श्रीविग्रह रामलला के बालस्वरूप को कई दिव्य आभूषणों और पौराणिक कथाओं में वर्णित उनके स्वरूप के आधार पर वस्त्रों से सुसज्जित किया गया है। अयोध्या में रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर, हम उन सभी लोगों को याद करना चाहते हैं जिन्होंने इस महान उपलब्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

मूर्तिकार अरुण योगीराज
रामलला की मूर्ति का निर्माण मूर्तिकार अरुण योगीराज ने किया है। वे मैसूर महल के प्रसिद्ध मूर्तिकारों के परिवार से हैं। उन्होंने इससे पहले दिल्ली के इंडिया गेट पर अमर जवान ज्योति स्थल के पीछे स्थापित सुभाष चंद्र बोस की 30 फीट ऊंची प्रतिमा और केदारनाथ धाम में स्थापित आदि शंकराचार्य की 12 फीट ऊंची प्रतिमा बनाई है। अरुण योगीराज ने बताया कि रामलला की मूर्ति बनाने में उन्हें दो साल लगे। मूर्ति को बनाने के लिए उन्होंने राजस्थान के मकराना से सफेद संगमरमर का उपयोग किया। मूर्ति की ऊंचाई 4 फीट 3 इंच और चौड़ाई 3 फीट है।

मूर्तिकार सत्यनारायण पांडेय
रामलला की मूर्ति के अलावा, मंदिर के लिए गरुण और हनुमानजी सहित अन्य मूर्तियां भी राजस्थान के सत्यनारायण पांडेय ने बनाई हैं। उन्होंने बताया कि उन्होंने इन मूर्तियों को बनाने के लिए गुलाबी संगमरमर का उपयोग किया।

डिजाइनर मनीष त्रिपाठी
रामलला के वस्त्र डिजाइनर मनीष त्रिपाठी ने बनाए हैं। वे नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन एंड टेक्नोलॉजी नई दिल्ली से शिक्षा प्राप्त हैं। उन्होंने टीम इंडिया की जर्सी भी बनाई है। मनीष त्रिपाठी ने बताया कि उन्होंने रामलला के वस्त्र खादी से बनाए हैं। उन्होंने कहा कि खादी को बढ़ावा देने और रोजगार के अवसरों को बढ़ाने के लिए उन्होंने यह फैसला किया।

लकड़ी के दरवाजे
अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर के गर्भगृह या गर्भगृह का दरवाजा अनुराधा टिम्बर इंटरनेशनल द्वारा बनाया गया है। यह शहर की सबसे पुरानी लकड़ी निर्माण इकाइयों में से एक है। अनुराधा टिम्बर्स इंटरनेशनल हैदराबाद के मैनेजिंग पार्टनर शरथ बाबू ने कहा कि यह जीवन में एक बार मिलने वाला अवसर और इतिहास का हिस्सा है। उन्होंने बताया कि सभी दरवाजे भारतीय पारंपरिक नक्काशी से बने हैं। इन सभी दरवाजों को बनाने में लगभग 100 कारीगरों ने काम किया है। इन दरवाजों को बनाने में लगभग 10 साल लगे हैं।