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ममता की सस्ती राजनीति से महंगे पड़ते मुद्दे

ममता की सस्ती राजनीति से महंगे पड़ते मुद्दे

कैलाश विजयवर्गीय

पश्चिम बंगाल में प्रशासन और पुलिस के अफसरों को तृणमूल कांग्रेस का हुकुम बजाने वाला बनाने वाली मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तरफ से केंद्रीय सुरक्षा बलों पर विधानसभा चुनाव से पहले ही हमले शुरु हो गए हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में केंद्रीय बलों की तैनाती को लेकर भी ममता बनर्जी ने हायतौबा मचाई थी। 2011 में सत्ता में आने से पहले ममता बनर्जी चाहे कांग्रेस में रही या तृणमूल कांग्रेस में हर चुनाव में केंद्रीय बलों की तैनाती और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग करती रही थी। यह भी सच है कि 2011 के विधानसभा चुनाव में केंद्रीय सुरक्षाबलों को तैनात नहीं किया जाता तो तृणमूल कांग्रेस वाममोर्चा की गुंडागर्दी का मुकाबला नहीं कर पाती। 2009 के लोकसभा चुनाव में भी चुनाव आयोग की निष्पक्ष और स्वतंत्र रूप चुनाव कराने के लिए केंद्रीय बलों की तैनाती की गई थी। इसी कारण तृणमूल कांग्रेस को चुनाव में सफलता मिली।

पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस द्वारा जारी अराजकता और खूनखराबा रोकने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने चुनाव से पहले केंद्रीय सुरक्षाबल तैनात करने की मांग की है। वाममोर्चा और कांग्रेस के नेता भी केंद्रीय सुरक्षाबल तैनान करने की मांग कर रहे हैं। सभी जानते हैं कि पश्चिम बंगाल की पुलिस सत्तारूढ़ दल के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं की तरह काम करती है। यह सिलसिला बहुत पुराना है। कांग्रेस की सरकारों के दौरान कम्युनिस्ट पुलिस पर कांग्रेस के लिए काम करने का आरोप लगाते थे। वाममोर्चा की सरकार बनने के बाद पुलिस पर कम्युनिस्टों के लिए काम करने के आरोप लगते थे। इस तरह के सबसे ज्यादा आरोप ममता बनर्जी ने ही लगाए थे। अब यही काम पुलिस तृणमूल कांग्रेस के लिए करती है। तृणमूल कांग्रेस ने चुनाव आयोग से कहा है कि सीमा सुरक्षा बल भाजपा के लिए काम कर रही है। ऐसे आरोप तृणमूल कांग्रेस ने सस्ती राजनीति के लिए लगाए हों पर इसके परिणाम बहुत खतरनाक साबित होंगे। ममता की सस्ती राजनीति ने संविधान, संसद, सुप्रीम कोर्ट, सेना, चुनाव आयोग और सुरक्षाबलों को भी नहीं बख्शा। कुछ साल पहले सेना पर सत्ता हड़पने की कोशिश का आरोप लगाने वाली ममता की पार्टी के नेताओं ने सुरक्षाबलों को बदनाम करने की कोशिश शुरु कर दी है।

तृणमूल कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं की सीमा सुरक्षा बल से बहुत परेशानी भी है। बीएसएफ ने बंगाल के सीमावर्ती इलाकों में तस्करी रैकेट पर रोक लगाने में सफलता हासिल की है। गायों की तस्करी, नशीले पदार्थों की तस्करों, बांग्लादेशी घुसपैठियों पर लगाम लगाने के साथ ही जाली नोटों और अवैध हथियारों की तस्करी में बहुत कमी आई है। पिछले साल तस्करों के हमले में बड़े पैमाने पर बीएसएफ के जवान घायल भी हुए थे। तृणमूल के माफिया नेताओं की बीएसएफ से इस कारण भी चिढ़ होने लगी है। यह बात भी स्पष्ट है कि पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान सुरक्षाबलों की लगभग 700 कंपनियों की तैनाती के बावजूद भारी हिंसा हुई थी। जगह-जगह भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या की गई। उनके घरों और दुकानों को फूंक दिया गया। भाजपा कार्यकर्ताओं के घरों पर बमों से हमले किए गए। बड़ी संख्या में भाजपा के कार्यकर्ता घायल हुए। लोकसभा चुनाव के दौरान अगर सुरक्षाबलों को तैनात नहीं किया जाता तो ज्यादा हिंसा होती। राजनीतिक हिंसा के कारण भाजपा को कुछ सीटों पर नुकसान उठाना पड़ा। उस समय भी ममता बनर्जी ने सुरक्षाबलों को भाजपा का एजेंट बताया था। अपने खास अफसरों को चुनावी डयूटी से हटाने और तबादला करने के कारण ममता बनर्जी ने चुनाव आयोग पर हमले बोले थे। ममता का कहना था कि ऐसे फैसले चुनाव आयोग नहीं बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह कर रहे हैं।

विधानसभा चुनाव से पहले ही पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के लोग भाजपा कार्यकर्ताओं और नेताओं पर हमले कर रहे हैं। हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री जगत प्रकाश नड्डा, मुझ पर और पार्टी के अन्य नेताओं पर हमले किए गए। पूरे पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की गुंडागर्दी के कारण लोग त्राहिमाम कर रहे हैं। माफियाराज में प्रशासन और पुलिस में आम आदमी की कोई सुनवाई नहीं होती है। पुलिस के अफसर तृणमूल कांग्रेस के नेता सरीखे व्यवहार करते हैं। पुलिस के अफसर पार्टी देखकर कार्रवाई करते हैं। तृणमूल कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ताओं ने कोई नारा लगाया और वैसा ही नारा लगाकर विपक्षी दलों के कार्यकर्ताओं ने जवाब दिया तो उनके खिलाफ तो कार्रवाई की जाती है। तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को पुलिस पूरी तरह संरक्षण देती है। अब इस तरह का खेल बंद होना चाहिए। केंद्रीय सुरक्षाबलों की तैनात होने के बाद तृणमूल कांग्रेस की गुंडागर्दी पर रोक लगेगी, इस कारण बौखलाहट में सुरक्षाबलों पर आरोप लगाए जा रहे हैं। हमें आशा है कि पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की अराजक नीतियों को देखते हुए चुनाव आयोग शांतिपूर्ण और निष्पक्ष तरीके से चुनाव कराने का पूरा इंतजाम करेगा।

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