भारत जैसे बहुलतावादी समाज में धार्मिक स्वतंत्रता संविधान द्वारा संरक्षित मूल अधिकार है, लेकिन किसी व्यक्ति को बहला-फुसलाकर, धोखे से या जबरदस्ती धर्म परिवर्तन (धर्मांतरण) के लिए मजबूर करना एक दंडनीय अपराध है। पिछले कुछ वर्षों में ऐसे कई मामले सामने आए हैं जहां आर्थिक लालच, शादी का झांसा, नौकरी या शिक्षा का वादा करके धर्म परिवर्तन कराए गए। इन बढ़ते मामलों को देखते हुए भारतीय न्याय संहिता (BNS) 2023 में ऐसे अपराधों के लिए कड़ी सजा और सख्त कानूनी कार्रवाई का प्रावधान किया गया है।
धर्म परिवर्तन के अपराध पर कानूनी कार्रवाई
BNS 2023 की धारा 106 (Section 106 of Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023) में यह स्पष्ट किया गया है कि यदि कोई व्यक्ति बल प्रयोग, झांसा, धोखा, जबरदस्ती, प्रलोभन, शादी का वादा या किसी प्रकार के अनुचित प्रभाव से किसी अन्य का धर्म परिवर्तन ?(धर्मांतरण) कराता है या कराने की कोशिश करता है, तो यह अपराध है।
क्या है सजा का प्रावधान
इस धारा के अंतर्गत दोषी पाए जाने पर 3 वर्ष से 10 वर्ष तक की सजा हो सकती है। इसके साथ ही 25,000 रुपये तक का जुर्माना भी लगाया जा सकता है। यदि अपराध नाबालिग, महिला, अनुसूचित जाति/जनजाति के व्यक्ति या धार्मिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र में किया गया हो, तो सजा और भी कड़ी हो सकती है।
कैसे परिभाषित होता है ‘प्रलोभन’ या ‘प्रभाव’?
BNS के तहत यह स्पष्ट किया गया है कि प्रलोभन (enticement) या अनुचित प्रभाव (undue influence) का मतलब है। धन, नौकरी, शिक्षा, चिकित्सा या किसी भी तरह की सुविधा का वादा करके धर्म परिवर्तन कराना। यह दिखाना कि किसी एक धर्म को अपनाने से जीवन ‘सफल’ हो जाएगा या कोई संकट दूर होगा। प्रेम, शादी, या पारिवारिक संबंधों का झूठा वादा करके धर्म बदलवाना। ध्यान रहे, अगर कोई व्यक्ति स्वेच्छा से, बिना किसी दबाव के धर्म बदलता है, तो यह अपराध की श्रेणी में नहीं आता। लेकिन यदि कोई पारिवारिक, आर्थिक या भावनात्मक दबाव डालता है, तो उसे दंडित किया जा सकता है।
क्यों बढ़ रहा है धर्म परिवर्तन पर विवाद?
हाल के वर्षों में कई राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़ और झारखंड ने भी अपने-अपने स्तर पर ‘धर्मांतरण निषेध कानून’ (Anti-Conversion Law) लागू किए हैं। इन राज्यों में विवाह के बहाने धर्म परिवर्तन, विशेष रूप से “लव जिहाद” जैसे मामलों में बड़ी संख्या में गिरफ्तारी भी हुई हैं। इस मुद्दे को लेकर सामाजिक और राजनीतिक हलकों में भी बहस चल रही है। एक ओर कुछ संगठन इसे “धर्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन” मानते हैं, वहीं दूसरी ओर बहुत से लोग इसे “धोखे और जबरदस्ती से धर्मांतरण रोकने के लिए जरूरी” मानते हैं।
संविधान क्या कहता है धर्म परिवर्तन के बारे में?
भारत का संविधान अनुच्छेद 25 (Article 25) के तहत हर नागरिक को धर्म की स्वतंत्रता देता है। जिसमें धर्म मानने, अभ्यास करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता शामिल है। लेकिन यह स्वतंत्रता अन्य लोगों के अधिकारों या कानून व्यवस्था को प्रभावित करने वाली नहीं हो सकती। इसलिए जब किसी व्यक्ति को उसकी मर्जी के बिना या धोखे से धर्म परिवर्तन के लिए बाध्य किया जाता है, तो यह संविधान की भावना के खिलाफ है।
अब नहीं चलेगी ‘धर्म के नाम पर धोखाधड़ी’
BNS 2023 में धारा 106 के जरिए यह स्पष्ट संदेश दिया गया है कि धर्म के नाम पर छल, दबाव या प्रलोभन से किया गया कोई भी कार्य कानून की नजर में अपराध है। अब अगर कोई व्यक्ति बहला-फुसलाकर या धोखे से किसी का धर्म बदलवाता है, तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई सुनिश्चित की जाएगी। साथ ही, राज्य सरकारें भी धर्मांतरण की घटनाओं पर सतर्क निगरानी बनाए रखने के लिए कहा गया है। भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, लेकिन धर्म की स्वतंत्रता का मतलब यह नहीं कि कोई उसे हथियार बनाकर दूसरों की आस्था से खिलवाड़ करे।