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इंडेक्स इंस्टीट्यूट ऑफ डेंटल साइंसेज, मालवांचल यूनिवर्सिटी द्वारा ओरल मेडिसिन एंड रेडियोलॉजी डे पर सेमिनार

इंडेक्स इंस्टीट्यूट ऑफ डेंटल साइंसेज, मालवांचल यूनिवर्सिटी द्वारा ओरल मेडिसिन एंड रेडियोलॉजी डे पर सेमिनार

इंडेक्स इंस्टीट्यूट ऑफ डेंटल साइंसेज,मालवांचल यूनिवर्सिटी द्वारा सीबीसीटी डायगोनिस्ट और प्लानिंग विषय पर सेमिनार आयोजित किया गया। ओरल मेडिसिन एंड रेडियोलॉजी डे पर सेमिनार के मुख्य वक्ता डॉ.अजय परिहार ने छात्रों को संबोधित किया। इंदौर में खासतौर पर सीबीसीटी जैसी तकनीक का इस्तेमाल पहले की तुलना भी काफी बढ़ गया है। आज इंदौर में यह मशीन डॉक्टरों के साथ मरीजों के लिए भी बेहतर विकल्प बन गई है।

उन्होंने कहा कि मेडिकल सेक्टर में नई तकनीक आने के बाद काफी बदलाव देखने को मिल रहे है। अब एआई से लेकर कई तकनीक मेडिकल साइंस की दुनिया को बदल रही है। आज भी इंसानी दिमाग के स्तर तक कोई तकनीक नहीं पहुंच सकती है। उन्होंने कहा कि किसी भी मरीज की जांच करने से पहले आपको उसकी बीमारी का सही तरीके से समझना बेहद जरूरी है।तभी आप सीबीसीटी या एक्सरे में से किस तकनीक का इस्मेताल करना है इसका निर्णय ले सकते है। उन्होंने कहा कि जापान की कंपनी वेटेक की सीबीसीटी मशीन इंडेक्स इंस्टीट्यूट ऑफ डेंटल साइंसेज (आईआईडीएस) में स्थापित की गई। इस इस मशीन से मरीज के जबड़े दांत चेहरे की हड्डी और नाक के अंदरूनी हिस्से की समस्याओं का पता लगाना अब आसान होगा।

छात्रों ने समझा तकनीक का सही इस्तेमाल
उन्होंने कहा कि सीबीसीटी मशीन की सबसे बड़ी खासियत है कि इसमें रेडिएशन काफी कम होता है। इसी के साथ बेहतर डायगोनिस्ट होने के कारण बीमारी से जुड़ी सही जानकारी अब डॅाक्टर को आसानी से मिल पा रही है। डॉ.अजय परिहार ने डेंटल के छात्रों को कई बीमारी से जुड़े केस की जानकारी भी दी। सभी मरीजों के लिए सीबीसीटी तकनीक कितनी कारगर साबित हुई। उन्होंने कहा कि कई बार मरीजों की हालात देखकर आप अंदाजा नहीं लगा सकते है गंभीर बीमारी से पीड़ित है या नहीं। ऐसे समय में सीबीसीटी के साथ आज मौजूद कई तकनीक बीमारी का पता लगाने में काफी मददगार साबित हो रही है।

इंडेक्स समूह के चेय़रमैन सुरेशसिंह भदौरिया व वाइस चेयरमैन मयंकराजसिंह भदौरिया ने सेमिनार की सराहना की। कार्यक्रम इंडेक्स इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंसेज की असिस्टेंट डीन और ओरल रेडियोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ.दीप्ति सिंह हाड़ा द्वारा आयोजित किया गया था। संचालन डॉ.सुरभि बालाकृष्णन ने किया।

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