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जिनका नाम सुनकर कांपते थे अंग्रेज, उसी राजा भभूत सिंह की धरती पर सत्ता का मंथन करेगी मोहन सरकार

जिनका नाम सुनकर कांपते थे अंग्रेज, उसी राजा भभूत सिंह की धरती पर सत्ता का मंथन करेगी मोहन सरकार

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की अध्यक्षता में 3 जून को पचमढ़ी में एक विशेष कैबिनेट बैठक आयोजित की जाएगी, जिसमें राजा भभूत सिंह के अदम्य साहस और बलिदान को सम्मानित किया जाएगा। इस बैठक में उनकी याद में प्रतिमा स्थापना और एक संस्थान के नामकरण के प्रस्तावों पर भी चर्चा हो सकती है। विरासत को संजोते हुए विकास की दिशा में और अपने जनजातीय नायकों को सम्मानित करने के उद्देश्य से यह बैठक राज्य शासन की नीति के तहत आयोजित की जा रही है। हर्राकोट के जागीरदार भभूत सिंह का जनजातीय समाज पर गहरा प्रभाव था और उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के लिए जनजातीय समुदाय को संगठित किया था।

स्वतंत्रता की लड़ाई में तात्या टोपे के कंधे से कंधा

1857 की क्रांति के दौरान राजा भभूत सिंह ने तात्या टोपे के साथ साझेदारी करके नर्मदा के तट पर स्वतंत्रता संग्राम की योजना तैयार की। अक्टूबर 1858 के अंतिम दिनों में दोनों ने सांडिया के पास नर्मदा नदी पार की और आठ दिनों तक पचमढ़ी की पहाड़ियों में रहकर आगे की कार्यवाही की रूपरेखा बनाई।

सतपुड़ा की पहाड़ियों में जगाई गई आज़ादी की लौ

राजा भभूत सिंह ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध सतपुड़ा की पहाड़ियों में आज़ादी की ज्वाला प्रज्वलित की। उन्होंने जल, जंगल और जमीन की रक्षा के लिए जनजातीय समुदाय को संगठित करते हुए अंग्रेजों के खिलाफ मिलकर संघर्ष किया।

जनजातीय संस्कृति के संरक्षक

हर्राकोट के जागीरदार राजा भभूत सिंह का जनजातीय समुदाय पर विशेष प्रभाव था। उन्होंने आदिवासियों को संगठित करते हुए अंग्रेजों के खिलाफ खड़ा किया और उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भागीदारी के लिए प्रेरित किया।

गुरिल्ला युद्ध में माहिर

भभूत सिंह पहाड़ियों के हर मार्ग और दर्रे से अच्छी तरह परिचित थे। उन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज की तरह छिपकर लड़ने की गुरिल्ला युद्ध तकनीक अपनाई, जिससे वे अंग्रेजों की फौज पर अचानक हमला करते और तुरंत ही अंधेरे में छिप जाते। उनकी इस रणनीति के चलते अंग्रेजों को मद्रास इन्फेंट्री तक बुलाना पड़ा ताकि उनके खिलाफ विशेष कार्रवाई की जा सके।

 

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