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लाल सागर में ‘टाइटैनिक’ जैसी तबाही, हूती विद्रोहियों ने मिसाइलों से उड़ाया व्यापारिक जहाज

हूति विद्रोहियों का आक्रमण

हूति विद्रोहियों का आक्रमण

मध्य पूर्व की अशांत राजनीति एक बार फिर समुद्री व्यापार के लिए घातक साबित हुई है। 6 जुलाई 2025 को यमन के हूती विद्रोहियों ने लाल सागर में यूनानी स्वामित्व और लाइबेरियन झंडे वाले बल्क कैरियर जहाज ‘मैजिक सीज’ पर भीषण हमला कर दिया। विद्रोहियों ने जहाज पर ड्रोन, मिसाइल, रॉकेट लॉन्चर और छोटे हथियारों से हमला बोला। कुछ ही पलों में जहाज आग की लपटों में घिर गया और जबरदस्त धमाके के बाद दो टुकड़ों में टूटकर समुद्र में समा गया। यह घटना स्वेज नहर की ओर बढ़ते जहाजों के लिए चेतावनी मानी जा रही है।

तीन की मौत, चालक दल ने समंदर में कूदकर बचाई जान

यूरोपीय नौसैनिक मिशन ‘ऑपरेशन एस्पाइड्स’ ने पुष्टि की कि इस हमले में तीन नाविकों की मौत हो गई, जबकि दो गंभीर रूप से घायल हुए, जिनमें एक ने अपना पैर खो दिया। जहाज पर सवार 22 सदस्यीय चालक दल ने जान बचाने के लिए शिप से समुद्र में छलांग लगा दी। सुरक्षाबलों ने जवाबी फायरिंग की, लेकिन वे जहाज को डूबने से नहीं बचा सके। हूती विद्रोहियों ने खुद इस हमले की जिम्मेदारी ली है और दावा किया कि यह हमला इजरायल पर उनकी समुद्री नाकाबंदी का उल्लंघन करने के कारण किया गया।

वीडियो जारी कर दिखाई तबाही, वैश्विक व्यापार को खतरा

हूतियों ने इस हमले का वीडियो भी जारी किया, जिसमें जहाज को आग की लपटों में घिरते और समुद्र में डूबते देखा जा सकता है। यह वीडियो न सिर्फ हमले की ताकत और तैयारी को दर्शाता है, बल्कि यह भी साफ करता है कि हूतियों का उद्देश्य सिर्फ इजरायल विरोध नहीं, बल्कि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को बाधित करना भी है। लाल सागर और स्वेज नहर के आसपास के क्षेत्र विश्व व्यापार के लिए जीवनरेखा माने जाते हैं। ऐसे हमलों से तेल, अनाज, और अन्य जरूरी वस्तुओं की सप्लाई प्रभावित हो सकती है, जिसका सीधा असर वैश्विक अर्थव्यवस्था पर पड़ता है।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ी चिंता, क्षेत्रीय तनाव और गहराया

इस हमले की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कड़ी निंदा की गई है। संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका और यूरोपीय संघ ने इसे समुद्री सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बताया है। लगातार हो रहे हूती हमलों से मध्य पूर्व की भू-राजनीतिक स्थिति और अधिक जटिल हो गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह हमला सिर्फ एक जहाज पर नहीं, बल्कि वैश्विक नौवहन स्वतंत्रता पर सीधा हमला है। अब यह देखना अहम होगा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस चुनौती का किस तरह जवाब देता है।

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