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शहर में युवाओं के बीच बढ़ा टैटू बनवाने का क्रेज, टैटू के शौकीन सबसे ज्यादा बनवा रहे धार्मिक कृतियां

शहर में युवाओं के बीच बढ़ा टैटू बनवाने का क्रेज, टैटू के शौकीन सबसे ज्यादा बनवा रहे धार्मिक कृतियां

इंदौर : स्वच्छता और खान पान के शौकिन शहर में अब टेटू का क्रेज बढ़ गया हैं। इसका क्रेज हर उम्र के लोगों में देखने को मिल रहा है। शहर में पहले के मुकाबले अब टैटू पार्लर की संख्या में भी इजाफा होता नजर आ रहा हैं। यहां टैटू पार्लर की कई नामी कंपनी अपने पार्लर शुरू कर रही हैं। पार्लर पर बनाए जाने वाले इन टैटू में लगभग 80 प्रतिशत टेंपररी टैटू तो 20 प्रतिशत परमानेंट टैटू बनवाएं जा रहे हैं।

इन टैटू में स्टाइलिश टैटू के साथ अब भगवान और अन्य धार्मिक टैटू बनवाने का चलन बढ़ा हैं जिसमें, सबसे ज्यादा भगवान शिवजी, वहीं मंदिर, त्रिशूल, और अन्य धार्मिक टैटू बनवाएं जा रहे हैं। इसी के साथ इन टैटू में प्रकृति, फेवरेट स्टार, हार्ट, अपने किसी व्यक्ति का नाम, अल्फाबेट्स और अन्य प्रकार के टैटू शामिल हैं। शहर में टैटू की दुकानें बढ़ती जा रही है, पीछले कुछ सालों के मुकाबले यहां 10 प्रतिशत तक दुकानें बढ़ी हैं। इन दुकानों पर टैटू बनावाने से लेकर सीखने वालों को टैटू बनाने की ट्रेनिंग भी दी जा रही है। अगर बात आंकड़ों की करी जाए तो गर्ल्स भी बॉयज के मुकाबले टैटू बनवाने में पीछे नहीं हैं।

टैटू में इस्तेमाल होने वाली स्याही कई प्रकार की होती हैं, लेकिन इसे परमानेंट और टेंपररी टैटू के नाम से जाना जाता हैं. परमानेंट टैटू स्याही में एक वाहक के साथ संयुक्त पिगमेंट होते हैं , जिसका उपयोग टैटू बनाने की प्रक्रिया में चमड़ी पर टैटू बनाने के लिए किया जाता है। इन स्याही का उपयोग स्थायी मेकअप , टैटू के एक रूप के लिए भी किया जाता है।जिसमें अकार्बनिक पिगमेंट , जैसे कार्बन ब्लैक, सिंथेटिक ऑर्गेनिक पिगमेंट, जैसे चमकीले रंग के एज़ो -केमिकल्स शामिल हैं। कुछ सामान्य टैटू पिगमेंट रसायन होते हैं जो कैंसर और अन्य बीमारी का कारण बन सकते हैं, लेकिन यह निर्धारित करने के लिए कि क्या ये रसायन त्वचा में एम्बेडेड होने पर कैंसर के खतरे को बढ़ाते हैं।

वहीं टेंपररी टैटू में नॉर्मल कलर या स्याही का इस्तेमाल किया जाता हैं। यह कुछ समय बाद अपने आप हट जाते हैं। इन टैटूज में डाई और सिंथेटिक रंगों का इस्तेमाल आमतौर पर किया जाता हैं। इससे कोई नुकसान तो नहीं होते लेकिन कुछ एक्सपर्ट का मानना रहता हैं कि इससे स्किन पर रैशेज, धब्बे, त्वचा के रंग में हल्का बदलाव और सूरज की रोशनी में जाने पर सेंसटिविटी बढ़ सकती है। जो त्वचा को कई तरह से नुकसान पहुंचा सकते हैं।

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