राष्ट्रपिता के रूप में विश्व विख्यात महात्मा गांधी सबसे पहले कुशल पत्रकार थे। गांधी की नजर में पत्रकारिता का उद्देश्य राष्ट्रीयता और जन जागरण था। वह जनमानस की समस्याओं को मुख्यधारा की पत्रकारिता में रखने के प्रबल पक्षधर थे। पत्रकारिता उनके लिए व्यवसाय नहीं बल्कि जनमत को प्रभावित करने का एक लक्ष्योन्मुखी प्रभावी माध्यम था।
महात्मा गांधी ने अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत पत्रकारिता से ही की थी। गांधी ने पत्रकारिता में स्वतंत्र लेखन के माध्यम से प्रवेश किया था। बाद में साप्ताहिक पत्रों का संपादन किया। बीसवीं सदी के आरंभ से लेकर स्वराज पूर्व के गांधी युग तक पत्रकारिता का स्वर्णिम काल माना जाता है। इस युग की पत्रकारिता पर गांधीजी की विशेष छाप रही। गांधी के रचनात्मक कार्यक्रम को और असहयोग आंदोलन के प्रचार के लिए देशभर में कई पत्रों का प्रकाशन शुरू हुआ।महात्मा गांधी समाचार पत्रों को किसी भी आंदोलन अथवा सत्याग्रह का आधार मानते थे। उन्होंने कहा था- ”मेरा ख्याल है कि ऐसी कोई भी लड़ाई जिसका आधार आत्मबल हो, अखबार की सहायता के बिना नहीं छुपाए चलाई जा सकती”। अगर मैंने अखबार निकालकर दक्षिण अफ्रीका में बसी हुई भारतीय समाज को उनकी स्थिति न समझाई होती और सारी दुनिया में फैले हुए भारतीयों को दक्षिण अफ्रीका में कथा कुछ हो रहा है, इसे इंडियन ओपिनियन के सहारे अवगत न कराया होता तो मैं अपने दे उद्देश्य में सफल नहीं हो सकता था। इस तरह मुझे भरोसा हो गया है कि अहिंसक उपायों से सत्य की विजय के लिए अखबार एक बहुत ही महत्वपूर्ण और अनिवार्य साधन है।” महात्मा गांधी ने पत्रकारिता के माध्यम से सूचना ही नहीं बल्कि जनशिक्षण और जनमत निर्माण का भी कार्य किया। गांधीजी की पत्रकारिता पराधीन भारत की आवाज थी। उन्होंने समाचार पत्रों के माध्यम से अपनी आवाज को जन-जन तक पहुंचाया और अंग्रेजों के विरुद्ध जनजागरण का कार्य किया।